
इंदौर। गांधी नगर गृह निर्माण संस्था के पक्ष में आए हाईकोर्ट आदेश के चलते मेट्रो डिपो को आबंटित की गई 2.1 हेक्टेयर यानी 5 एकड़ जमीन भी उलझन में पड़ गई और संस्था ने इसका मुआवजा भी मांगा है। हालांकि शासन की ओर से इस फैसले के खिलाफ एसएलपी भी दायर की जा रही है। मगर फिलहाल तो पूरी 441 एकड़ जमीन का मालिकाना हक गांधी नगर संस्था का तय हो गया है। दूसरी तरफ मेट्रो डिपो को कम जमीन आबंटित करने के जो कथित आरोप अफसरों पर लगे वे भी झूठे निकले। दस्तावेजों के जरिए संस्था ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जो 50 हजार स्क्वेयर फीट जमीन मेट्रो डिपो को कम दी उस पर 20 भूखंड सदस्यों को आबंटित पहले ही किए जा चुके थे और उन सभी की सूची भी जारी की गई है। एडीजे कोर्ट द्वारा दी गई डिक्री से लेकर हाईकोर्ट आदेश सहित तमाम आवश्यक दस्तावेज अग्रिबाण के पास भी उपलब्ध हैं। हालांकि संस्था के पदाधिकारी भी दूध के धुले नहीं और जमीनों की खूब बंदरबांट लगातार की जाती रही है।
इंदौर की तमाम गृह निर्माण संस्थाओं से कई गुना अधिक जमीन गांधी नगर संस्था के पास है। जब देश आजाद नहीं हुआ था उसके पहले मध्य भारत सरकार ने इंदौर गरीब कष्ट निवारक संस्था को 1946 में 441.61 एकड़ जमीन पट्टे पर दी थी। हालांकि इसमें से 200 एकड़ से अधिक जमीनें समय-समय पर शासन द्वारा आवंटित की जाती रही, जिसमें पंचायत भवन, गोम्मटगिरी, बोहरा कब्रिस्तान, टेलीफोन एक्सचेंज, बिजली विभाग, पुलिस थाना, से लेकर रेडक्रॉस सोसायटी और फिर मेट्रो डिपो के लिए भी नैनोद के खसरा नंबर 307/5 की 2.618 हेक्टेयर जमीन देना तय किया गया। मगर बाद में मौके पर उपलब्ध 2.1 हेक्टेयर जमीन ही आबंटित हो सकी, जिस पर वर्तमान में मेट्रो डिपो बन भी गया है। अभी तत्कालीन अपर कलेक्टर अभय बेड़ेकर सहित अन्य पर यह आरोप लगाए गए कि उन्होंने संस्था को उपकृत करते हुए 50 हजार स्क्वेयर फीट जमीन मेट्रो डिपो को कम आवंटित की और इसमें 50 करोड़ रुपए का घोटाला भी हो गया।
जबकि इस मामले में जो दस्तावेज सामने आए उससे यह स्पष्ट हुआ कि संस्था ने शासन की मांग पर मेट्रो डिपो के लिए पहले अवश्य 2.618 हेक्टेयर जमीन देने की बात कही थी, मगर जब रिकॉर्ड को चैक किया गया तो पता चला कि इसमें लगभग 50 हजार स्क्वेयर फीट जमीन ऐसी है जिस पर 20 भूखंड संस्था पहले ही अपने सदस्यों को आवंटित कर चुकी है और अगर मेट्रो डिपो के लिए ये जमीन भी आबंटित कर दी जाती तो फिर वे सदस्य कोर्ट-कचहरी करते और नतीजतन मेट्रो को दी गई पूरीजमीन विवाद में फंस जाती और मौके पर मेट्रो डिपो का निर्माण भी खटाई में पड़ जाता। लिहाजा अधिकारियों ने 20 भूखंडों की जमीन को छोडक़र शेष खाली पड़ी 2.1 हेक्टेयर यानी 5 एकड़ जमीन मेट्रो डिपो के लिए आबंटित करने का निर्णय लिया।
इस संबंध में अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि पहले एडीजी कोर्ट ने शासन के खिलाफ जो डिक्री की उसमें भी गांधी नगर संस्था को आबंटित पूरी 441 एकड़ जमीन का स्वामी माना और उसके बाद फिर अभी कुछ समय पूर्व इंदौर हाईकोर्ट ने दूसरी अपील पर फैसला सुनाते हुए शासन-प्रशासन की याचिकाएं खारिज करते हुए गांधी नगर संस्था के पक्ष में ही फैसला सुनाया और पूरी 441 एकड़ जमीन संस्था की ही मानी। यानी इसके मुताबिक वर्तमान में जो मेट्रो डिपो बना है उसकी 5 एकड़ जमीन भी संस्था में ही वर्तमान में शामिल है, जिसके चलते अब संस्था ने इस जमीन के मुआवजे की मांग भी शुरू कर दी और साथ ही भ्रामक खबरों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी की जा रही है। अग्रिबाण के पास मौजूद दस्तावेजों में उन 20 आवंटितों की सूची भी है जिसके बारे में आरोप लगाए गए कि 50 हजार स्क्वेयर फीट जमीन छोड़ दी। 20 आबंटितों के अलॉटमेंट पत्र भी वर्ष 2019 के ही हैं। जबकि मेट्रो डिपो को जमीन उसके बाद आबंटित की गई है। इस सूची में सार्थक रविन्द्र कुमार, ममता माहेश्वरी, मोनिका बाहेती, विमला मूंदड़ा, रमेश दास, शांतिदेवी, शीला सोडानी, मोहन सिंह, मंजीत सौदागर, राजेश जाधव, सन्नी पिता ताराचंद, राधाबाई, आदित्य जैन, आराधना, जितेन्द्र पवन, राजेश विनोद, सोहन प्रहलाद सिंह, आरती पति सतीश, रीना पति शेखर और हरीश राजमल के नाम शामिल हैं।
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