
नई दिल्ली। प्लास्टिक (Plastic) हमारे खून (Blood) से लेकर हमारे दिल (Heart) और फेफड़ों (Lungs) तक पहुंच चुका है। वैज्ञानिकों (Scientists) का मानना है कि चाय (Tea) के प्लास्टिक के कप, गिलास, थाली और खिलौनों के माध्यम से हमारे शरीर के अंदर पहुंच रहा यह माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic) लोगों की अकाल मौत का कारण भी बन रहा है। ऐसे में राजस्थान (Rajasthan) की महिलाओं (Womens) का एक फैसला पूरे देश को नई राह दिखा सकता है। राजस्थान के एक गांव लोढ़ेरा की महिलाओं ने अब चाय की छन्नी का इस्तेमाल न करने का निर्णय लिया है, क्योंकि चाय की छन्नी से पिघलता प्लास्टिक लोगों के शरीर में पहुंचकर उन्हें बीमार बना रहा है।
दरअसल, यह पहल देश के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान की गई। चौधरी चरण सिंह की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में राजस्थान के डूंगरगढ़ इलाके के एक गांव की महिलाओं ने अब प्लास्टिक की चाय की छन्नी का इस्तेमाल न करने की शपथ ली है। इस अवसर पर चौधरी चरण सिंह विचार मंच कार्यकर्ता कविता ज्याणी ने बताया कि हम घरों में अधिकतर प्लास्टिक की चाय छलनी का उपयोग करते हैं। तीन-चार महीनों में ही गर्म चाय-दूध छानने से छलनी फट जाती है, क्योंकि गर्म चाय-दूध के साथ प्लास्टिक पिघल कर घुलता जाता है और ये घुला हुआ प्लास्टिक सीधा हमारे शरीर में जाता है। माइक्रो प्लास्टिक के ये कण हमारे स्वास्थ्य को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। लोढ़ेरा गांव से शुरू हुआ प्लास्टिक मुक्ति का यह अभियान चौधरी चरण सिंह विचार मंच द्वारा अब लगातार चलाया जाएगा।
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