18 साल बाद भी देवासगेट बस स्टैंड लावारिस ही रहा

  • पहले पीपीपी, फिर सिंहस्थ और बाद में स्मार्ट सिटी की प्लानिंग भी कागजों में सिमट कर रह गई

उज्जैन। शहर के मध्य स्थित वर्षों पुराने शहीद राजा भाऊ महाकाल बस स्टैंड के कायाकल्प के लिए पिछले 18 सालों में अनेक बड़ी योजनाएँ बनी। शुरुआत में इसे पीपीपी अर्थात पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, फिर सिंहस्थ और उसके बाद स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में संवारे जाने के प्लान बनाए गए लेकिन धरातल पर कुछ भी बदल नहीं पाया। हालत यह है कि आज देवास गेट बस स्टैंड पर मुसाफिरों के लिए पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। नगर निगम को हैंड ओवर होने के बाद से देवास गेट बस स्टैंड की हालत और खराब होती जा रही है।


धार्मिक नगरी उज्जैन के मध्य स्थित देवासगेट बस स्टैंड पिछले लगभग डेढ़ दशक से बदहाली के दौर से गुजर रहा है। रोडवेज बसों के बंद होने के बाद से इसके कायाकल्प के लिए 18 साल से कागजों में कई प्लानिंग की गई परंतु धरातल पर कोई नहीं उतर सकी। सिंहस्थ 2004 के दरमियान देवास गेट बस स्टैंड व आसपास के क्षेत्र को पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप में संवारने को मंजूरी मिली थी लेकिन जिम्मेदारों द्वारा रुचि नहीं लेने के कारण ये फाइलों में ही रह गई। इसके बाद कई प्रयास हुए और फिर सिंहस्थ 2016 के मद्देनजर इसे संवारने के दावे हुए। यह भी खोखले साबित होने के बाद स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में इसे अत्याधुनिक स्वरूप देने की कागजी कवायद कोरोना काल शुरू होने से पहले तक जारी रही लेकिन उसके बाद से स्मार्ट सिटी कंपनी ने भी इसमें रुचि लेना छोड़ दिया। डेढ़ दशक से अधिक समय से देवास गेट बस स्टैंड जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं लेकिन जनप्रतिनिधियों ने इस ओर कुछ नहीं किया। धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र व महाकालेश्वर की नगरी होने के बावजूद देवासगेट बस स्टैंड नई शक्ल नहीं ले पाया, जबकि आसपास नगर निगम के स्वामित्व की काफी जगह है और इसी मान से यहाँ विकास की कई संभावनाएँ हैं जो रोजगार सृजन के साथ इस क्षेत्र को नई पहचान दिला सकती है लेकिन अब तक देवास गेट बस स्टैंड का विकास नहीं हो सका।

जन भागीदारी से विकास की प्लानिंग भी कारगर नहीं हुई
देवासगेट बस स्टैंड को जन भागीदारी से व्यवसायिक प्रयोजन के रूप में विकसित कर नया भवन निर्माण, यात्रियों के लिए जरूरी सुविधाएँ व बसों के आवागमन की समुचित व्यवस्था करने की प्लानिंग सिंहस्थ 2004 पूर्व की गई थी लेकिन यह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई थी। फिर इसे सिंहस्थ 2016 के मद्देनजर संवारने की प्लानिंग बनीं और साधिकार समिति तक कई तरह के प्रस्ताव भेजे गए। योजना में निगम स्वामित्व की दुकानों को डिस्मेंटल कर नया मॉर्केट व पीपीपी मॉडल में विकास करना प्रमुख था। इसे मंजूरी मिली लेकिन राजनीतिक कारणों व अधिकारियों की इच्छा शक्ति में कमी होने से यह सभी प्लान आगे नहीं बढ़ पाए।

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