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समझौता हुआ…पर कभी भी टूट सकती है शांति, मुजफ्फराबाद-रावलकोट और कोटली समेत इलाकों में सुरक्षाबल तैनात

October 06, 2025

मुजफ्फराबाद। पाक-अधिकृत कश्मीर (POK) में आंदोलनकारी और पाकिस्तान सरकार (Pakistan Goverment) के बीच हुए समझौते के बाद हालात भले ही फिलहाल नियंत्रण में दिख रहे हों, लेकिन जमीनी तनाव अब भी गहराया हुआ है। मुजफ्फराबाद, रावलकोट और कोटली जैसे इलाकों में सुरक्षा बलों (Security Forces) की भारी तैनाती है, जबकि स्थानीय संगठन यह साफ कर चुके हैं कि वे केवल अस्थायी रूप से पीछे हटे हैं। इस समझौते के बावजूद बिजली दरों, गेहूं सब्सिडी और प्रशासनिक अधिकारों को लेकर असंतोष कायम है। स्थानीय मीडिया का कहना है कि यह थोपी गई शांति किसी भी वक्त फिर से टूट सकती है।

इस्लामाबाद और पीओके के प्रतिनिधियों के बीच यह समझौता तीन दौर की बातचीत के बाद हुआ, जिसमें मुख्य भूमिका आजाद कश्मीर के प्रधानमंत्री चौधरी अन्वर-उल-हक और पाकिस्तानी गृह मंत्रालय ने निभाई। सरकार ने आंदोलनकारियों की कुछ प्रमुख मांगें स्वीकार कीं हैं, जिनमें बिजली दरों में तत्काल अस्थायी कटौती, गेहूं की कीमतों पर सब्सिडी बहाल करना, गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों की रिहाई और पीओके में प्रशासनिक सुधारों पर एक संयुक्त समिति का गठन शामिल है। स्थानीय समाचार पत्र के अनुसार कई सरकारी अफसरों को गुपचुप निर्देश मिले हैं कि किसी भी नए प्रदर्शन की स्थिति में तुरंत कार्रवाई की तैयारी रखी जाए।


आजाद कश्मीर ज्वाइंट पीपल्स मूवमेंट, पीओके ट्रेडर्स एलायंस, कश्मीर सिविल सोसायटी नेटवर्क और यूथ फॉर फ्रीडम फ्रंट ये चार संगठन इस आंदोलन के प्रमुख आधार थे। इन संगठनों ने अब एक साझा मंच बनाया है, जिसका उद्देश्य सरकार के वादों पर निगरानी रखना है। मुजफ्फराबाद से कश्मीर डेली टाइम्स के संवाददाता साजिद महमूद के अनुसार स्थानीय नेताओं ने तय किया है कि वे फिलहाल हिंसक प्रदर्शन नहीं करेंगे, लेकिन अगर सरकार ने वादे तोड़े तो पूरा इलाका फिर से बंद होगा और आंदोलन पहले से भी ज्यादा ताकतवर और निर्णायक होगा।

आंदोलन में पहली बार सक्रिय भूमिका निभाने वाली महिला संगठनों ने भी अपना नेटवर्क बनाए रखा है। वीमेन वॉइस ऑफ कश्मीर की संयोजक रेशमा तनवीर ने कहा,हमने साबित किया कि पीओके की महिलाएं अब सिर्फ दर्शक नहीं हैं। संगठन का कहना है अगर हमें फिर से सड़कों पर उतरना पड़ा तो इस बार और संगठित ढंग से उतरेंगी। ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के समूह गुपचुप तरीके से राहत सामग्री और सूचना-साझाकरण का नेटवर्क चला रहे हैं, ताकि आंदोलन दोबारा सक्रिय होने की स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके।

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