मालदीव सहित इन देशों की विदेशी फंडिंग में कटौती, जानें- कैसे बजट से चीन का मुकाबला कर रहा भारत?

नई दिल्‍ली (New Dehli)। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman)ने गुरुवार को 2024-25 के लिए अंतरिम बजट पेश(interim budget presented) किया. इस साल सरकार ने विदेशी सहायता (foreign aid)के बजट में भी कटौती की है. तनाव के बीच भारत ने मालदीव को दी जाने वाली फंडिंग में भी कटौती कर दी है. लेकिन मालदीव अकेला नहीं है. और भी कई देशों की मदद में कटौती की गई है. ऐसे में जानते हैं कि विदेशी सहायता के जरिए चीन का कैसे मुकाबला कर रहा है भारत?

भारत ने मालदीव को दी जाने वाली मदद में कटौती कर दी है. ये कटौती ऐसे समय हुई है, जब दोनों देशों के बीच रिश्ते कुछ ज्यादा अच्छे नहीं रह गए हैं.

मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद से भारत और मालदीव के बीच रिश्तों में तल्खी आनी शुरू हो गई. ये तल्खी तनाव में तब बदल गई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद मालदीव सरकार के तीन मंत्रियों ने पीएम मोदी और भारत के खिलाफ टिप्पणी की थी.

अब जब गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 के लिए अंतरिम बजट पेश किया तो इसमें कई देशों को भारत की ओर से दी जाने वाली आर्थिक मदद में कटौती भी कर दी गई.

बजट दस्तावेज के मुताबिक, 2024-25 में भारत 4 हजार 883 करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद दूसरे देशों को देगा. हालांकि, ये 2023-24 की तुलना में 10 फीसदी कम है. 2023-24 में भारत ने 5 हजार 426 करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद दी थी. भारत से आर्थिक मदद पाने वाले ज्यादातर साउथ एशियाई देश हैं.

मालदीव की मदद में कितनी कटौती हुई?

सरकार ने जब 2023-24 का बजट पेश किया था, तो मालदीव के लिए 400 करोड़ रुपये का फंड रखा था. लेकिन इस साल जब 2024-25 का अंतरिम बजट आया तो इसमें 2023-24 का संशोधित अनुमान भी बताया गया था. इसके मुताबिक, 2024-25 में सरकार ने मालदीव में 770 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. 2024-25 में सरकार ने मालदीव के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट रखा है.

देखा जाए तो 2023-24 के बजट अनुमान की तुलना में 2024-25 में मालदीव का बजट 50 फीसदी बढ़ाया गया है. लेकिन 2023-24 के संशोधित अनुमान के हिसाब से देखें तो 2024-25 में मालदीव के फंड में 22 फीसदी की कटौती हुई है.

बजट दस्तावेजों के मुताबिक, 2019-20 से 2023-24 के बीच पांच साल में भारत ने मालदीव को 1 हजार 669 करोड़ रुपये की मदद दी है. अब अगले सालभर में 600 करोड़ रुपये की मदद और देगा. ये भी अभी अनुमान है. इसमें कम-ज्यादा भी हो सकता है.

मालदीव का अहम साथी रहा है भारत

भारत हमेशा मालदीव का साथ देते आया है. और ये सिलसिला 1965 में मालदीव की आजादी के साथ ही शुरू हो गया है. भारत उन देशों में से एक था, जिसने सबसे पहले मालदीव को मान्यता दी थी. साल 1972 में भारत ने मालदीव की राजधानी माले में अपना मिशन स्थापित किया था.

मालदीव कई सारी जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मालदीव का बड़ा फाइनेंसर रहा है. एसबीआई की बदौलत ही मालदीव की अर्थव्यवस्था मजबूत होती गई.

इसके अलावा, मालदीव का बुनियादी ढांचा विकसित करने में भी भारत ने काफी मदद की है. भारत ने वहां अस्पताल से लेकर क्रिकेट स्टेडियम, ब्रिज, रोड, मस्जिद और कॉलेज तक बनाया है.

एक समय था जब भारत दूसरे देशों से आर्थिक मदद मांगता था, लेकिन कुछ सालों में भारत ने खुद को बड़े ‘डोनर’ के रूप में तब्दील कर लिया है. भारत ने दुनिया के कई हिस्सों में देशों को विकास के लिए आर्थिक सहायता दी है.

भारत जिन देशों को आर्थिक मदद देता है, उनमें लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देश भी शामिल हैं. लेकिन भारत से सबसे ज्यादा मदद साउथ एशियाई देशों को मिलती है.

पाकिस्तान को छोड़ दिया जाए तो भारत ने अपने सभी पड़ोसियों पर बीते सालों में हजारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं. दरअसल, देखा जाए तो दक्षिण एशिया चीन और भारत के लिए एक ‘जंग का अखाड़ा’ भी बनता जा रहा है.

