राहुल गांधी की यात्रा के पीछे कांग्रेस की क्या है रणनीति ? संगठन में नए सिरे से जान फूंकने की कोशिश

नई दिल्‍ली (New Delhi) । देश में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) होने हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को हराने के लिए 28 विपक्षी पार्टियां इंडिया गठबंधन (india alliance) के बैनर तले एक मंच पर आई हैं. चुनाव करीब आते जा रहे हैं, बीजेपी (BJP) ने उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. लेकिन कांग्रेस (Congress) और इंडिया गठबंधन में अभी सीट शेयरिंग का पेच भी नहीं सुलझा है.

सीट शेयरिंग का पेच पंजाब से दिल्ली और यूपी से बिहार तक सीट शेयरिंग का गणित कैसे सुलझाया जाए, इसे लेकर बैठकों का दौर चल रहा है और इन सारी कवायदों के बीच कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक राहुल गांधी मणिपुर से मुंबई तक ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पर निकल गए हैं.

राहुल गांधी ने इससे पहले दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा की थी. भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा में अंतर इतना है कि तब राहुल ने ज्यादातर पदयात्रा की थी जबकि इस बार की यात्रा के लिए हाइब्रिड मॉडल का इस्तेमाल किया जा रहा है.इस बार पद यात्रा का हिस्सा छोटा है और एक बड़ा हिस्सा विशेष बस और वाहनो के जरिए होनी है. राहुल गांधी ने इस यात्रा की शुरुआत के मौके पर आयोजित जनसभा में खुद इसके पीछे की वजह भी बताई. उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर से पश्चिम की यात्रा भी पैदल ही करना चाहता था. लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते समय का अभाव होने की वजह से यह संभव नहीं हुआ.

अब राहुल गांधी की इस यात्रा को लेकर सवाल उठने लगे हैं और उन सवालों की जड़ में भी यही दो शब्द हैं- लोकसभा चुनाव और समय का अभाव. सवाल 2024 चुनाव को लेकर कांग्रेस की गंभीरता पर भी उठ रहे हैं और राहुल गांधी की यात्रा पर भी. सवाल सीट शेयरिंग पर अब तक किसी ठोस फॉर्मूले के सामने नहीं आने को लेकर भी उठ रहे हैं और हर समय चुनावी मोड में रहने वाली बीजेपी को टक्कर देने के लिए विपक्ष का कोई ठोस विजन या एजेंडा सामने नहीं आने को लेकर भी. कांग्रेस की रणनीति पर भी सवालिया निशान लगाए जा रहे हैं लेकिन एक पहलू यह भी है देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता जिसे प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा बताते हैं, उस नेता ने जब यात्रा की शुरुआत कर दी है तो उसके पीछे भी जरूर कोई रणनीति होगी. इस यात्रा के पीछे रणनीति की चर्चा से पहले यात्रा का रूट जान लेना भी जरूरी है.

67 दिन में 15 राज्य, 110 जिलों से गुजरेगी यात्रा
14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई यह यात्रा 20 मार्च को मुंबई पहुंचकर संपन्न होगी. राहुल गांधी की यह यात्रा मणिपुर से शुरू होकर नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और गुजरात को भी कवर करेगी. राहुल गांधी अपनी इस यात्रा के दौरान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान भी जाएंगे जहां हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली थी. राहुल गांधी की यह यात्रा 355 लोकसभा सीटों को कवर करेगी जो कुल 543 सीटों के मुकाबले देखें तो करीब 65 फीसदी हैं.

राहुल गांधी की यात्रा के पीछे रणनीति क्या?
कांग्रेस का फोकस इन्हीं 355 सीटों पर है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन 355 सीटों में से महज 14 सीटें ही जीत सकी थी. राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत कुछ राज्य ऐसे भी थे जहां कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था. भारत जोड़ो न्याय यात्रा जिन राज्यों से गुजरेगी, उन राज्यों में कांग्रेस कमजोर स्थिति में है, खासकर यूपी-बिहार जैसे हिंदी बेल्ट के राज्यों में. कांग्रेस की रणनीति अब राहुल गांधी को जमीन पर उतारकर अपनी खिसक चुकी सियासी जमीन फिर से वापस पाने के लिए कोशिश करने की है. दूसरी रणनीति राहुल गांधी की कॉमन मैन वाली इमेज गढ़ने, लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की भी है कि हम भी आपके जैसे ही हैं, आपके बीच के हैं, आपके दुख-दर्द को समझने वाले हैं.

