मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है… हादसा कोई भी इस शहर में हो सकता है

आज खां जिक्रेखैर करेंगे न सिर्फ भोपाल बल्कि पूरे आलम के जानेमाने पिरेस फोटू गिराफर संजीव गुप्ता का। मियां खां को चालीस बरस हो गए प्रेस फोटोग्राफी करते हुए। गोया के भाई ने केमरे के साथ एक उम्र बिता दी हे। चंद रोज पेले संजीव भाई ने भोपाल का नाम पूरी दुनिया में रोशन करा हेगा। जर्मनी की यूरोपियन प्रेस फोटो एजेंसी (ईपीए ) में गुजिश्ता 18 बरसों से अपने ऑफबीट फोटो के जरिए छाए हुए संजीव भाई के हाल ही के कारनामे से भोपाल का नाम फिर एक बार पूरी दुनिया के मंजरे आम पे आ गया। जर्मनी के वल्र्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूज पब्लिशर्स (वैन इंफ्रा ) ने पूरी दुनिया से कोविड पर बेस फोटो मंगवाए थे। इनके उस फोटू को गोल्ड अवार्ड मिला जिसमे भदभदा विश्रामघाट पे कोविड से मारे गए करीब 40 लोगों के शव एक साथ जलाए जा रहे थे। हजारों फोटुओं में संजीव भाई का ये फोटो पहले गोल्ड अवार्ड के लिए चुना गया।


भाई के इस हुनर की वजह से भोपाल का नाम एक बार फिर पूरी दुनिया में छा गया। वैसे ईपीए में काम करते हुए इनके लीक से हटकर फोटो न्यूज वीक, टाइम, न्यूयार्क टाइम्स, द वीक और वॉल स्ट्रीट जर्नल में आए दिन छपते रहते हैं। इतने बरसों में संजीव केमरे, एंगल, लाईट, एक्सपोजर के उस्ताद हो गए हैं। उनके हाथों में कैमरा मोसिकी के किसी उस्ताद की तरह लगता है। कैमरा उनका जुनून है। जिस सब्जेक्ट को ये शूट कर रहे होते हैं उसकी तेह में घुस जाते हैं भाई मियां। एक बेहतर फोटो के लिए का जान कित्ता सबर और मेहनत लगती है ये कोई इनसे पूछे। इनकी तस्वीरों में हमे फोटोग्राफी का उरूज नजर आता है। इसी लिए इनके फोटुओं में आपको मोजार्ट की सिंफनी, हुसैन की कूची से बिखरे रंग या उस्ताद जाकिर हुसैन के तबले की थाप अंदर तक महसूस होती है। भोत भोत मुबारक हो साब। ऐसेई दुनिया में छाए रहो।

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