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निगम प्रशासक और प्राधिकरण अध्यक्ष क्या मंत्री होंगे..?

November 25, 2020

सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश से उत्पन्न भ्रम की स्थिति… नगरीय प्रशासन और आवास मंत्रालय भी असमंजस में
इंदौर। अब उपचुनावों के बाद निगम मंडलों-प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई, वहीं सामान्य प्रशासन विभाग ने कल एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि निगम मंडल, प्राधिकरणों सहित समितियों, परिषदों और अन्य संस्थाओं में जो अधिकारियों को प्रभार सौंपा गया था वह निरस्त किया जाता है और निगम मंडल, प्राधिकरणों के अध्यक्ष का कार्यभार संबंधित विभाग के मंत्री को सौंपा जाए। इससे यह भ्रम की स्थिति बन गई कि क्या निगम प्रशासक और प्राधिकरण अध्यक्ष का जिम्मा भी अब अफसर की बजाय विभागीय मंत्रियों के पास रहेगा? इस संबंध में नगरीय प्रशासन और आवास मंत्रालय भी असमंजस में है और इस संबंध में जारी आदेश का खुलासा भी करवाया जाएगा।
पूर्व की कमलनाथ सरकार ने जहां नगरीय निकायों के चुनाव आगे बढ़ा दिए थे, वहीं प्राधिकरणों के राजनीतिक बोर्ड भी भंग कर दिए थे। यही स्थिति निगम मंडलों की भी रही। इंदौर विकास प्राधिकरण में भी राजनीतिक बोर्ड नहीं काबिज है, जिसके चलते संभागायुक्त ही अध्यक्ष का जिम्मा संभाल रहे हैं और इसी तरह नगर निगम में भी चुनी हुई परिषद् और महापौर का कार्यकाल 28 फरवरी को समाप्त हो गया था। उसके बाद संभागायुक्त ही प्रशासक के रूप में काबिज हैं। मगर अब सामान्य प्रशासन विभाग के कल के आदेश के बाद भ्रम की स्थिति निर्मित हो गई है। उपसचिव ललित दाहिमा ने जो कल आदेश जारी किया उसमें कहा गया कि प्रदेश के समस्त निगमों, मंडलों, प्राधिकरणों, समितियों, परिषदों और अन्य संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, संचालक व सदस्यों के लिए मनोनयन तत्काल प्रभाव से निरस्त किए गए थे। उक्त आदेश में आंशिक संशोधन करते हुए प्रशासकीय विभाग के अंतर्गत निगमों, मंडलों, परिषदों और प्राधिकरणों के अध्यक्ष का कार्यभार संबंधित विभाग के भार साधक मंत्री को सौंपा जाए। इसका मतलब यह हुआ कि जो विभागीय मंत्री यानी नगरीय प्रशासन और आवास भूपेन्द्र सिंह हैं, क्या वे निगम प्रशासक और प्राधिकरण अध्यक्ष भी माने जाएंगे..? जब इस संबंध में नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के प्रमुख सचिव नीतीश व्यास से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे आज इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग से चर्चा करेंगे, क्योंकि असमंजस की स्थिति है। राज्य स्तरीय मंडल निगमों में तो इस आदेश का पालन ठीक है, लेकिन जिला स्तरीय निगम या प्राधिकरण में किस तरह होगा, इस संबंध में खुलासा करवाना जरूरी है। स्थानीय अधिकारियों का भी कहना है कि स्थानीय निगम या प्राधिकरण में विभागीय मंत्री को जिम्मा दिया गया तो वे कैसे काम करेंगे, क्योंकि रोजमर्रा से संबंधित कई निर्णय लेना होते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि उपचुनावों के बाद प्रदेश में अब भाजपा की सरकार तो तीन साल के लिए स्थायी हो गई है, जिसके चलते निगम मंडल, प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियों का दबाव बढऩे लगा है। वहीं जो 3 मंत्री हारे हैं उनके भी इस्तीफे हो गए और उन्हें भी निगम मंडल आयोग में समायोजित करने की चर्चा चल रही है। हालांकि राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि अभी नगरीय निकायों के चलते संभव है कि इसके बाद निगम-प्राधिकरणों में राजनीतिक नियुक्तियां हो।

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