बिहार में बदला लोकसभा चुनाव का गेम प्लान, जानें किसे फायदा-किसे नुकसान

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) 2024 से ठीक पहले बिहार (Bihar) में सियासी बदलाव हो गया है. विपक्षी गठबंधन (opposition alliance) ‘INDIA’ के शिल्पकार रहे जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार अब बीजेपी (BJP) नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) का हिस्सा बन चुके हैं. बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश ने एक बार फिर से सरकार बना ली है. बीजेपी कोटे से सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाया गया है. नीतीश के सियासी पाला बदलने से बिहार की सत्ता का समीकरण ही नहीं बदला बल्कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सूबे का गेम प्लान भी बदल गया है.

सियासत में कभी कोई किसी का न स्थाई दोस्त होता है और न ही दुश्मन. राजनीतिक परिस्थितियों के लिहाज से दोस्त और दुश्मन बनते रहते हैं. करीब डेढ़ साल पहले जब नीतीश कुमार ने पाला बदलकर महागठबंधन में एंट्री की थी तो उस समय बीजेपी ने कहा था कि उनके लिए बीजेपी दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं. वहीं, नीतीश ने भी कहा था कि वह मर जाएंगे, लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. लेकिन, वक्त और सियासी मजबूरी ने एक बार फिर से जेडीयू और बीजेपी की दोस्ती करा दी है. आरजेडी-कांग्रेस फिर से विपक्षी की भूमिका में आ गए हैं, तो बीजेपी सरकार में भागीदार बन गई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच नीतीश के पाला बदले से किसे नुकसान और किसे फायदा होगा?

विपक्षी INDIA गठबंधन को झटका
लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार के पाले बदलने से सत्ता पक्ष और विपक्षी दोनों ही गठबंधन का स्वरूप बदल गया है. नीतीश कुमार विपक्षी इंडिया गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे. विपक्षी दलों के एक मंच पर लाने में नीतीश की अहम भूमिका रही थी. 2022 में एनडीए से अलग होकर विपक्षी खेमे में आने के बाद नीतीश कुमार ने अलग-अलग राज्यों में जाकर विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी. उनकी पहल पर विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक पटना में ही हुई थी. ऐसे में नीतीश कुमार अब जब फिर से एनडीए का हिस्सा बने हैं तो विपक्षी दल को 2024 के चुनाव से पहले बड़ा झटका लगा है. ‘INDIA’ गठबंधन बनने से बीजेपी के खिलाफ जो एक मजबूत विपक्ष की भावना बनी थी, वह पूरी तरह ध्वस्त होती दिख रही है.

बिहार में बदला गठबंधन का स्वरूप
नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी के साथ ही बिहार में एनडीए और INDIA गठबंधन में तस्वीर बदल गई है. नीतीश के आने के साथ ही एनडीए गठबंधन में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी, जीतनराम मांझी की पार्टी HAM और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी शामिल है. वहीं, विपक्षी INDIA गठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल ही अब बचे हैं क्योंकि जेडीयू अब एनडीए का हिस्सा है. इस तरह बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव की तर्ज पर ही गठबंधन वाली स्थिति दिख रही, लेकिन एक फर्क यह है कि कुशवाहा और मांझी पिछले चुनाव में महागठबंधन के साथ थे, लेकिन अब एनडीए के साथ हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए इस बार कड़े कुनबे के साथ मैदान में उतरेगा.

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी बदलेगा
नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने से लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला विपक्षी गठबंधन और एनडीए दोनों में बदल गया है. बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं. एनडीए में पहले बीजेपी, एलजेपी, HAM और कुशवाहा की पार्टी के बीच सीट बंटनी थीं, लेकिन अब नीतीश के हिस्सा बन जाने के बाद जेडीयू भी एक बड़े भूमिका में होगी. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी मिलकर लड़ी थी, जिसमें बीजेपी 17, जेडीयू 17 और एलजेपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.

जेडीयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ी थी. नीतीश के एनडीए में आने से पहले तक बिहार में बीजेपी कम से कम 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की प्लानिंग कर रही थी, लेकिन 2024 में दोनों पार्टियों के बीच फिर से बराबर-बराबर सीटों का फॉर्मूला बन सकता है. इसके अलावा मांझी, कुशवाहा, चिराग की एलजेपी और पशुपति पारस की पार्टी को भी सीटें देनी होगी.