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए चीन सभी दक्षिण एशियाई देशों तक पहुंच चुका है. ऐसा करके उसने भारत को चारों तरफ से घेर रखा है. ऐसे में इन देशों में चीन का प्रभाव कम करने के लिए भारत को आर्थिक मदद देना जरूरी है.

साउथ एशिया में भारत की मदद

– भूटानः चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ भूटान अब चीन के करीब जाता दिख रहा है. चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है. भूटान ऐसा देश है, जिसे भारत सबसे ज्यादा मदद देता है. इस साल भारत ने भूटान के लिए दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड रखा है.

– नेपालः भूटान के बाद नेपाल ऐसा देश है, जिसे भारत सबसे ज्यादा मदद करता है. नेपाल में पिछले साल भारत ने 650 करोड़ रुपये खर्च किए थे और इस साल 700 करोड़ खर्च करेगा. नेपाल में भी कुछ साल में चीन का दखल बढ़ा है और वहां चीन ने अरबों डॉलर खर्च किए हैं.

– बांग्लादेशः भारत का सबसे अच्छा पड़ोसी है. 2009 से वहां शेख हसीना की अगुवाई वाली आवामी लीग पार्टी की सरकार है, जिसे ‘प्रो-इंडिया’ माना जाता है. लेकिन वहां की अर्थव्यवस्था भी अब खराब हो रही है और उसकी मदद के लिए चीन आगे आ रहा है. चीन ने हाल ही में कहा था कि वो बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा भंडार के संकट में उसके साथ खड़ा है. बांग्लादेश बीआरआई का सदस्य भी है. बांग्लादेश में भारत इस साल 120 करोड़ रुपये खर्च करेगा. ये पिछले साल के मुकाबले 10 करोड़ कम है.

– म्यांमारः साल 2017 से म्यांमार चीन के बीआरआई का सदस्य है. उस पर चीन का कर्ज बढ़ता जा रहा है. इतना ही नहीं, म्यांमार की सियासत और अर्थव्यवस्था में भी चीन का दखल बढ़ा है. म्यांमार में तीन साल से सेना ही सरकार चला रही है. इस दौरान उसकी करीबी चीन से और बढ़ी है. चीन का मुकाबला करने के लिए भारत वहां भी हर साल करोड़ों रुपये खर्च करता है. इस साल म्यांमार के लिए भारत ने 250 करोड़ रुपये का फंड रखा है.

– श्रीलंकाः महिंदा राजपक्षे की सरकार में श्रीलंका चीन के बहुत करीब चला गया था. नतीजा ये हुआ कि चीन के कर्ज के तले उसकी अर्थव्यवस्था तबाह हो गई. श्रीलंका भी बीआरआई का सदस्य है. 2022-23 में भारत ने श्रीलंका के लिए 150 करोड़ रुपये रखे थे, लेकिन 60 करोड़ ही खर्च किए. इस साल भारत ने 75 करोड़ रुपये श्रीलंका के लिए रखे हैं.

– अफगानिस्तानः यहां भारत कई सारे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है. तालिबान का शासन आने के बावजूद भारत ने इससे दूरी नहीं बनाई है. इसे ऐसे समझिए कि अफगानिस्तान को दी जाने वाली मदद में बहुत ज्यादा कटौती नहीं हुई है. भारत ने 2023-24 में अफगानिस्तान में 220 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जबकि 2024-25 के लिए 200 करोड़ रुपये का बजट रखा है.

कहां खर्च होता है ये पैसा?

हालांकि, मालदीव अकेला नहीं है, जिसकी मदद में भारत ने कटौती की है. भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार को दी जाने वाली आर्थिक मदद में भी कटौती हुई है.

भारत की ओर से सबसे ज्यादा मदद भूटान को दी जाती है. भूटान पर 2023-24 में भारत ने करीब 24सौ करोड़ रुपये खर्च किए थे. इस साल 2 हजार 68 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान लगाया है.

देखा जाए तो भारत लंबे समय से पाकिस्तान को छोड़कर बाकी सभी दक्षिण एशियाई देशों को आर्थिक मदद दे रहा है. भारत से मिलने वाली ये मदद वहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होती है. इससे वहां स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, पुल, रेल नेटवर्क वगैरह तैयार किया जाता है.

एनडीए सरकार आने के बाद साउथ एशियाई देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद काफी बढ़ी है. एनडीए सरकार ‘नेबर फर्स्ट पॉलिसी’ के जरिए पड़ोसियों को अपने साथ रखने की कोशिश कर रही है. उसकी वजह चीन भी है, क्योंकि धीरे-धीरे ही सही लेकिन इन देशों में चीन का दखल बढ़ा है. और चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत को इन देशों को अपने करीब रखना जरूरी है.

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