
नई दिल्ली । सीजेआई सूर्यकांत (CJI Suryakant) ने कहा कि भारत में घुसपैठियों के लिए (For infiltrators in India) क्या रेड कार्पेट बिछाएं (Should roll out the Red Carpet) ? सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि घुसपैठिए घुसेंगे और फिर अधिकार मांगेंगे।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ घुसपैठियों के मुद्दे पर एक हैबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मई महीने में दिल्ली पुलिस ने कुछ रोहिंग्या व्यक्तियों को हिरासत में लिया, जिसके बाद से उनका कोई पता नहीं चल रहा, साथ ही याचिका में मांग की गई कि यदि उनको उनके देश लौटाना हो, तो यह प्रक्रिया कानून के अनुसार ही होनी चाहिए। याचिकाकर्ता चाहते थे कि केंद्र सरकार इन रोहिंग्या के हिरासत और निष्कासन से जुड़ी जानकारी साझा करे। केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “उत्तर भारत की तरफ हमारी बहुत संवेदनशील सीमा है, और उम्मीद है कि आप सभी जानते हैं कि देश के अंदर क्या स्थिति चल रही है।” उन्होंने कहा, “आप चाहते हैं कि उनके लिए लाल कारपेट बिछा दिया जाए? वे सुरंग के रास्ते प्रवेश करें और फिर भोजन, आश्रय, बच्चों की शिक्षा जैसे अधिकार मांगें?” मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि क्या हम कानून को इस तरह खींचना चाहते हैं? क्या हमारे गरीब बच्चे इन सुविधाओं के हकदार नहीं हैं? ऐसे मामलों में हैबियस कॉर्पस की मांग करना बहुत कल्पनात्मक है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 16 दिसंबर को दोबारा सुनवाई के लिए आएं। इसके साथ ही कोर्ट ने नोटिस भी जारी करने से भी इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या को शरणार्थी कहे जाने पर भी सवाल उठाए और पूछा कि क्या घुसपैठियों को शरणार्थी का दर्जा दिया जा सकता है? उन्होंने पूछा, “क्या कोई अगर घुसपैठ करके देश में आता है तो उसे भारत में रहने का अधिकार दिया जा सकता है?”
याचिकाकर्ता की वकील ने कहा कि वे न तो रोहिंग्याओं के लिए विशेष अधिकार मांग रही हैं और न ही किसी को वापस बुलाने की मांग है। याचिका का एकमात्र उद्देश्य है कि सरकार अपने ही बनाए निर्वासन प्रक्रिया का पालन करे। उनका कहना था कि अदालत पहले ही सलीमुल्लाह मामले (2020) में कह चुकी है कि रोहिंग्याओं को सिर्फ वहीं वापस भेजा जा सकता है, जब प्रक्रिया कानून के अनुसार हो।
बता दें कि इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों से जुड़े एक अन्य मामले में कहा था कि भारत दुनिया की धर्मशाला नहीं बन सकता, जहां हर तरफ से शरणार्थियों को स्वीकार किया जाए। इसके अलावा, मई में अदालत ने एक और याचिका में यह टिप्पणी भी की थी कि रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंकने की कहानी एक सुलेख कथा जैसी लगती है।
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