बैसाखी… सिख समाजजनों ने गुरुद्वारा पहुंचकर मत्था टेका

किसान और फसलों के साथ जुड़ा हुआ है बैसाखी का महत्व

आज ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना हुई थी

इंदौर। फ़सल पकने के उल्लास का पर्व बैसाखी आस्था और उमंग के साथ मनाया । बड़ी संख्या में सिख समाजजन गुरद्वारों में पहुंचे और दीवान साहब के समक्ष मत्था टेका और अरदास की ।

गुरु अमरदास हॉल माणिकबाग रोड गुरुद्वारा में शनिवार को विशेष दीवान सजाया गया। बड़ी संख्या में संगत ने मत्था टेका। गुरुद्वारा रकाबगंज दिल्ली से पधारे ज्ञानी हरदेवसिंह हेड ग्रंथी ने संबोधित किया। हरमंदिर साहब अमृतसर के प्रसिद्ध कीर्तनकार सुरेंद्र सिंह, नछतर सिंह ने गुरुबाणी कीर्तन किया। गुरुद्वारा कलगीधर के अध्यक्ष मनमोहन सिंह सैनी और डॉ. गुरविंदर सिंह ने बताया कि गुरविंदर सिंह, मनमिंदर सिंह के जत्थे ने भी कीर्तन किया। कैप्टन पवनदीप सिंह ने नि:शुल्क पगडिय़ां वितरित की। सांसद शंकर लालवानी ने भी मत्था टेका, वहीं शहर के अन्य सभी गुरद्वारों में सिख समुदाय के लोग परिवार सहित पहुंचे और दीवान साहब के दर्शन किए। उल्लेखनीय है कि बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं । इस दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं, जिस कारण इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। बैसाखी का पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। बंगाली समाज पोइला बोइसाख पर्व मनाते हैं , वहीं बिहारी समाज बैसाखी पर सत्तूआन का पर्व मनाता है।

बैसाखी से खालसा पंथ का गहरा नाता

खालसा पंथ स्थापना दिवस बैसाखी का सिखों के साथ भी काफी गहरा संबंध रहा है। सन् 1699 में सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने आज के दिन श्री आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। दशम गुरु ने पुरुषों को अपने नाम के साथ सिंह और महिलाओं को अपने नाम के साथ कौर लगाने का आदेश दिया था। उन्होंने खालसा को पंज ककार- केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाण धारण करने के लिए कहा। बैसाखी के दिन ही महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंपा गया था।

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