मार्का लगे दाल-आटा, दही, बटर और लस्सी को जीएसटी में लाने से होगा महंगा: कैट

-राज्य के वित्त मंत्रियों को ज्ञापन देकर निर्णय वापस लेने की करेंगे मांग

नई दिल्ली। कारोबारी संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) (Business Organization Confederation of All India Traders (CAIT)) ने गुरुवार को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद (Goods and Services Tax (GST) Council) के हालिया फैसलों का विरोध जताया। दरअसल, जीएसटी परिषद मार्का वाले खाद्यान्न पदार्थों (Marked food items) बटर, दही, लस्सी, दाल आदि को 5 फीसदी टैक्स स्लैब के दायरे में लाने की अनुशंसा की है, जो 18 जुलाई, 2022 से लागू होने वाली है।

कैट और अन्य खाद्यान संगठनों ने जारी बयान में कहा कि जीएसटी परिषद का यह निर्णय छोटे निर्माताओं और व्यापारियों के मुकाबले यह बड़े ब्रांड के कारोबार में वृद्धि करेगा। जीएसटी परिषद का यह फैसला आम लोगों के उपयोग में आने वाली वस्तुओं को महंगा कर सकता है।

कारोबारी संगठन का कहना है कि अब तक ब्रांडेड नहीं होने के कारण विशेष खाद्य पदार्थों, अनाज आदि को जीएसटी से छूट मिली थी। लेकिन, जीएसटी परिषद के इस निर्णय से प्री-पैक, प्री-लेबल वस्तुओं को अब जीएसटी के दायरे में लाया गया है। इसको लेकर देशभर के विभिन्न राज्यों में अनाज, दाल और अन्य उत्पादों के राज्य स्तरीय संगठनों के व्यापारी काफी परेशान हैं। इसके लिए वे जल्द ही एक सम्मेलन बुलाने जा रहे हैं।

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने इस विषय को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात कर वस्तु स्थिति से उन्हें अवगत कराया है। खंडेलवाल ने उनसे आग्रह किया कि फिलहाल इस निर्णय को अमल में न लाया जाए। इसको लेकर कोई भी अधिसूचना जारी होने से पहले संबंधित व्यापारियों से इस मसले पर चर्चा की जाए। राजनाथ सिंह ने इस संबंध में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन से बातचीत करने का आश्वासन कैट को दिया है।

खंडेलवाल ने कहा कैट का एक प्रतिनिधिमंडल इस मुद्दे पर शीघ्र ही केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण्, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मिलकर उनसे इस निर्णय को स्थगित रखने का आग्रह करेगा। उन्होंने कहा कि इस मामले पर सभी राज्यों की अनाज, दाल मिल सहित अन्य व्यापारी संगठन अपने-अपने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ज्ञापन देकर इस निर्णय को वापिस लेने का आग्रह करेंगे। उन्होंने खेद जताते हुए कहा कि सभी राज्यों ने जीएसटी परिषद की बैठक में सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। क्योंकि इसके बारे में सोचना जाना जरूरी था कि छोटे शहरों के व्यापारी किस प्रकार इस निर्णय का पालना पाएंगे और इस निर्णय का आम लोगों पर वित्तीय बोझ किस प्रकार से पड़ेगा।

कैट महामंत्री ने कहा कि यह भी खेद की बात है कि देश में किसी भी व्यापारी संगठन से इस बारे में कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। उन्होंने कहा खास बात यह कि देश में केवल 15 फीसदी आबादी ही बड़े ब्रांड का सामान का इस्तेमाल करती है, जबकि 85 फीसदी जनता बिना ब्रांड या मार्का वाले उत्पादों से ही अपना जिवका चलाती है। इस लिहाजा से इन वस्तुओं को जीएसटी के टैक्स स्लैब के दायरे में लाना आम लोगों के लिए सही नहीं होगा। ऐसे में देश के सभी कारोबारी संगठन की जीएसटी परिषद से मांग है कि इस फैसले को वापस लेना चाहिए और तत्काल राहत देने के लिए इस निर्णय को अधिसूचित न किया जाए। (एजेंसी, हि.स.)

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