
नई दिल्ली । इसी महीने देश के अगले मुख्य न्यायाधीश (Next CJI) बनने जा रहे जस्टिस सूर्यकांत (Justice Surya Kant) ने डिजिटल अरेस्ट स्कैम (Digital arrest scam) पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इस पर नकेल लगाने की बात कही है। सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर इस स्कैम के खिलाफ अभी सख्त कदम नहीं उठाया गया और कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो यह गंभीर रूप अख्तियार कर लेगा।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “यह चौंकाने वाली बात है कि पीड़ितों से अब तक करीब 3000 करोड़ रुपये वसूले जा चुके हैं। इतनी रकम सिर्फ हमारे देश में वसूली गई है। अगर हम अभी इसे नज़रअंदाज करते हैं और कड़े आदेश नहीं दे पाते… तो समस्या और बढ़ जाएगी। हम इससे सख्ती से निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं।” इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “खासकर पीड़ित बुज़ुर्ग हैं, यही सबसे दयनीय पहलू है।”
पिछले महीने लिया था स्वत: संज्ञान
पिछले महीने शुक्रवार (17 अक्टूबर, 2025) को सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार “डिजिटल अरेस्ट” घोटालों के बढ़ते खतरे का स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे गंभीर चिंता का विषय बताया था। यह एक संगठित साइबर धोखाधड़ी है, जिसमें अपराधी जाली अदालती आदेशों का इस्तेमाल करके पैसे ऐंठने के लिए कानून प्रवर्तन या न्यायिक अधिकारी का रूप धारण करते हैं। पिछली सुनवाई पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार और सीबीआई से इस पर जवाब माँगा था।
बुजुर्ग दंपति से 1.5 करोड़ की ठगी
अदालत ने इस मामले पर तब संज्ञान लिया था, जब हरियाणा के अंबाला की 70 वर्षीय महिला ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखी थी। उसने अपनी चिट्ठी में बताया था कि कैसे सीबीआई, ईडी और न्यायिक अधिकारियों का भेष धारण करने वाले ठगों ने उनसे और उनके पति से करीब 1.5 करोड़ रूपये ऐंठ लिए थे। मामले में कथित तौर पर धोखेबाजों ने इस बुजुर्ग दंपति से फोन और वीडियो कॉल के जरिए संपर्क किया और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश दिखाए और कई बैंक लेनदेन के जरिए उनकी जीवन भर की जमा-पूंजी ट्रांसफर करने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद अंबाला की साइबर अपराध शाखा में दो एफआईआर दर्ज की गईं।
सुप्रीम कोर्ट की साख से जुड़ा है मामला
जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि सामान्य तौर ये अदालत राज्य पुलिस को केवल जांच में तेजी लाने का निर्देश देती लेकिन चूंकि इस मामले में जलसाजों ने सुप्रीम कोर्ट के नाम पर कई फर्जी दस्तावेज बनाए और यह अपराध किया, इसलिए शीर्ष अदालत इस मामले को बहुत ही गंभीरता से ले रही है। दरअसल, धोखेबाजों ने सुप्रीम कोर्ट का फर्जी आदेश तैयार किया था, जिनमें कथित तौर पर धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत बैंक खाते ज़ब्त करने का एक आदेश था। उस पर मुंबई के प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी की जाली मुहर और पदनाम वाला एक गिरफ्तारी आदेश भी था और न्यायिक हस्ताक्षरों वाला एक जाली आदेश भी था।
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