
नई दिल्ली: भारतीय घरों के लिए सोना और चांदी (gold and silver) बचत और परंपरा के प्रतीक हैं. फिर भी, पिछले एक दशक में, ग्लोबल कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद, फिजिकल खरीदारी में भारी गिरावट आई है, जबकि इंपोर्ट बिल बढ़ गए हैं. कीमत की बात करें तो एक साल के भीतर सोने की कीमत में 63% और चांदी के दाम में 118% की बढ़ोतरी हुई है. एक्सपर्ट की मानें तो सोने और चांदी में ये तेजी अगले साल भी जारी रह सकती है. मांग में इजाफा और केंद्रीय बैंकों द्वारा बढ़ती खरीदारी के बीच सोने और चांदी की कीमतों में फिलहाल ब्रेक लगते नजर नहीं आ रहा. ऐसे में ये सवाल पूछा गया कि क्या सरकार सोने और चांदी की कीमतों पर कोई लगाम कसेगी?
DMK सांसदों थिरु अरुण नेहरू और सुधा आर ने लोकसभा में त्योहारों और शादियों के दौरान परिवारों पर बोझ कम करने के लिए केंद्र सरकार के स्टेबिलाइजेशन उपायों, जैसे ड्यूटी में कटौती, टैक्स में बदलाव या रिटेल कीमतों पर कंट्रोल के बारे में सवाल पूछे. उन्होंने रुपये की स्थिरता में RBI के सोने के भंडार की भूमिका के बारे में भी पूछताछ की. इसके जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि कीमती धातुओं की कीमतें बाजार तय करता है, सरकार उन्हें तय नहीं करती. हालांकि, राहत के कई कदम उठाए गए हैं.
वित्त मंत्रालय ने लोकसभा में कहा कि उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए, सरकार ने जुलाई 2024 में सोने के आयात पर कस्टम ड्यूटी 15 से घटाकर 6% कर दी. सरकार ने फिजिकल सोने की मांग को कम करने और घरेलू बेकार पड़े सोने को इस्तेमाल में लाने के लिए गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (GMS), गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETFs) और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम जैसे उपाय शुरू किए हैं, ताकि मांग का कुछ हिस्सा ताजा आयात के बजाय स्थानीय स्टॉक से पूरा हो सके, जिससे बाहरी निर्भरता और कीमतों पर दबाव कम हो. कमजोर अमेरिकी डॉलर के कारण सोने की तरफ निवेशकों का रुझान है. जबकि मजबूत औद्योगिक मांग और सप्लाई की कमी के कारण चांदी की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब बनी हुई है.
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved