सिंबल बदलने का खेल और ईरान से जंग! तो क्या टल जाएंगे पाकिस्तान में चुनाव?

नई दिल्ली: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में चुनाव का मौसम है. लोग देश का नया प्रधानमंत्री चुनने के लिए 8 फरवरी को वोटिंग करेंगे. हालांकि चुनाव तय तारीख पर होंगे या नहीं, ये अब तक साफ नहीं है. दरअसल, कई पार्टी और उम्मीदवारों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव चिन्ह बदलने की मांग की है. पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने भी चेतावनी दी है कि अगर चुनाव चिन्हों को बदलने की प्रक्रिया नहीं रुकी तो आम चुनाव में देरी हो सकती है. आयोग ने कहा कि वो 8 फरवरी के चुनावों के करीब आने पर लगातार बदलाव नहीं कर सकते.

सिंबल बदलने की मांग के अलावा पाकिस्तान का ईरान से भी तनाव चल रहा है. बीते 48 घंटे दोनों देशों के लिए मुश्किल भरे रहे हैं. ईरान ने मंगलवार रात को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में आतंकवादी संगठन जैश अल अदल के ठिकानों पर हमला बोला. इसमें दो बच्चों की मौत हो गई. पाकिस्तान ने ईरान के हमले का जवाब 24 घंटे बाद ही दे दिया.

पाकिस्तान की वायुसेना ने ईरान के सरवन शहर में एयरस्ट्राइक किया. ईरान के हमले के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे पाकिस्तान किसी ना किसी तरीके से जवाब देगा. उसने हमले से पहले चेतावनी भी दी थी. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमले अच्छे पड़ोसी की निशानी नहीं है. इसके गंभीर परिणाम होंगे. पाकिस्तान ने ईरान से अपने राजदूत को भी वापस बुला लिया था.

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

उधर, सिंबल बदलने की मांग पर चुनाव आयोग का कहना है कि अगर चुनाव चिह्न बदलने की प्रक्रिया इसी तरह जारी रही तो चुनाव में देरी होने का डर है, क्योंकि मतपत्रों को दोबारा छापना होगा. समय पहले से ही सीमित है. दूसरी ओर इसके लिए विशेष पेपर उपलब्ध हैं. हाल ही में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के केंद्रीय चुनाव प्रभारी सीनेटर ताज हैदर ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर अपने सात उम्मीदवारों के चुनाव चिन्ह बदलने की मांग की थी. उन्होंने पार्टी के चुनाव चिह्न ‘तीर’ की मांग की थी. हैदर ने कहा कि आयोग ने पार्टी के उम्मीदवारों को निर्दलीय घोषित कर दिया.

पीपीपी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी और महासचिव नैय्यर हुसैन बुखारी ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि मामले को अदालत में ले जाया जाएगा. इसी तरह जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष इमरान खान से संबंधित एक याचिका अभी भी लाहौर उच्च न्यायालय में लंबित है.

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