
नई दिल्ली । पाकिस्तान(Pakistan) के एक मंत्री ने हाल ही में ऐसा बयान (statement)दे दिया है, जिसे सुनकर चीन (China)निश्चित रूप से अपना सिर पीट(head banging) रहा होगा। बीते दिनों पाकिस्तान के प्लानिंग मिनिस्टर अहसान इकबाल ने चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का जिक्र करते हुए कहा है कि पाकिस्तान को इस योजना से कोई लाभ नहीं मिला है। बता दें कि चीन इस परियोजना के तहत पाकिस्तान में अब तक अरबों डॉलर रुपए खर्च चुका है। ऐसे में पाक मंत्री का बयान ड्रैगन का पारा चढ़ा सकता है।
एक कार्यक्रम में बात करते हुए इकबाल ने कहा कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ने बार-बार विकास के अवसर गंवाए और “गेम चेंजर CPEC के फायदा नहीं ले पाई।” पाक मंत्री ने परियोजना के नाकामयाब होने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) सरकार पर चीनी निवेश की प्रतिष्ठा धूमिल करने का आरोप लगाया।
CPEC के क्या थे उद्देश्य?
CPEC चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की एक प्रमुख परियोजना है। इसे 2013 में शुरू किया गया था। यह चीन की एक मल्टी-मिलियन डॉलर परियोजना है जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के उत्तर-पश्चिमी शिंजियांग उइगर स्वायत्त प्रांत के काशगर शहर के सड़क, रेल और पाइपलाइनों के नेटवर्क से जोड़ना है। इसकी अनुमानित लंबाई लगभग 3,000 किलोमीटर है।
योजना के पीछे का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाना, व्यापार को बढ़ावा देना और चीन के वैश्विक प्रभाव का विस्तार करना है। सबसे अहम बात यह है कि परियोजना चीन को हिंद महासागर तक सीधी पहुंच प्रदान करती है। वहीं पाकिस्तान को इससे इन्फ्रास्ट्रक्चरल लाभ मिलने की उम्मीद थी।
2018 से रुकी है गाड़ी
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसी वरिष्ठ मंत्री द्वारा यह स्वीकार करना असामान्य है कि CPEC के लक्ष्य हासिल नहीं हो पाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 से परियोजना की कोई प्रगति नहीं हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कहा कि पाकिस्तान को सीपीईसी से थोड़े बहुत लाभ जरूर मिले हैं, लेकिन दीर्घकालिक उद्देश्य काफी हद तक पूरे नहीं हो पाए। रिपोर्ट के मुताबिक, “सीपीईसी का दूसरा चरण, जिसका उद्देश्य चीनी उद्योगों को पाकिस्तान में स्थानांतरित करना और तेज औद्योगीकरण के जरिए देश के निर्यात को बढ़ाना था, शुरू नहीं हो सका।”
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