ईस्टर का त्योहार, खुशियां अपार

– योगेश कुमार गोयल

क्रिसमस के अलावा ‘ईस्टर’ को भी ईसाई धर्म का सबसे बड़ा और प्रमुख पर्व माना जाता है। दरअसल दोनों ही पर्व ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाए जाते हैं। प्रतिवर्ष गुड फ्राइडे के तीसरे दिन रविवार को मनाया जाने वाला ‘ईस्टर संडे’ ईसाइयों का महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। यह इस वर्ष 9 अप्रैल को मनाया जाएगा। गुड फ्राइडे के दिन ईसा मसीह के बलिदान को याद कर जहां ईसाई धर्म के लोग दुखी होते हैं, वहीं ईस्टर संडे पर उनकी खुशी दोगुनी होती है क्योंकि ईसाई धर्म की मान्यता के अनुसार गुड फ्राइडे के बाद आने वाले रविवार को दुनिया को प्रेम और करुणा का संदेश देने वाले शांति के मसीहा ईसा मसीह पुनः जीवित हुए थे और उनके जीवित होने की खुशी में ईसाई धर्म को मानने वाले लोग ‘ईस्टर संडे’ मनाते हैं।

इस पवित्र दिन को ‘ईस्टर दिवस’ तथा ‘ईस्टर रविवार’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘बाइबिल’ में उल्लेख है कि ईस्टर संडे के दिन पुनः जीवित होने के बाद ईसा मसीह 40 दिन बाद तक पृथ्वी पर रहे और उस दौरान उन्होंने अपने शिष्यों को प्रेम एवं करुणा का पाठ पढ़ाया तथा फिर स्वर्ग चले गए।

नए जीवन और जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले ईस्टर पर्व को भाईचारे और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन ईसा मसीह के जीवित होने के बाद उनको यातनाएं देने वाले और सूली पर चढ़ाने वाले लोगों को भी बहुत पश्चाताप हुआ था।

ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार ‘ईस्टर’ शब्द की उत्पत्ति ‘ईस्त्र’ शब्द से हुई थी। यूरोप में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार ईस्त्र वसंत और उर्वरता की एक देवी थी, जिसकी प्रशंसा में अप्रैल माह में उत्सव होते थे। इन उत्सवों के कई अंश यूरोप के ईस्टर उत्सवों में आज भी देखने को मिलते हैं। इसीलिए इसे नवजीवन या ईस्टर महापर्व का नाम दे दिया गया।

कुछ देशों में ईस्टर दो दिन तक भी मनाया जाता है और दूसरे दिन को ईस्टर सोमवार कहा जाता है। ईस्टर संडे के दिन ईसाई धर्म के लोग गिरजाघरों में जाकर यीशु को याद करते हैं, उनकी याद में मोमबत्तियां जलाते हैं, बाइबिल पढ़ते हैं और अपने प्रभु यीशु के जीवित होने की खुशी में एक-दूसरे को बधाई देते हैं। ईस्टर रविवार के पहले सभी गिरजाघरों में रात्रि जागरण तथा अन्य धार्मिक परंपराएं पूरी की जाती हैं और असंख्य मोमबत्तियां जलाकर यीशु में अपना विश्वास प्रकट किया जाता है। ईस्टर पर सजी हुई मोमबत्तियां अपने घरों में जलाना तथा मित्रों में बांटना ईसाई धर्म में एक प्रचलित परम्परा है।

ईस्टर के पहले वाले रविवार को ‘खजूर रविवार’ के नाम से जाना जाता है। इस संबंध में मान्यता है कि इसी रविवार के दिन ईसा मसीह ने यरुशलम में प्रवेश किया था। ईसाई विद्वानों के मतानुसार 29ई. को ईसा मसीह गधे पर सवार होकर यरुशलम पहुंचे थे और वहां के लोगों ने खजूर की डालियों से उनका स्वागत किया था, इसीलिए इस दिन को ‘पाम संडे’ कहा जाता है। यहीं यरुशलम में उनके खिलाफ षड़यंत्र रचा गया और राजद्रोह के आरोप में शुक्रवार को सूली पर चढ़ा दिया गया। ईसा मसीह को सूली पर लटकाने की घटना को गुड फ्राइडे के नाम से जाना जाता है और इसके तीसरे दिन यानी संडे को ईसा मसीह के दोबारा जीवित होने की घटना को ईस्टर संडे के रूप में मनाया जाता है। ईसाई धर्म में इस घटना को इस बात प्रमाण भी माना जाता है कि सत्य कभी नष्ट नहीं हो सकता। ईस्टर की आराधना ऊषाकाल में ईसाई महिलाओं द्वारा की जाती है क्योंकि माना जाता है कि यीशु का पुनरुत्थान इसी वक्त हुआ था।

ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब ईसा मसीह को मृत्युदंड दिया गया तो उनके अनुयायी बहुत निराश और हताश हो गए थे लेकिन गुड फ्राइडे के तीसरे दिन रविवार को मरियम मदीलिनी नामक एक महिला ईसा मसीह की कब्र पर गई, जहां उस समय गहन अंधकार छाया था। महिला ने देखा कि ईसा मसीह की कब्र पर पत्थर नहीं है। उसने इसके बारे में ईसा के अनुयायियों को बताया, जिन्होंने वहां आकर देखा तो कब्र में केवल कफन पड़ा था, ईसा मसीह नहीं थे। कुछ देर बाद वे सभी वहां से चले गए लेकिन महिला वहीं बैठकर रोने लगी। तभी उसने देखा कि कब्र में जहां ईसा मसीह का शव रखा था, वहां दो स्वर्गदूत सफेद कपड़े पहने खड़े थे, एक ईसा मसीह के सिर के पास और दूसरा पैरों के पास। दोनों देवदूतों ने महिला से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वे उसके ईसा मसीह को लेकर चले गए हैं। तभी उसने वहां ईसा मसीह को देखा। देवदूतों ने उसे कहा कि वे अब परम पिता के पास जा रहे हैं। इस घटना के तुरंत बाद महिला फिर ईसा के अनुयायियों के पास आई और उनको बताया कि कैसे प्रभु ईसा मसीह पुनः जीवित हो गए हैं।

ईसाई मान्यताओं के अनुसार ईसा मसीह पुनः जीवित होने के बाद 40 दिन तक पृथ्वी पर रहे और अंत में वे अपने कुछ शिष्यों के साथ आसमान में चले गए। ईस्टर के दिन ईसाई धर्म के लोग अपने घरों को अंडों से सजाते हैं और एक-दूसरे को अंडे उपहार स्वरूप भी देते हैं। दरअसल ईस्टर पर अंडों का विशेष महत्व है क्योंकि ईसाई धर्म के लोग अंडे को नया जीवन और उमंग का प्रतीक मानते हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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