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अग्निबाण एक्सपोज… धारा 52 के तहत सिर्फ वर्तमान में चल रही टीपीएस योजनाओं में ही संशोधन के हैं

August 11, 2025

  • योजना 171 का बवाल, प्राधिकरण बोर्ड को संशोधन के अधिकार ही नहीं, शासन भी नहीं देगा मंजूरी जिन संस्थाओं को मुक्त करने के किए दावे, उनके ही भूखंड पीडि़त भडक़े
  • – 5 करोड़ 89 लाख की राशि प्राधिकरण करवा चुका है जमा
  • – 13 संस्थाओं में से एक की जमीन सरकारी भी घोषित
  • – योजना 97 में छोड़ी जमीनों की जांच करवा रहा है शासन
  • – निजी जमीन मालिक भी लेंगे अदालत की शरण
  • – मोडिफिकेशन का प्रस्ताव विधि विरुद्ध और अव्यावहारिक

इंदौर। योजना 171 को लेकर प्राधिकरण एक बार फिर उलझ गया है। अभी दो दिन पूर्व हुई बोर्ड बैठक में अजीबोगरीब फैसला लिया गया, जिसमें गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों को मुक्त करने और सरकारी के साथ निजी जमीनों पर योजना जारी रखने का प्रस्ताव पारित किया गया और इस आशय के संकल्प को अब शासन की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जबकि यह निर्णय ना सिर्फ विधि विरुद्ध, बल्कि अव्यवहारिक भी है, जिसे शासन भी खारिज कर देगा। यहां तक कि जिन संस्थाओं की जमीनें छोडक़र भूखंड पीडि़तों को राहत देने के दावे किए गए उन्होंने ही प्राधिकरण बोर्ड के निर्णय को उलझाने वाला और जनहित विरोधी बताया है। इन पीडि़तों का स्पष्ट कहना है कि देय प्रतिफल की राशि जो कि 5 करोड़ 89 लाख रुपए होती है, उसे जमा कराने के बाद योजना स्वत: ही व्यपगत यानी समाप्त हो जाती है और धारा 52 के तहत उन्हीं योजना में मोडिफिकेशन यानी संशोधन किया जा सकता है जो वर्तमान में चल रही है। यानी टीपीएस योजनाओं में ही इस तरह के संशोधन संभव हैं। योजना 171 में तो प्राधिकरण ने एक इंच जमीन का अधिग्रहण नहीं किया। लिहाजा योजना ही निष्क्रिय अवस्था में है।

अभी तक यह उम्मीद थी कि प्राधिकरण में अफसरों का जो बोर्ड काबिज है, वह विधि अनुरूप निर्णय करेगा। मगर उसके उलट 13 गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों को योजनाओं से मुक्त करने का निर्णय लिया गया, जबकि इनमें से अधिकांश संस्थाएं ना सिर्फ दागी हैं, बल्कि शासन-प्रशासन, पुलिस, सहकारिता विभाग उनकी जांच करता रहा और इन जमीनों को हड़पने वाले भूमाफियाओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई गई। इतना ही नहीं, एक गृह निर्माण संस्था त्रिशला के खिलाफ प्रशासन ने विस्तृत आदेश जारी कर उसे सरकारी भी घोषित किया और नगर निगम को हॉकर्स झोन बनाने के लिए ये जमीन आवंटित की। हालांकि उस पर हाईकोर्ट स्टे चल रहा है, वहीं प्रशासन को अभी तक इन गृह निर्माण संस्थाओं के सदस्यों की वरीयता या प्राथमिक सदस्यों की सूची ही हासिल नहीं हो पाई है और ना ही इन संस्थाओं के ऑडिट हुए। कलेक्टर आशीष सिंह खुद कई मर्तबा देवी अहिल्या सहित अन्य संस्थाओं की जांच करने के निर्देश सहकारिता विभाग को दे चुके हैं।

पूर्व में प्रशासन ने ऑपरेशन भूमाफिया के दौरान शिविर लगाकर मजदूर पंचायत गृह निर्माण संस्था की कॉलोनी पुष्पविहार सहित अन्य में भूखंडों का कब्जा दिलवाया था। इन पीडि़तों को कब्जा मिलने के बाद प्राधिकरण एनओसी के बिना चूंकि मकान बनाने की अनुमति नहीं मिल सकती इसलिए ये पीडि़त परेशान हो रहे हैं। मगर इन्हें राहत देने की बजाय प्राधिकरण बोर्ड ने उल्टा उलझा दिया है। पुष्प विहार कॉलोनी प्लॉटधारक समूह द्वारा आज ही प्राधिकरण अध्यक्ष और संभागायुक्त दीपक सिंह को दो पेज का पत्र सौंपा है, जिसमें 8 अगस्त को आयोजित बोर्ड मीटिंग में लिए फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया है। इस समूह के महासचिव एनके मिश्रा का दो टूक कहना है कि योजना 171 के लिए प्राधिकरण ने देय प्रतिफल की पूरी राशि संशोधित विधान की धारा 50 (ख) के तहत जमा करवा ली है, तो योजना ही स्वत: समाप्त हो गई और प्रदेश शासन के गजट नोटिफिकेशन में भी नियम 23 के तहत इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है। बावजूद इसके योजना को लटकाने के उद्देश्य से मोडिफिकेशन करने का विधि विरुद्ध और अव्यावहारिक निर्णय किया गया, जिसकी शासन भी मंजूरी नहीं देगा, क्योंकि धारा 52 के तहत उन्हीं योजनाओं में मोडिफिकेशन के निर्देश देने की व्यवस्था है, जो वर्तमान में चल रही है। जैसे उदाहरण के लिए प्राधिकरण द्वारा घोषित टीपीएस योजनाओं में ही इस तरह के संशोधन संभव हैं। जबकि योजना 171 में चूंकि धारा 50 (ख) के तहत देय प्रतिफल की राशि पूरी जमा की जा चुकी है। लिहाजा योजना स्वत: व्यपगत हो चुकी है, जिसे डीनोटिफाइड करने की भी आवश्यकता नहीं है। मिश्रा के मुताबिक वैधानिक प्रावधान को नजरअंदाज करते हुए बोर्ड बैठक में जानबूझकर योजना 171 को लटकाने के उद्देश्य से मोडिफिकेशन का विधि विरुद्ध जो निर्णय लिया गया उसे शासन भी मान्य नहीं करेगा। यहां तक कि हाईकोर्ट में भी प्राधिकरण ने कुछ समय पूर्व यह शपथ-पत्र दिया था कि प्रभावित भू-स्वामियों की जानकारी प्राप्त होने पर नियमानुसार मुक्ति कीकार्रवाई की जाएगी। इन भूखंड पीडि़तों का यह भी कहना है कि योजना 171 के व्यपगत होने की सूचना का प्रकाशन राजपत्र में करवाने के बाद मुक्त हुए सरकारी खसरों पर कोई नई योजना लाने का प्रस्ताव अगर शासन को भेजा जाता है जिसमें सहकारी संस्थाओं की जमीनों को नई योजना में पुन: शामिल नहीं किया जाएगा तब ही हम इसका स्वागत कर सकेंगे। अभी तो प्राधिकरण बोर्ड ने 6 हजार भूखंडधारकों के साथ छलावा ही किया है और वर्षों पुरानी समस्या का निराकरण नहीं हुआ।

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