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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

February 06, 2023

अध्यक्षविहीन कांग्रेस में वेतन के लाले
कई सालों तक केन्द्र और राज्य की सत्ता में रहने वाली शहर कांगे्रस अपने लिए खुद का कार्यालय ही नहीं बना पाई और आज भी कार्यालय दूसरे की बिल्डिंग पर चल रहा है। अब अंदरखाने से एक और खबर सामने आ रही है कि यहां काम करने वाले तीन कर्मचाािरयों को तीन माह से वेतन ही नहीं मिला है। ये लोग लंबे समय से गांधी भवन में काम कर रहे हैं। पिछले दिनों जब कांग्रेस कार्यालय में एक आयोजन के दौरान एक कांग्रेस नेता ने वहां काम करने वाले कर्मचारियों से कहा कि वे सुबह जल्दी कार्यालय खोला करें, ताकि यहां आने वाले सुबह जल्दी आ सके। इसके बाद एक कर्मचारी ने उन्हें पलटकर जवाब दिया कि तीन महीने से तो हमें कोई वेतन का पूछने नहीं आ रहा है। जो वेतन मिल रहा है, उसमें इतना ही काम किया जा सकता है। इतना सुनते ही नेताजी ने चुपचाप अपना रास्ता नाप लिया।
दिल बड़ा है साब, बिल की चिंता मत करो
राजनीति करना हो तो जेब खुली रखना पड़ती है, बंद जेब के लोग राजनीति में सफल नहीं होते। विधायक बाबा के यहां उनकी मां की शोक बैठक थी, जिसमें आईडीए अध्यक्ष चावड़ा भी पहुंचे थे। उनसे जब पिछड़ा मोर्चा के उपाध्यक्ष जितेन्द्र कौल ने अपनी शॉप टिंकूस कैफे पर चाय पीने चलने के लिए कहा तो उन्होंने स्वीकृति दे दी, लेकिन चावड़ा के साथ 30 से 40 और लोग भी पहुंच गए। फिर चाय क्या सेंडविच और दूसरा नाश्ता भी चला। यह देख दूसरे नेताओं ने चुटकी ली कि बिल तो बहुत बड़ा हो गया होगा। इस पर कौल ने कहा कि आप तो मेरा दिल देखो, बिल की चिंता मत करो।


पटवारी की उड़ान पर निगाह रख रहे कांग्रेसी
जीतू पटवारी की ऊंची राजनीतिक उड़ान उन नेताओं को खटक रही है जो उनके समकक्ष हैं। सब जानते हैं पटवारी राहुल के नजदीकी हैं और कश्मीर में यात्रा के समापन पर उन्हें प्रभारी बनाया गया था। कड़ाके की ठंड में 15 दिनों से कश्मीर में डेरा डालकर रहने वाले पटवारी अब नया क्या करेंगे, ये समझ से परे हैं। राऊ विधानसभा में उन्होंने अपने भाई भरत को सक्रिय कर एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है, लेकिन पटवारी की निगाह कहां है, ये अभी समझ से परे हैं। कोई कह रहा है कि वे सांसद की तैयारी कर रहे हैं तो कोई कह रहा है कि संगठन में किसी बड़े पद पर वे जा रहे हैं।
बाबा भी चले मोदी की राह…दो दिन भी नहीं रखा शोक
बाबा की राजनीति में चुस्ती और फुर्ती उनके प्रतिद्वंद्वियों को मात दे ही जाती है। अपनी मां के अंतिम संस्कार और दूसरे दिन ही शोक बैठक के बाद हार्डिया तीसरे दिन विकास यात्रा की बैठक लेने रेसीडेंसी कोठी पहुंच गए। बैठक पहले से तय थी, इसलिए हार्डिया ने मना भी नहीं किया और पूरे समय बैठक में रहे और इत्मीनान से अपनी विधानसभा के सभी वार्डों में विकास यात्रा को लेकर चर्चा की। हालांकि चौथे दिन वे हरिद्वार पहुंच गए थे और वहां उन्होंने मां की अस्थ्यिां विसर्जित की। उनके समर्थक सोशल मीडिया पर बता रहे हैं कि बाबा अभी भी चुस्त-दुरूस्त हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी अपनी मां का अंतिम संस्कार कर उसी दिन अपनी दिनचर्या में शामिल हो गए थे, उसी तरह बाबा ने ठीक से दो दिन भी अपनी मां का शोक नहीं मनाया और पार्टी के काम पर निकल पड़े।
अच्छे दिन गायब हो गए
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को पिछले दिनों एक मामले में तीन साल की सजा हुई। फिलहाल ये राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। हर साल रविदास जयंती के कार्यक्रम में सबसे आगे रहने वाले ये राष्ट्रीय नेता इस बार पीछे-पीछे नजर आए। कई पोस्टर और होर्डिंग्स से उनका चेहरा नदारद था। एक-दो कार्यक्रम में जरूर वे दिखे। जिस वार्ड से वे पार्षद थे, वहां के भाजपा प्रत्याशियों को हराने में उनके रिश्तेदारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी और इस मामले में उनकी खूब छिछालेदारी भी हुई। इसे कहते हैं अच्छे दिन के बाद बुरे दिन का स्वाद चखना।


