
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने सोमवार को राजनीतिक दलों (Political parties)की उस मांग को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें चुनाव आयोग(election Commission) को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह आधार कार्ड को नागरिकता का एकमात्र प्रमाण के रूप में स्वीकार करे। राजनीतिक दलों की यह मांग इसलिए थी, ताकि बिहार में हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद तैयार की गई मतदाता सूची में लोग ‘आधार’ के आधार पर अपना नाम दर्ज करा सकें। न्यायालय ने कहा कि आधार की स्थिति को कानून में निर्धारित सीमा से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
देश के भावी CJI जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सोमवार को कहा कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए आधार भी मान्य दस्तावेजों में से एक होगा। इससे पहले इसी पीठ ने कहा था कि मतदाता सूची में नामांकन के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्दिष्ट अन्य दस्तावेजों के साथ आधार भी एक पहचान दस्तावेज हो सकता है।
हम निर्धारित सीमा से आगे नहीं बढ़ा सकते
जब राजद के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग अदालत के आदेश के बावजूद मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों के लिए आधार को पहचान के एकमात्र प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है, तो पीठ ने कहा, “हम आधार अधिनियम द्वारा निर्धारित सीमा से आगे आधार की स्थिति को नहीं बढ़ा सकते। हम पुट्टस्वामी फैसले में आधार को बरकरार रखते हुए पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा कही गई बातों से भी आगे नहीं जा सकते।”
क्या कहता है प्रावधान?
दरअसल, आधार अधिनियम की धारा 9 कहती है: “आधार संख्या या उसका प्रमाणीकरण, अपने आप में, किसी आधार संख्या धारक को नागरिकता या निवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करेगा या उसका प्रमाण नहीं होगा।” सितंबर 2018 में पुट्टस्वामी मामले में दिए गए फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की पाँचजजों की पीठ ने कहा था, “आधार संख्या अपने आप में नागरिकता या निवास का अधिकार प्रदान नहीं करती है।”
आधार पर इतना जोर क्यों?
जब राजनीतिक दलों सहित अन्य याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने आधार को मतदाता के रूप में पंजीकरण के लिए बायोमेट्रिक पहचान प्रमाण से बढ़ाकर नागरिकता प्रमाण बनाने की मांग में शामिल हुए, तो पीठ ने पूछा, “आधार पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है? हम यह आदेश नहीं देंगे कि आधार नागरिकता का अंतिम प्रमाण है।”
EC के वकील ने बताया आधार पर जोर क्यों?
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पीठ को बताया, “आधार के लिए बार-बार अनुरोध इसलिए किया जा रहा है क्योंकि बिहार के कुछ जिले ऐसे हैं जहाँ आधार की उपलब्धता 140% है।” इसका अर्थ है कि बड़े पैमाने पर वहां फर्जी पहचान पत्रों का प्रचलन है। केंद्र ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि कैसे अवैध बांग्लादेशी प्रवासी और रोहिंग्या कुछ राज्यों में धोखाधड़ी से आधार कार्ड हासिल करने में कामयाब रहे हैं।
पीठ ने राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और बूथ स्तर के एजेंटों को सक्रिय करें ताकि वे उन लोगों की पहचान कर सकें जिनके नाम मसौदा मतदाता सूची से गलत तरीके से हटा दिए गए हैं और उन्हें चुनाव आयोग के बूथ स्तर के अधिकारियों के समक्ष दावा दायर करने में मदद करें ताकि उनका नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल हो सके।
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