अब अगर इस यात्रा के नाम और टाइमिंग पर ध्यान दिया जाए तो राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जारी कार्यक्रमों, आस्था को कैश कराने की बीजेपी की रणनीति को काउंटर करने का प्लान भी झलकता है. कहा जा रहा है कि राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के जरिए बीजेपी की कोशिश भगवान राम और धर्म में लोगों की आस्था को वोट के रूप में कैश कराने की होगी.

आस्था से जुड़े इस विषय से बीजेपी की यूनिवर्सल हिंदू वोट बैंक के रूप में वोटों का नया समीकरण गढ़ने की रणनीति के मूर्त रूप लेने की सभावनाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता. कांग्रेस पिछले कुछ समय से जातिगत जनगणना की मांग को लेकर मुखर है तो उसके पीछे जातीय अस्मिता को धार देकर बीजेपी की इसी रणनीति को काउंटर करने का प्लान बताया जा रहा है.

राम मंदिर से बने माहौल को काउंटर करने की रणनीति
उत्तर प्रदेश और हिंदी पट्टी में जब माहौल राम मंदिरमय है, 22 जनवरी को रामलला की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही होगी, तब राहुल गांधी पूर्वोत्तर में होंगे. राहुल की यात्रा जब बिहार से हिंदी बेल्ट में प्रवेश करेगी, राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी होगी. यात्रा की टाइमिंग इस बात का संकेत मानी जा रही है कि कांग्रेस की रणनीति राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से बने माहौल को राहुल गांधी की इस यात्रा के जरिए जितनी हो सके उतनी कुंद करने की होगी. राहुल गांधी की इस यात्रा का नाम भी पार्टी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा रखा है.

अब यह भी समझना होगा कि इंडिया गठबंधन में शामिल लालू यादव और अखिलेश यादव हों या एनडीए में शामिल ओमप्रकाश राजभर और डॉक्टर संजय निषाद, ओबीसी पॉलिटिक्स के इन तमाम पहरुओं की सियासत का आधार सामाजिक न्याय की मांग, सामाजिक न्याय का वादा और सामाजिक न्याय को लेकर मुखरता ही रही है. अब कांग्रेस की इस यात्रा के नाम में न्याय शब्द शामिल किए जाने को ओबीसी पॉलिटिक्स और सामाजिक न्याय की पिच पर राहुल गांधी के आधिकारिक रूप से डेब्यू की तरह भी देखा जा रहा है.

संगठन में नए सिरे से जान फूंकने की रणनीति
जब भी किसी पार्टी के बड़े नेता किसी जगह का दौरा करते हैं तब वहां कार्यकर्ताओं और नेताओं का उत्साह बढ़ता है, पार्टी और संगठन में एक नई जान आती है. राहुल की यह यात्रा राजनीति के बेसिक्स की ओर कांग्रेस के लौटने का संकेत भी है. दरअसल, पिछले एक दशक में पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर भारत और पश्चिम तक कांग्रेस काफी कमजोर स्थिति में पहुंच गई है.

असम में जहां कांग्रेस पिछले दो चुनाव से सत्ता से बाहर है वहीं मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में पार्टी की स्थिति कोई बेहतर नहीं है. यूपी और बिहार में तो लंबे समय से कांग्रेस सत्ता छोड़िए, मुख्य विपक्षी पार्टी की पोजिशन भी हासिल नहीं कर पाई है. ऐसे में कांग्रेस की नजर भविष्य पर है. कांग्रेस अब इन राज्यों में जर्जर हो चुके संगठन के ढांचे को दुरुस्त करने, फिर से मजबूती से खड़ा करने की कोशिश में है.

यही वजह है कि पार्टी एक तरफ जहां 2024 के चुनाव में करीब 300-350 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी कर रही है, वहीं दूसरी तरफ 500 से अधिक लोकसभा सीटों के लिए प्रभारियों का ऐलान भी कर चुकी है. इस कदम के जरिए कांग्रेस की रणनीति हर लोकसभा क्षेत्र में संगठन की जड़ें फिर से मजबूत करने की है, माइक्रो लेवल पर काम करने की है. फिलहाल, कांग्रेस देर से आई लेकिन कितनी दुरूस्त आई है, राहुल गांधी की यह यात्रा पार्टी के लिए कितना फलदायी होगी? इन सवालों के जवाब आने वाला वक्त देगा.

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