भारत का ऐसा शख्स जो 400 साल पहले था अथाह संपत्ति, अंग्रेज भी मांगते थे उधार

सूरत (soorat)। अगर पूछा जाए कि दुनिया का सबसे अमीर बिजनेसमैन(rich businessman)  कौन है? तो अधिकतर लोगों के जवाब होंगे एलोन मस्क, या फिर मौजूदा समय में दुनिया के सबसे अमीरों की सूची में शामिल लोग. ये सही भी है, इन्हीं के पास तो है दुनिया में सबसे ज्यादा दौलत. वहीं बात अगर भारत के सबसे बड़े अमीरों की हो तो अंबानी और अडानी जैसे नाम लिए जाएंगे. लेकिन अगर अब तक के दुनिया के सबसे बड़े बिजनेसमैन की बात करें तो ये नाम बहुत से लोगों की सोच से परे होगा.

वैसे भी भारत सदियों से दुनिया के लिए एक बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा. दुनियाभर से कई लोग भारत में व्यापार करने के लिए आए. आज भारतीय उद्योगपतियों का पूरी दुनिया में जलवा और व्यापार है, लेकिन क्या आप सदियों पुराने एक बिजनेसमैन के बारे में जानते हैं, जिनकी ख्याति 400 साल पहले ही दुनियाभर में हो चुकी थी.

हम बात कर रहे हैं वीरजी वोरा की, जिनका नाम बहुत कम लोग ही जानते हैं. यह शख्स अंग्रेजों के जमाने में भारत का सबसे अमीर बिजनेसमैन हुआ करता था. इतना नही नहीं वीर जी वोरा ने मुगल काल भी देखा.

वीर जी वोरा उर्फ ‘मर्चेंट प्रिंस’
वीरजी वोरा (Veerji Vora) को अंग्रेज मर्चेंट प्रिंस के नाम से जानते थे, बताया जाता है कि वे 1617 और 1670 के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी के एक बड़े फाइनेंसर थे. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को 2,00,000 रुपये की संपत्ति उधार दी थी. डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, 16वीं शताब्दी के दौरान वीरजी वोरा की नेटवर्थ लगभग 8 मिलियन डॉलर यानी 65 करोड़ रुपये से ज्यादा थी. सोचिये आज से 400 साल पहले के 65 करोड़ की कीमत खरबों रुपये में होगी. आज के नामी उद्योगपतियों से वे कई गुना अमीर थे.


मुगल बादशाह ने मांगी थी मदद
ऐतिहासिक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वीरजी वोरा कई सामानों का व्यापार करते थे, जिनमें काली मिर्च, सोना, इलायची और अन्य चीजें शामिल थीं. वीरजी वोरा 1629 से 1668 के बीच अंग्रेजों के साथ कई व्यापारिक काम किए. वह अक्सर किसी उत्पाद का पूरा स्टॉक खरीद लेते थे और उसे भारी मुनाफे पर बेच देते थे. वीर जी वोरा एक साहूकार भी था और यहां तक की अंग्रेज भी उससे पैसा उधार लेते थे. कुछ इतिहासकारों की मानें तो जब मुगल बादशाह औरंगजेब भारत के दक्कन क्षेत्र को जीतने के लिए युद्ध के दौरान वित्तीय बाधाओं का सामना कर रहा था, तो उसने पैसे उधार लेने के लिए अपने दूत को वीरजी वोहरा के पास भेजा था.

वीरजी वोरा का व्यवसाय और लेन-देन पूरे भारत और फारस की खाड़ी, लाल सागर और दक्षिण-पूर्व एशिया के बंदरगाह शहरों में फैला हुआ था. वीरजी वोरा के पास उस समय के सभी महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों पर एजेंट भी थे, जिनमें आगरा, बुरहानपुर, डेक्कन में गोलकुंडा, गोवा, कालीकट, बिहार, अहमदाबाद, वडोदरा और बारूच शामिल थे. 1670 में वीर जी वोरा ने दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन एक बिजनेसमैन के तौर पर उनकी पहचान आज भी कायम है.

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