आप वाले भी हुए सक्रिय
भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देने वाली आम आदमी पार्टी इस बार विधानसभा चुनाव में खुलकर सामने आ रही है। पार्टी ने अंदरूनी तौर पर इसकी तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि पहले आप पार्टी अपना ढांचा मजबूत करना चाह रही है, जिसको लेकर प्रदेश की इकाई को भंग कर रखा है। अब नए सिरे से पदाधिकारियों की घोषणा होना है और उसमें समाज के ऐसे चेहरे शामिल किए जाएंगे, जिनका समाज में अच्छा प्रभाव है। शनिवार को भोपाल और आज इंदौर से सदस्यता अभियान की शुरूआत पार्टी कर रही है। देखना है कि कितने लोग भाजपा-कांग्रेस का विकल्प आप में तलाशते हैं?
तुलसी की दावत से क्यों दूर रहे सावन?
चुनाव को देखकर तुलसी सिलावट भी काम पर लग गए हैं। उपचुनाव में जीते सिलावट को अब मुख्य चुनाव का सामना करना है और यह भाजपाइयों के बिना मुश्किल है। इसी को लेकर उन्होंने पिछले दिनों एक होटल में राजनीतिक दावत दी थी और अपनी विधानसभा के प्रमुख कार्यकर्ताओं को बुलाया। किसी जमाने में धुर प्रतिद्वंद्वी रहे राजेश सोनकर को उन्होंने आगे रखा, लेकिन सांवेर की राजनीति के तीसरे ध्रुव सावन सोनकर इस दावत से नदारद रहे। सावन दूर थे या उन्हें बुलाया नहीं गया, इसको लेकर तरह-तरह की चर्चा होती रहीं। दरअसल सावन पहले तुलसी के हर आयोजन में नजर आ जाते थे, लेकिन उन्होंने अभी तो सांवेर से ही दूरी बना रखी है। शहर के आयोजनों में जरूर वे नजर आ जाते हैं।
प्रदेश सरकार की मंशा है कि विकास यात्राओं के माध्यम से वे लोगों के बीच जाएं। इसके पहले सीएम जनआशीर्वाद और जनदर्शन यात्रा निकालते आए हैं। उसके पहले अगर सरकार के कामों की जानकारी लोगों तक पहुंच जाए तो जनदर्शन आसान हो जाएगा, लेकिन जनप्रतिनधियों ने इसे स्वागत-सत्कार का जरिया समझ लिया है और पहले दिन ऐसे ही नजारें कई विधानसभा क्षेत्रों में दिखे। -संजीव मालवीय

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