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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

September 01, 2025


301 किलों के लड्डू में छुपी हसरत
श्री गणेश चतुर्थी (Shri Ganesh Chaturthi) महोत्सव में पूरे 10 दिन तक खजराना (Khajrana) के गणेश मंदिर (Ganesh Temple) में भक्तों की भीड़ लगी होती है। हर भक्त अपनी हसरत पूरी करने के लिए पूजा अर्चना और साधना करता है। कोई श्री गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ करता है, तो कोई गणेशजी के नाम का जाप करता है। पिछले दिनों भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे जब खजराना के गणेश मंदिर में 301 किलो का मोतीचूर का एक लड्डू लेकर साथियों के साथ पहुंचे तो भाजपा की अंदरूनी राजनीति में हल्ला मच गया… हर कोई यह अनुमान लगाने में लग गया कि आखिर गौरव का ऐसा कौन सा काम है, जिसके लिए उन्हें गणेशजी की कृपा की आवश्यकता है… राजनीति को अनुमानों से भी चलाया जाता है… तत्काल भाजपा नेताओं ने कारण ढूंढ लिया और कहने लगे कि इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष की कुर्सी पाने के लिए यह जतन किया जा रहा है… कारण जो भी हो, लेकिन गौरव द्वारा की गई गणेशजी की इस साधना से भाजपा के नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा बेचैन हो गए हैं…

हलो… आपका घर कहां है ..
इन दोनों ग्रामीण क्षेत्र के कांग्रेस के नेता बड़े चटकारे ले लेकर किस्से सुना रहे हैं… इन नेताओं के पास जिला अध्यक्ष के नियर और डियर लोगों का फोन आता है और वह इन नेताजी का पता पूछते हैं… पते में जब गांव का नाम बताया जाता है तो फिर अगला सवाल होता है कि यह गांव कहां आता है? कौन सी तहसील में आता है? इस गांव तक जाने का रास्ता कहां से.. कैसे हैं… अब नेता यह किस्सा सुनाते-सुनाते यह भी कहने से नहीं चूकते हैं कि जब पैराशूट से एंट्री होती है तो फिर गांव का रास्ता तो गूगल से समझ लेते… उसके लिए फोन लगाकर क्यों अपनी पगड़ी उछालवा रहे हो…

मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है
विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 4 में विधायक मालिनी गौड़ के निवास से इन दिनों पुराना गाना मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है… बज रहा है… यह गाना सराफा की चौपाटी को लेकर पैदा हुए विवाद के कारण बजाया जा रहा है। विधायक को यह कतई पसंद नहीं है कि उनके क्षेत्र में कोई अन्य नेता फैसला ले… उनकी तकलीफ भी यही है कि जब दूसरे विधानसभा क्षेत्र में उस क्षेत्र का फैसला विधायक ही लेता है तो फिर मेरे क्षेत्र में दूसरे नेता टांग अड़ाने के लिए क्यों आ जाते हैं..? इस क्षेत्र से विधायक बनने की जिस भी नेता की चाहत रहती है, वह अपने पद का उपयोग इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने और आधार तैयार करने में लगाता है… अब सराफा की चौपाटी का विवाद भी इसी तरह के प्रयास की एक कड़ी है… महापौर इस मामले में अपना फरमान सुना चुके हैं… पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन की किचन कैबिनेट के लोग विधायक के घर जाकर महापौर की इच्छा के पक्ष में अपना सुर अलाप चुके हैं… प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भी सराफा के व्यापारियों को यह समझा चुके हैं कि आपकी सारी समस्याओं का समाधान महापौर ही करेंगे… उनसे ही मिलो… अब व्यापारी असमंजस में है कि जाएं तो जाएं कहां…

परेशानी में आ गए महापौर
चंदन नगर बोर्ड के विवाद के मामले में महापौर पुष्यमित्र भार्गव परेशान होते हुए नजर आ रहे हैं… निगम के अधिकारियों के साथ तो वैसे भी उनकी तनातनी पुरानी है… अब जब चंदन नगर के बोर्ड का मामला जोर पकडऩे लगा तो निगम आयुक्त ने जांच कमेटी बैठा दी। इस कमेटी ने रिपोर्ट दे दी है। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर किसी छोटे अधिकारी पर कार्रवाई होना है। इसके साथ ही अधिकारी उस ठेकेदार पर भी कार्रवाई करने की तैयारी में है, जिसने इस काम को अंजाम दिया है। महापौर का तर्क है कि ठेकेदार का क्या दोष है? उसे तो अधिकारी जो कहेंगे, वही काम वह करेगा। ऐसे में महापौर नहीं चाहते हैं कि ठेकेदार पर कार्रवाई हो और अधिकारी इस घटना में अच्छे अवसर को तलाश रहे हैं। अधिकारियों की कोशिश है कि ठेकेदार पर कार्रवाई का चाबुक दिखाकर महापौर को दबाव में लिया जाए…

उलझ गए भाजपा के नगर अध्यक्ष
भाजपा के नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा नगर इकाई के गठन के मामले में उलझ गए हैं। भोपाल से विधायकों द्वारा की गई अनुशंसाओं के नाम उन्हें सौंप दिए गए हैं। अब उन्हें वरीयता का क्रम जमाना है। इस क्रम को जमाते हुए उन्हें एक गुट का प्रतिनिधित्व करने के ठप्पे को भी मिटाना है और सबको संतुष्ट भी करना है। यहां तो एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बनी हुई है। ऐसी स्थिति में संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा है। अब सुमित संकट में है कि किसका साथ दें और किसका साथ छोड़े। जिस नेता के समर्थकों को नगर इकाई में पर्याप्त वजन नहीं मिलेगा, वह नेता रूठ जाएगा। अब सुमित उस फार्मूले को ढूंढने में लगे हैं, जिससे एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए… के तहत किसी एक को साध कर सबको राजी रखा जा सके…

कांग्रेस की शहर इकाई में भी सब कुछ ठीक नहीं
कांग्रेस के शहर अध्यक्ष चिंटू चौकसे ने नई परंपराओं की शुरुआत के साथ काम शुरू कर दिया है। अभी औपचारिक तौर पर कार्यभार ग्रहण करना बाकी है, लेकिन काम तेजी से जारी है। जिले में चल रहे विरोध को नजरअंदाज करते हुए वह शहर में अपने काम को जमाने में लगे हैं। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या उन नेताओं की आ रही है जो की अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी कर रहे थे और जब से फैसला आया है, तब से शादी के रूठे हुए फूफाजी बनकर बैठ गए हैं। अब हर फूफाजी को संतुष्ट करने के लिए चिंटू निकल पड़े हैं… देखना है कितने फूफा संतुष्ट होते हैं और कितने घर बैठते हैं..
– डॉ. जितेन्द्र जाखेटिया

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