कराची । भारत की समुद्री सीमाओं (Maritime boundaries) पर अब एक नई चुनौती उभरने जा रही है। पाकिस्तान अगले साल से चीन में बनी एडवांस ‘हैंगर-क्लास’ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां (‘Hangar-class’ diesel-electric submarines) शामिल करना शुरू करेगा, जिससे हिंद महासागर और अरब सागर (Indian Ocean and Arabian Sea) में भारत की नौसैनिक बढ़त को चुनौती मिल सकती है।
पाकिस्तान नौसेना प्रमुख एडमिरल नईद अशरफ ने चीनी सरकारी मीडिया से बातचीत में पुष्टि की है कि पहली हैंगर-क्लास पनडुब्बी अगले साल सेवा में शामिल हो जाएगी। चीन और पाकिस्तान मिलकर कुल आठ पनडुब्बियां बना रहे हैं। इनमें से चार चीन में और चार पाकिस्तान में बनी हैं जो लगभग 5 अरब डॉलर के समझौते के तहत पाक को मिलेंगी। ये सभी पनडुब्बियां 2028 तक नौसेना में शामिल हो जाएंगी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हैंगर या टाइप-039A युआन-क्लास पनडुब्बियां अत्याधुनिक सेंसर और हथियार प्रणालियों से लैस हैं। इनमें स्टर्लिंग एयर-इंडीपेन्डेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक भी लगी है, जिससे ये पनडुब्बियां पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की तुलना में दो से तीन सप्ताह तक बिना सतह पर आए पानी के नीचे रह सकती हैं। इससे उनकी ‘स्टेल्थ’ यानी गुप्त रूप से संचालन करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।
फिलहाल भारतीय नौसेना के पास कोई भी AIP युक्त पारंपरिक पनडुब्बी नहीं है। एक वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि इन पनडुब्बियों से पाकिस्तान की A2/AD (एंटी-एक्सेस/एरिया डेनियल) क्षमता अरब सागर में काफी बढ़ जाएगी। हमें इसके लिए ठोस समाधान तलाशना होगा। चीन हमेशा पाकिस्तान की मदद के लिए मौजूद रहता है, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर में साफ दिखा।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान की तैयारी
7 मई को भारतीय वायुसेना द्वारा आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई के दौरान, पाकिस्तान ने चीनी जेट विमानों J-10 के साथ PL-15 एयर-टू-एयर मिसाइलों (200 किमी से अधिक दूरी वाली) का इस्तेमाल कर भारतीय वायुसेना को चौंका दिया था। अब यही चीन-पाक सैन्य सहयोग समुद्र में भी गहराता दिख रहा है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय नौसेना ने उत्तर अरब सागर में जबरदस्त प्रभुत्व दिखाया था, लेकिन अब पाकिस्तान चीन और तुर्किये की मदद से अपनी कमजोरियां दूर कर रहा है। अगली बार वह कहीं अधिक तैयार रहेगा।
भारत की नौसेना के सामने चिंता की बड़ी वजह
भारतीय नौसेना के पास फिलहाल 6 फ्रांसीसी स्कॉर्पीन श्रेणी की नई पनडुब्बियां, 6 पुरानी रूसी किलो-क्लास और 4 जर्मन HDW पनडुब्बियां हैं। इसके अलावा दो परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां (आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघाट) सेवा में हैं, जबकि तीसरी आईएनएस अरिदमन अगले वर्ष शामिल होने वाली है।
लेकिन नौसेना की परंपरागत (डीजल-इलेक्ट्रिक) पनडुब्बी क्षमता तेजी से घट रही है। प्रोजेक्ट-75 इंडिया (P-75I) के तहत छह नई जर्मन AIP पनडुब्बियां मुंबई की मजगांव डॉक में बनने की योजना अब भी कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर की प्रतीक्षा में है। इस परियोजना को मंजूरी नवंबर 2007 में मिली थी, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के बाद भी पहली पनडुब्बी आने में कम से कम 7-8 साल लगेंगे।
पाकिस्तान की बढ़ती समुद्री ताकत
पाकिस्तान के पास वर्तमान में तीन फ्रांसीसी Agosta-90B और दो Agosta-70 पनडुब्बियां हैं। माना जा रहा है कि पाकिस्तान अपनी तीसरी परमाणु त्रयी बनाने की दिशा में काम कर रहा है और Agosta-90B पनडुब्बियों पर 450 किमी मारक क्षमता वाली बाबर-3 क्रूज मिसाइलें लगाने की तैयारी में है। अधिकारियों के मुताबिक, हैंगर-क्लास पनडुब्बियों में भी बाबर-3 मिसाइलें तैनात की जाएंगी। वहीं चीन के पास 50 से अधिक डीजल-इलेक्ट्रिक और 10 परमाणु पनडुब्बियां हैं। इससे यह स्पष्ट है कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन-पाकिस्तान गठबंधन भारत के लिए नई रणनीतिक चुनौती बनता जा रहा है।
भारत की मौजूदा ताकत और रणनीति
हालांकि भारतीय नौसेना के पास अमेरिकी P-8I लंबी दूरी के पनडुब्बी-रोधी विमान, MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर और अत्याधुनिक एंटी-सबमरीन वॉरशिप्स हैं जिनमें उन्नत रडार, सोनार, टॉरपीडो, मिसाइलें और मल्टी-फंक्शनल रॉकेट लगे हैं। लेकिन पनडुब्बी बेड़े का घटता आकार चिंता का विषय बना हुआ है। भारत को अब तेजी से AIP तकनीक वाली नई पनडुब्बियां शामिल करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि अरब सागर और हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी रणनीतिक बढ़त बरकरार रहे।
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