कांग्रेस प्रत्याशी का दर्द, पैसों के कार्यकर्ता, जनसंपर्क का लाखों खर्च

  • एक दिन के जनसम्पर्क के लिए डिमांड थी 5 लाख रुपए की, मिले 2 ही लाख रुपए
  • उम्मीदवार ने पूरी ताकत झोंकी पर चेहरा दिखाकर वाहवाही लूटने में लगे हैं कांग्रेस नेता

इंदौर। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की पसंद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के आग्रह के चलते इंदौर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए तैयार हुए अक्षय कांति बम की परेशानी उन्हीं की पार्टी के नेताओं ने बढ़ा रखी है। महज खानापूर्ति के लिए मैदान में नजर आ रहे कांग्रेस नेताओं की कोशिश यह है कि कांग्रेस उम्मीदवार की मजबूत आर्थिक स्थिति का लाभ लेकर चुनाव के चलते ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल जाए। इन नेताओं ने एक दिन के जनसंपर्क के लिए 5 लाख रुपए की डिमांड रखी थी, जैसे-तैसे दो लाख रुपए रोज पर मामला निपट पाया है। चौंकाने वाली बात यह है कि खुद को बहुत वरिष्ठ और बेहद सक्रिय बताने वाले ये नेता मानकर चल रहे हैं कि इंदौर में लगातार 10वीं बार भी कांग्रेस को शिकस्त मिलेगी। बूथ मैनेजमेंट कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है और यह काम व्यवस्थित रूप से हो जाए, इसके लिए संगठन स्तर पर कोई तैयारी नहीं है।

पहली बार चुनाव लड़ रहे बम ने अपना पक्ष मजबूत करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। उन्हें सामाजिक स्तर पर अच्छा समर्थन मिल रहा है और अलग-अलग संगठनों के लोगों के बीच जिस अंदाज में वे अपनी बात रखते हैं, उसका भी अच्छा संदेश जा रहा है। उनकी निजी टीम सभी आठ विधानसभा क्षेत्रों में बेहद सक्रिय है और बूथ मैनेजमेंट का काम इसी टीम ने संभाल रखा है। वे छोटे-छोटे समूहों में भी अपनी बात रख रहे हैं। महिलाएं और युवाओं के साथ ही व्यापारी वर्ग पर उनका विशेष फोकस है। कांग्रेस उम्मीदवार का सबसे कमजोर पक्ष शहर में कांग्रेस का छिन्न-भिन्न नेटवर्क और संगठन का बेहद कमजोर होना है। संसदीय क्षेत्र के आठों विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के नेता बंटे हुए हैं। हर नेता उम्मीदवार के सामने अपने को मजबूत बताने में लगा हुआ है और उसकी कोशिश है कि उसके विधानसभा क्षेत्र में आर्थिक व्यवस्थाओं के साथ ही सारे सूत्र उसी के हाथ में रहे।

उम्मीदवार द्वारा अन्य नेताओं को तवज्जो देने की स्थिति में ये नेता उसी की खिलाफत में लग जाते हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं में भी चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है। शहर एवं ग्रामीण क्षेत्र में हुए कांग्रेस उम्मीदवार के जनसंपर्क के दौरान गिने-चुने लोग ही उनके साथ नजर आए। उम्मीदवार द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे संसाधनों की बंदरबांट में भी नेता कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। शहर कांग्रेस अध्यक्ष सुरजीत सिंह चड्ढा का शहरी क्षेत्र के नेताओं से तालमेल भी नहीं है और न ही ये नेता उन्हें खास तवज्जो दे रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में भी कमोबेश यही स्थिति है। राऊ के ग्रामीण क्षेत्र के साथ ही सांवेर और देपालपुर में कांग्रेस पांव ही नहीं जमा पा रही है। राऊ, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का गृह विधानसभा क्षेत्र होने के बावजूद यहां कांग्रेस भारी परेशानी में है। कांग्रेस के चुनाव संचालक प्रमोद टंडन भी इसी क्षेत्र से हैं।

इंदौर 1 में संजय शुक्ला के पार्टी छोडऩे के बाद दीपू यादव को कमान सौंपी गई है। यहां पार्टी के दूसरे नेता, जिनमें कार्यवाहक अध्यक्ष गोलू अग्निहोत्री, वरिष्ठ नेता के.के. यादव शामिल हैं, बिल्कुल भी सक्रिय नहीं हैं। यहां से कांग्रेस कई नेता और कार्यकर्ता 25 अप्रैल को मुख्यमंत्री की मौजूदगी में भाजपा में शामिल होने वाले हैं। अस्वस्थता के बावजूद बुजुर्ग नेता कृपाशंकर शुक्ला सीमित दायरे में सक्रिय हैं।

इंदौर 2 में सारा दारोमदार नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे और वरिष्ठ नेता राजेश चौकसे पर है। ये दोनों पूरी ताकत से लगे हुए हैं, लेकिन यहां कांग्रेस के लिए भाजपा से पार पाना टेढ़ी खीर है।

इंदौर 3 में अश्विन जोशी और पिंटू जोशी के बीच तो तालमेल ठीकठाक है। कार्यवाहक ्अध्यक्ष अरविंद बागड़ी भी सक्रिय हैं और हारे-जीते पार्षदों से भी मदद मिल रही है। यहां अश्विन जोशी सारे सूत्र अपने हाथ में रखना चाहते हैं।

इंदौर 4 में खुद अक्षय कांति बम का नेटवर्क है, जो उन्होंने 2023 के विधानसभा चुनाव में दावेदारी मजबूत करने के लिए बनाया था। शहर कांग्रेस अध्यक्ष सुरजीत चड्ढा का प्रभाव यहां बहुत सीमित है और विधानसभा चुनाव में हारे राजा मांधवानी कोई रुचि ले नहीं रहे हैं। सुरेश मिंडा जैसे पुराने नेता जरूर ईमानदारी से बम की मदद कर रहे हैं। इंदौर 5 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सत्यनारायण पटेल, कार्यवाहक अध्यक्ष अमन बजाज के साथ ही शेख अलीम, अरविंद बागड़ी, छोटे यादव सक्रिय हैं।

देपालपुर में विशाल पटेल के कांग्रेस छोडऩे के बाद पटवारी ने सारी सूत्र दुग्ध संघ के अध्यक्ष मोतीसिंह पटेल को सौंप दिए हैं।

सांवेर में पार्टी रीना बौरासी के भरोसे है, पर दूसरे नेताओं से उनका तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। ये नेता उन्हें तवज्जो भी नहीं दे रहे हैं। इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हो रहा है।

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