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सुप्रीम कोर्ट में एक आदेश के पुनरावलोकन को लेकर विवाद, जजों के बीच हुई तीखी बहस

November 19, 2025

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक आदेश के पुनरावलोकन को लेकर फिर तल्ख बहस हुई। विवाद की शुरुआत 16 मई को जस्टिस ए. एस. ओका (Justice A. S. Oka) और जस्टिस उज्जवल भुइयां (Justice Ujjwal Bhuiyan) द्वारा दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हुई। फैसले को वापस लेने से ओडिशा में एम्स सहित देशभर में कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर से ध्वस्तीकरण का खतरा टल गया है, जिसके तहत केंद्र को परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया गया था। चीफ जस्टिस बीआर गवई (Chief Justice BR Gavai) और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन द्वारा बहुमत (2:1) से लिए गए फैसले में कहा गया है कि अगर 16 मई के आदेश को वापस नहीं लिया गया, तो इसके परिणामस्वरूप लगभग 20,000 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन से निर्मित विभिन्न इमारतों, परियोजनाओं को ध्वस्त कर दिया जाएगा।


फैसले में कहा गया है कि राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं पर संभावित “विनाशकारी प्रभाव” का हवाला दिया गया है, जिसमें ओडिशा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का 962 बिस्तरों वाला अस्पताल और एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा शामिल है। CJI बीआर गवई ने बाद में इस फैसले को वापस लेने का फैसला किया, जिस पर जस्टिस भुइयां ने कड़ा असंतोष व्यक्त किया।

16 मई को जिस पीठ ने फैसला दिया था उसमें जस्टिस भुइयां भी शामिल थे। उन्होंने 97 पन्नों का एक असहमतिपूर्ण फैसला लिखा। उन्होंने सीजेआई के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह पर्यावरण न्यायशास्त्र की अनदेखी है। उन्होंने कहा कि CJI का फैसला “पर्यावरण न्यायशास्त्र के बहुत ही बुनियादी सिद्धांतों को नजरअंदाज” करता है। जस्टिस भुइयां ने CJI के फैसले को “राय की एक निष्पाप अभिव्यक्ति” कहा, जिसने कई लोगों को चौंका दिया, क्योंकि CJI गवई को ‘ग्रीन बेंच’ के प्रमुख के रूप में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की वकालत करने के लिए जाना जाता है।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं केवल केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सार्वजनिक उपक्रमों आदि की ओर से संचालित परियोजनाओं पर (16 मई के) फैसले के प्रभाव पर विचार कर रहा हूं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि निजी व्यक्तियों/संस्थाओं द्वारा शुरू की जा रही परियोजनाओं पर प्रभाव कई गुना हो सकता है।” सीजेआई गवई ने जस्टिस भुइयां के असहमतिपूर्ण फैसले को प्राप्त करने के बाद एक अप्रत्याशित कदम उठाया। फैसले में कोई बदलाव नहीं हुआ। सीजेआई गवई ने घोषणा की कि उन्होंने अपना असहमतिपूर्ण फैसला प्राप्त करने के बाद भी अपने 84 पन्नों के फैसले में एक भी शब्द नहीं बदला है।

उन्होंने कहा कि कोर्ट रूम नंबर 1 में असहमतिपूर्ण फैसले द्वारा सीजेआई के फैसले की आलोचना करने और सीजेआई द्वारा प्रतिक्रिया देने की एक मिसाल है। इससे पहले समान-विवाह मामले में जस्टिस एस. आर. भट और CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ के बीच हुआ था। इसके बावजूद, उन्होंने इस परंपरा से अलग हटकर कोई प्रतिक्रिया न देने का निर्णय लिया। जब जस्टिस भुइयां ने अपने फैसले में CJI की आलोचना करने वाले पैराग्राफ को पढ़ने से मना कर दिया और कहा कि वह कुछ अंतर्धाराएं नहीं पढ़ना चाहते हैं। इसपर CJI गवई ने उन्हें इसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि यह सार्वजनिक डोमेन में होगा।

जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने सीजेआई गवई के साथ सहमति जताते हुए एक अलग फैसला लिखा। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि जस्टिस भुइयां का असहमतिपूर्ण मत उस फैसले की कड़ी निंदा करता था जो समीक्षा की अनुमति दे रहा था। जस्टिस चंद्रन ने कहा कि असहमति एक स्वस्थ न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन इसे सही और गलत की अपनी मान्यताओं के प्रति अत्यधिक निष्ठा से दूरी बनाकर अभ्यास में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि समीक्षाधीन फैसले ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत प्रदत्त शक्ति और वैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन में दिए गए उपक्रम से संबंधित कानूनी सिद्धांतों पर ध्यान नहीं दिया। जस्टिस चंद्रन ने CJI गवई की राय से पूरी तरह सहमति जताई और कहा कि समीक्षा न केवल उचित थी, बल्कि अनिवार्य और समीचीन भी थी।

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