सहयोगी दलों की भावनाओं को समझे कांग्रेस

– रमेश सराफ धमोरा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा नीत एनडीए गठबंधन की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए देश के 28 प्रमुख विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाकर एक साथ चुनाव लड़ने का संकल्प जाहिर किया था। कांग्रेस गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है। मगर गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय दलों की ताकत भी कम नहीं है। क्षेत्रीय दल भी अपने-अपने प्रदेशों में मजबूत स्थिति में है। लगने लगा था कि आने वाले समय में यह गठबंधन भाजपा को टक्कर दे सकता है।

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आने लगा वैसे-वैसे क्षेत्रीय दलों के नेता कांग्रेस से सीटों का बंटवारा करने की बात करने लगे। मगर कांग्रेस पार्टी पहले कर्नाटक व हिमाचल विधानसभा चुनाव में व्यस्तता की बात कहती रही। फिर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना विधानसभा चुनाव के बहाने बात को टाल दिया। कांग्रेस के चलते विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों में आपसी सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया। हालांकि कांग्रेस पार्टी तेलंगाना को छोड़कर बाकी तीनों प्रदेशों में चुनाव हार गई। उसके बाद भी कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे को लेकर बात आगे नहीं बढ़ायी।

इसी के चलते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रदेश में अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। ममता बनर्जी वहां कांग्रेस को मौजूदा दो सीट बहरामपुर व दक्षिण मालदा ही देना चाहती है। जबकि कांग्रेस वहां 10 सीटों पर दावा कर रही है। ममता बनर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस बहुत कमजोर है। ऐसे में उनकी पार्टी ही भाजपा को हरा सकती। इसलिए वह कांग्रेस को दो से अधिक सीट नहीं देगी। इसके अलावा ममता बनर्जी इंडी गठबंधन में शामिल वामपंथी दलों के साथ किसी तरह का सीट बंटवारा या समझौता भी नहीं करना चाहती है। ममता बनर्जी की एकतरफा घोषणा से गठबंधन कमजोर पड़ा है। वहां कांग्रेस व वामपंथी दल बिना ममता बनर्जी के प्रभाव नहीं दिखा पाएंगे।

सीटों पर तालमेल नहीं होने के चलते ही विपक्षी गठबंधन के प्रमुख स्तंभ रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पुनः भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली है। नीतीश कुमार का इंडी गठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल होना, इंडी गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं है। नीतीश कुमार ने गठबंधन छोड़ने के बाद राष्ट्रीय जनता दल के बजाय कांग्रेस पर अधिक निशाना साधा। नीतीश कुमार का कहना है कि कांग्रेस के नेता मनमाने ढंग से गठबंधन को चलाना चाहते हैं। जिसके चलते उन्होंने गठबंधन छोड़ कर भाजपा के साथ जाने में ही जदयू की भलाई समझी।

इंडी गठबंधन का संयोजक नहीं बनाना भी नीतीश कुमार के जाने का एक बड़ा कारण रहा है। नीतीश कुमार चाहते थे कि उन्हें गठबंधन का संयोजक बनाया जाए। मगर कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन का अध्यक्ष नियुक्त करवा दिया। जिससे नीतीश कुमार खुन्नस खाए हुए थे। नीतीश कुमार चाहते थे कि गठबंधन का संयोजक बनने से वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो जाएंगे। मगर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। जिसके चलते उन्हें लगने लगा कि कांग्रेस अपने ही नेताओं को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने जा रही है। इसलिए उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाना बेहतर समझा।

उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए ग्यारह सीट व राष्ट्रीय लोकदल के लिए सात सीटें छोड़ कर बाकी 62 सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाने की घोषणा कर दी है। जबकि कांग्रेस वहां 20 सीटों पर दावेदारी जता रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास अभी एक मात्र रायबरेली की सीट है। जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वहां मात्र 6.31 प्रतिशत ही वोट मिले थे। उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने के चलते कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा था। वहां पिछले विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस को 2.33 पतिशत ही वोट मिल पाये थे। कांग्रेस वहां अकेले ही चुनाव लड़ेगी तो स्थिति बहुत कमजोर रहेगी।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, असम, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गोवा में कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ना चाहती है। जबकि इंडी गठबंधन में शामिल अन्य दलों के नेता चाहते हैं कि कांग्रेस अपने प्रभाव वाले प्रदेशों में भी साथी दलों के लिए कुछ सीटे छोड़े जिससे उनके प्रत्याशी वहां चुनाव लड़ सके। दिल्ली, पंजाब, गुजरात, गोवा में आम आदमी पार्टी का प्रभाव है। जिसके चलते आप चाहती है कि गोवा व गुजरात में कांग्रेस उनके लिए कुछ सीट छोड़े। बदले में दिल्ली व पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को कुछ सीट दे सकती है। मगर कांग्रेस चाहती है कि पंजाब में अधिक सीटों पर वह लड़े। इसी के चलते पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब की सभी 13 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।

बिहार में कांग्रेस को राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा माले, भाकपा, माकपा के साथ ही अन्य दलों के साथ समझौता करना पड़ेगा। इसी तरह झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा व राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में उतरेंगे। महाराष्ट्र में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी भी महाविकास अघाड़ी में शामिल हो गयी है। महाराष्ट्र में कांग्रेस को अघाड़ी में शामिल दलों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सीटों के बंटवारे की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

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