भूमि मालिकों को मुआवजा देकर दया भाव दिखाना, ढोल पीटना पसंद नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली (New Delhi)। अवमानना मामले (Contempt cases) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ ने सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि भूमि मालिकों को मुआवजा देकर सरकार दान नहीं कर रही है। कोर्ट ने कहा कि 20 साल तक जमीन अपने पास रखने के बाद, अब कह रहे हैं कि इससे भूस्वामियों को लाभ हो रहा है, ऐसा रवैया अप्रिय है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (Ghaziabad Development Authority) (जीडीए) ने इस मामले में तर्क दिया था कि देरी से भूस्वामियों को फायदा हुआ है। उन्हें 1956 के बजाय 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम (Land Acquisition Act) के तहत मुआवजे की अच्छी राशि मिलेगी। तब कोर्ट ने कहा कि भू-स्वामियों को 20 साल तक भूमि का उपयोग करने के उसके सांविधानिक अधिकार से वंचित करना…फिर मुआवजा देकर दयाभाव दिखाना व ढोल पीटना कि राज्य उदार है, अप्रिय है।

सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य अधिगृहीत भूमि का मुआवजा देकर भूमि मालिकों को कोई दान नहीं दे रहा। सरकार जिनकी भूमि अधिग्रहित करती है, वे मुआवजे के हकदार हैं। शीर्ष अदालत ने दो टूक कहा कि राज्य व उसकी मशीनरी यह दिखावा नहीं कर सकते कि वे ऐसे भूस्वामियों को मुआवजा देने में दयालु हैं।

शीर्ष अदालत ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। ये अधिकारी कुछ भूस्वामियों को पर्याप्त मुआवजा देने में विफल रहे थे। प्राधिकरण ने उनकी जमीन का 2004 में अधिग्रहण किया था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति का अधिकार अब भी एक सांविधानिक अधिकार है। मुआवजा आदेश भी दिसंबर, 2023 में तब पारित किया गया, जब शीर्ष अदालत ने जीडीए को अवमानना नोटिस जारी किया। हालांकि पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि जीडीए ने जानबूझकर कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा नहीं की और अवमानना मामले का निपटारा कर दिया।

आवासीय नहीं… कृषि भूमि, यह पता करने में लगा दिए सात वर्ष
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने प्राधिकरण की इस दलील को खारिज कर दिया कि भूस्वामियों की ओर से मांगी गई जमीन मुहैया करा दी गई है।

पीठ ने यह भी कहा कि जीडीए को यह निष्कर्ष निकालने में सात वर्ष लग गए कि अधिग्रहीत भूमि आवासीय नहीं, बल्कि कृषि भूमि थी। हालांकि, पीठ ने कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही को यह पाते हुए बंद कर दिया कि जीडीए व अदालत में प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के बीच साझा की गई जानकारी गलत हो सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने मुआवजे के फैसले की वैधता पर निर्णय नहीं किया है और यदि जरूरी हो तो भूमि मालिक अभी भी इसे चुनौती देने को स्वतंत्र हैं। ऐसी किसी भी चुनौती पर छह माह में फैसला किया जाना चाहिए।

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