अग्निबाण एक्सपोज… निगम का लिखा पत्र भी पुलिस ने रद्दी की टोकरी में डाला, प्रशासन ने भी समान कार्रवाई का पीड़ितों को दिलाया था भरोसा, अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे

पिनेकल की एफआईआर में भी पुलिस ने दिखाया जादू… असल गुनहगार छूमंतर और दे डाली क्लीनचिट

इंदौर, राजेश ज्वेल। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) भूमाफियाओं को नैस्तनाबूत करने की घोषणाएं करते हैं, दूसरी तरफ इंदौर पुलिस (Indore Police) पूर्व में भी इन भूमाफियाओं को बचाती रही है और अब ऐसी ही जादूगरी पिनेकल ग्रैंड और पिनेकल द ग्रैंड कॉलोनी के घोटाले में की गई। लसूड़िया पुलिस ने एक बार फिर जादू दिखाते हुए तीन आरोपियों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की, मगर असली गुनहगारों को छूमंतर करने के साथ क्लीनचिट भी दे डाली। जबकि प्रशासन ने पिछले ही दिनों पीड़ितों को आश्वस्त किया था कि सभी दोषियों के खिलाफ एक समान कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं, नगर निगम के कॉलोनी सेल ने बकायदा लसूड़िया थाना प्रभारी को 9 जून को पत्र भी भेजा, उसे भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया।

नगर निगम के कॉलोनी सेल के अपर आयुक्त द्वारा लसूड़िया थाने को भेजे गए इस पत्र में एफआईआर दर्ज करवाने के अनुरोध के साथ निपानिया की 8.311 हेक्टेयर के आवासीय भूखंडीय विकास के मामले में श्रीमती नीना अग्रवाल पति संजय अग्रवाल, श्रीमती रीतु अग्रवाल पति मनोज अग्रवाल निवासी प्रगति विहार का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा कि इनके द्वारा जेएसएम डेवकॉन जरिए पिनेकल ग्रैंड और द ग्रैंड कॉलोनी काटी गई और अधिकांश भुगतान प्राप्त कर अलॉटमेंट लेटर भी दिए, किन्तु भूखंडों की रजिस्ट्री नहीं करवाई और उक्त जमीन अन्य भूमाफियाओं को फर्जी रजिस्ट्री से बेच डाली और बंधक रखे भूखंड भी अन्य व्यक्तियों को बेच दिए और जान-बूझकर भूमि विक्रय करने के तथ्य छुपाकर निगम से विकास अनुमति प्राप्त की गई। लिहाजा आमजनों के साथ धोखाधड़ी के इस मामले में इन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। मगर लसूड़िया पुलिस ने निगम के इस पत्र को भी दरकिनार करते हुए आशीष दास, पुष्पेन्द्र वडेरा और वाधवानी के खिलाफ कल एफआईआर दर्ज कर ली और मजे की बात यह है कि इस एफआईआर में संजय अग्रवाल सहित अन्य को क्लीनचिट भी दे डाली और लिखा कि संजय अग्रवाल जमीन मालिक हैं और कॉलोनाइजेशन की उन्हें कोई जानकारी नहीं हैं और वे मिलते-जुलते नाम की कम्पनी और फर्मों के जाल में उलझ गए। इधर पीड़ितों का कहना है कि पुलिस द्वारा जो ये फर्जी एफआईआर दर्ज की है इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होगा और असल गुनहगारों को पुलिस ने बख्श दिया, जिसके चलते वे कलेक्टर से भी मिलेंगे और फिर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की जाएगी। तमाम दस्तावेजों से स्पष्ट है कि संजय अग्रवाल व अन्य ने भी इस मामले में फर्जीवाड़ा किया और निगम में जो प्लॉट गिरवी रखे थे उसे सिमरन इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेचे और उनकी सहमति से ही जेएसएम देवकॉन्स ने भी सभी भूखंड विक्रय किए। अधिकांश रजिस्ट्रियां इनके द्वारा बिना डवलपमेंट और कम्पलिशन सर्टिफिकेट लिए ही कर दी गई।

एक आरोपी तो जेल में और दूसरा लम्बे समय से फरार ही

पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की उसमें पहले से ही जेल में बंद एक आरोपी पुष्पेन्द्र वडेरा है, तो दूसरा आरोपी आशीष दास लम्बे समय से फरार है और पुलिस उस पर पहले से ही 25 हजार का ईनाम घोषित कर चुकी है। ऐसे में पीड़ितों का कहना है कि जिन लोगों के खिलाफ पहले से ही एफआईआर है अब फिर उनकी नई एफआईआर से फायदा क्या मिलेगा। जबकि सभी 18 पीड़ितों ने सभी गुनहगारों के नामों का स्पष्ट खुलासा किया था। मगर पुलिस ने जेल में बंद और दूसरे फरार आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिपापोती कर दी।

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