चालीस बरस पहले इंदौर में हुआ करती थी फऩकारों के हुनर की रंगशाला

रंग ख़ुश्बू और मौसम का बहाना हो गया
अपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया।

आइये आज आपको तकऱीबन चालीस बरस पुराने इंदौर की कुछ भूली बिसरी यादों से रूबरु करवाएं। ये जो बिलेक एंड वाइट तस्वीर आप देख रहे है, सारा अफसाना इसी के हमराह गुजरेगा। सत्तर की दहाई के आखिर में इंदौर की सरज़मी पे बड़े नामवर सहाफी (पत्रकार) शाहिद मिजऱ्ा की सहाफत परवान चढ़ रही थी। उस दौर के एक नंबर अखबार नईदुनिया में वो काम किया करते थे। तब नईदुनिया में राजेंद्र माथुर साब उर्फ रज्जू बाबू, राहुल बारपुते उर्फ बाबा और विष्णु चिंचालकर उर्फ गुरुजी का तारीखी दौर चल रहा था। शाहिद मिजऱ्ा जित्ते अच्छे लिख्खाड़ थे उत्ते ही सनकी, मूडी या मिराकी मिज़ाज़ के थे। ये शायद 1983 के आखिर या 84 की इब्तिदा का मामला है। शाहिद मिजऱ्ा ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलके रंगशाला नाम से एक नाट्य ग्रुप बनाया था। उस वखत उनके साथ रंगशाला में अतुल पटेल साब, मरहूम अतुल लागू, मरहूम आदिल कुरेशी, मरहूम योगेंद्र जोशी साब जुड़े थे। आज के दौर के भन्नाट सहाफी राजेश बादल साब और आशुतोष देशमुख भी रंगशाला से संजीदगी से जुड़े थे। रंगशाला ने शाहिद मिजऱ्ा के डायरेक्शन में जात ही पूछो साधु की प्ले किया था। तब नाटक की रिहर्सल के लिए अभय छजलानी साब ने अभय प्रशाल का स्पेस मुहैया करवाया था। इस नाटक में आज के जानेमाने रंगकर्मी प्रांजल श्रोत्रिय जो इन दिनों इंदौर में अनंत टेरेस थियेटर का संचालन करते हैं, मशहूर सहाफी शकील अख्तर साब, आज के मशहूर पत्रकार दिनेश सोलंकी और आज कांग्रेस के पदाधिकारी योगेश यादव महू से आते थे, मरहुमा सजला श्रोत्रिय, अतुलेश वर्मा,अलका परांजपे, कैलाश चोपड़ा, अनीस मियाज़ी ने भी प्ले में जानदार एक्टिंग करी थी।

नाटक का शो इंदौर के रविन्द्र नाट्य ग्रह में हुआ था, जिसमे अच्छी खासी भीड़ जुटी थी। नाटक का संगीत नरहरी पटेल साब ने कंपोज़ किया था। नाटक के लिए शाहिद मिजऱ्ा ने अपनी जेब से दो-ढाई हजार रुपए लगा दिए थे। रंगशाला ने अगला इवेंट शायद 1988-89 में नाटक की वर्कशॉप का किया था। उस वर्कशाप में नए कलाकारों को नाटक के गुर सिखाने के लिए मरहूम बव कारन्त, आशीष विद्यार्थी, गोविंद नामदेव और जावेद ज़ैदी इन्दोर तशरीफ़ लाये थे। उस वक्त एनएसडी से निकले स्वानन्द किरकिरे, रवि महाशब्दे, रवि वर्मा ने भी इस वर्कशाप में नए कलाकारों को गाइड किया था। वर्कशाप के बाद आशीष विद्यार्थी ने इन कलाकारों के साथ डार्विन की थ्योरी पे एक शो किया था। किसी वजह से रंगशाला की गतिविधि ज़्यादा नहीं चल सकी। सन 1990 में शाहिद मिजऱ्ा ने रंगशाला के कुछ पुराने साथियों मसलन अतुल पटेल साब, अतुल लागू, आदिल कुरेशी और नए साथी मशहूर फोटोग्राफर तनवीर फ़ारूक़ी और दीपा तनवीर (हाल ही में दीपा जी का इंतक़ाल हुआ) , राजेश्वर त्रिवेदी और कल्याणी डिके के साथ फऩकार नाम से नया आर्ट ग्रुप खड़ा किया था। फऩकार ने पहले मशहूर नृत्यांगना सोनल मानसिंह का शो इंदौर में करवाया था। इसके बाद फऩकार ने दिसम्बर 90 में मशहूर पेंटर एमएफ हुसैन साब की 75 वीं सालगिरह पे इंदौर में भोत यादगार पिरोगराम किया था। सेंट रेफिएल्स के हाल में हुसैन साब का पिरोगराम हुआ था। उनकी एक नुमाइश फाइन आर्ट कालेज में हुई थी। इस तस्वीर में आपको रंगशाला के कलाकार फि़ल्म कलाकार परीक्षित साहनी के साथ नजऱ आ रहे हैं। उस दौर के बहुत सारे लोग अब इस दुनिया मे नहीं हैं। इंदौर के पुराने कलाप्रेमी आज भी उस दौर को याद करते हैं।

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