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कमलनाथ ने क्यों दिया नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा, जानें बड़े फैसले के पीछे का कारण

April 29, 2022

भोपाल: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) ने कांग्रेस की ‘एक व्यक्ति-एक पद’ नीति के तहत गुरुवार को राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, वह मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने रहेंगे. कमलनाथ की जगह अब गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष बनाए गए हैं. गोविंद सिंह सात बार से विधायक हैं.

अब कमलनाथ के पास केवल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (Congress state president) का पद है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ क्यों कि दिया है. इसके पीछे कई वजहें है. बताया जा रहा है कि कमलनाथ ने यह फैसला एक रणनीति के तहत किया है. कमलनाथ अभी से 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर एक्टिव है, वह लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं और पार्टी नेताओं के साथ हर दिन मीटिंग कर आगे की रणनीति तैयार (strategize) कर रहे हैं. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी होने की वजह से वह लगातार विधानसभा सत्र के दौरान समय नहीं दे पा रहे थे. ऐसे में बीजेपी के नेता इस मुद्दे पर लगातार कमलनाथ पर निशाना साध रहे थे.

ऐसे में उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ने का मन बना लिया. कमलनाथ के करीबी सूत्रों ने दावा किया है कि आगामी चुनावों की बेहतर तैयारी के लिए उन्होंने अपनी मर्जी से इस्तीफा दिया है. ताकि वह पूरा फोकस केवल चुनाव पर कर सकें. पिछले दिनों कमलनाथ ने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से मुलाकात की थी, तभी उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश सोनिया गांधी के सामने की थी, जिसके पीछे उन्होंने तर्क दिया था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पार्टी संगठन और आगामी विधानसभा चुनाव को प्राथमिकता सबसे जरूरी है. ताकि चुनाव के लिए अभी से पार्टी के संगठन को मजबूत किया जा सके. कमलनाथ के इस्तीफे बाद प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी तैयारियों को और भी गति मिलने की उम्मीद जताई जा रही है.

कांग्रेस चुनावी मोड में शिवराज सरकार (Shivraj Government) को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती, ऐसे में कमलनाथ जहां प्रदेश अध्यक्ष के नाते प्रदेश भर में शिवराज सरकार के खिलाफ एक्टिव रहेंगे. तो वहीं नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह सदन में सरकार को घेरने का काम करेंगे. क्योंकि गोविंद सिंह को संसदीय कार्य का अच्छा अनुभव है, जबकि अभी वह ही सदन से संबंधित सभी काम देख रहे थे. ऐसे में अब कांग्रेस सड़क से सदन तक बीजेपी को घेरने के काम में जुटेगी.


जिस तरह से 2020 में कमलनाथ की सरकार गिरी उससे वह हैरान रह गए थे. बताया जा रहा है कि कांग्रेस और कमलनाथ 2023 का विधानसभा चुनाव किसी भी कीमत पर जीतना चाहती है. दरअसल, कमलनाथ के पास दोनों पद होने की वजह से बीजेपी तो उन पर निशाना साधती ही थी, जबकि गाहे बगाहे कांग्रेस पार्टी के अंदर से भी यह बात उठती रहती थी. ऐसे में कमलनाथ ने वक्त की नजाकत को समझते हुए चुनाव से 18 महीने पहले ही नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया. ताकि चुनावी समर में पार्टी में किसी प्रकार का कोई विरोध न हो.

अब तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी कमलनाथ निभा रहे है, ऐसे में डेढ़ साल पहले कमलनाथ ने एक पद छोड़कर बड़ा दांव खेलने की कोशिश की है. विधानसभा में सत्ता पक्ष के फैसलों में हां में हां मिलाने के कारण कमलनाथ अपनी ही पार्टी के अंदर कई बार आलोचना झेलते दिखाई दिए हैं. विधानसभा में सवाल नहीं पूछने पर भी वो सुर्खियों में रहे. डॉक्टर गोविंद सिंह के नेतृत्व में विधानसभा में विपक्ष कितनी मजबूत भूमिका निभा पाता है, यह देखना दिलचस्प होगा.

गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने को लेकर कमलनाथ ग्वालियर-चंबल संभाग के समीकरण भी साधना चाहते हैं, बता दें कि ग्वालियर चंबल संभाग में विधानसभा की 34 सीटें आती हैं. इस क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया का दबदबा माना जाता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ग्वालियर चंबल संभाग की 34 सीटों में से 26 पर जीत मिली थी. वहीं भाजपा को महज 7 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. हालांकि साल 2020 में सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए. ऐसे में सिंधिया की बदौलत 2023 विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल में भाजपा को फायदा मिल सकता है. माना जा रहा है कि अब डॉ. गोविंद सिंह को कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष बनाकर ग्वालियर चंबल इलाके में भाजपा को कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर ली है.

गोविंद सिंह कांग्रेस में ऐसे एकमात्र विधायक हैं जो सातवीं बार चुनाव जीते हैं, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सरकार दोनों में मंत्री रहे हैं, इसके अलावा कांग्रेस संगठन में भी कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं, सदन में भी कई पदों पर रहे हैं. पूरे मध्य प्रदेश में अब उनकी पहचान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के तौर पर होती है, दिल्ली में वह सोनिया गांधी से सीधे मुलाकात कर सकते हैं, गोविंद सिंह का अपना खुद का राजनीतिक रसूख है.

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