वहीं, नीतीश के विपक्षी गठबंधन छोड़ने से पहले सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बन रहा था, उसमें आरजेडी और जेडीयू के बीच बराबर-बराबर सीटों लड़ने की प्लानिंग थी. इस तरह 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बन रही थी और कांग्रेस चार से पांच सीटें मिलने का अनुमान था और लेफ्ट को दो सीटें ही दी जा रही थीं. जेडीयू के अलग होने के बाद विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और लेफ्ट को पहले से ज्यादा सीटें मिलने की संभावना दिख रही. बिहार में लेफ्ट चार से पांच सीटें मांग रहा है, तो कांग्रेस 8 से 10 सीटों की डिमांड कर रही थी. ऐसे में आरजेडी अपने सहयोगी कांग्रेस और लेफ्ट को भले ही उनकी मांग के मुताबिक सीटें न दे, लेकिन उन्हें पहले से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं.

किसे फायदा और किसे नुकसान?
नीतीश कुमार के विपक्षी गठबंधन में रहते हुए बीजेपी के लिए बिहार की लड़ाई काफी मुश्किलों भरी लग रही थी क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव में इसी तरह की स्थिति बनी थी, जिसमें महागठबंधन भारी पड़ा था. इसके पीछे वजह बिहार का जातीय समीकरण और जाति आधार पर होने वाला वोटिंग पैटर्न है. मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा था कि बिहार में बीजेपी के आंतरिक सर्वे में लोकसभा चुनाव को लेकर अच्छा फीडबैक नहीं मिल रहा था. बिहार में जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का इंडिया गठबंधन मजबूत नजर आ रहा था, लेकिन नीतीश के पाला बदलने के बाद सियासी तस्वीर बदल गई है. नीतीश कुमार को अपने पाले में करने से बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा तो यह होता दिख रहा है, क्योंकि जेडीयू तीसरी ताकत बिहार में बनी है.

लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले बिहार में हुए उलटफेर से इंडिया गठबंधन को जवाब देते नहीं बन पड़ रहा. बीजेपी के इस तर्क को भी बल मिलता है कि विपक्षी गुट एक अस्थिर गठबंधन है. बीजेपी को अब इसको चुनाव में यह कहते हुए भुनाने की कोशिश करेगी कि इंडिया गठबंधन में दल आपस में ही लड़ते रहते हैं और यह देश के लिए ठीक नहीं होगा. 2019 में राज्य की 40 लोकसभा सीट में 39 सीटों पर एनडीए ने जीत हासिल की थी. अब नीतीश के दोबारा एनडीए में आने पर बीजेपी उस प्रदर्शन को दोहराने या उससे बेहतर करने की कोशिश करेगी.

वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर विपक्षी दलों के लिए बड़ा झटका ही नहीं बल्कि सियासी चुनौती भी होगी. विपक्षी गठबंधन के लिए मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे बीजेपी से 2024 में मुकाबला करना आसान नहीं है, क्योंकि बीजेपी का टारगेट 50 फीसदी प्लस वोट का है. यादव और मुस्लिम मिलकर 35 फीसदी के करीब ही वोट होता है. इसी समीकरण के बदौलत 2019 में आरजेडी और कांग्रेस ने बीजेपी से मुकाबला किया था, लेकिन सफल नहीं रहे. कांग्रेस महज एक सीट मुस्लिम बहुल किशनगंज ही जीत सकी थी, जबकि आरजेडी का खाता भी नहीं खुला था. हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव के सियासी समीकरण बदल गए हैं, लेकिन बीजेपी एक बड़े गठबंधन के साथ मजबूत राजनीतिक समीकरण भी बनाए रखा है. ऐसे में विपक्षी गठबंधन के लिए एनडीए से बिहार में मुकाबला करना आसान नहीं होगा?

राजनीतिक दलों के बदले जातीय समीकरण
बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने के चलते गठबंधन के जातीय समीकरण भी बदल गए हैं. बीजेपी सवर्ण वोटों बैंक के साथ दलित, ओबीसी और अति पिछड़ा समीकरण के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी. वहीं, महागठबंधन अब मुस्लिम-यादव के साथ दलित और सवर्ण समीकरण के साथ चुनावी रण में नजर आएगी. नीतीश के बीजेपी के साथ जाने के चलते मुस्लिम वोट बैंक उनसे छिटक सकता है, लेकिन अति पिछड़ा वोट बैंक का सियासी लाभ मिल सकता है. बिहार में अचानक हुए सियासी उलटफेर के बाद सबसे बड़ा झटका उपेंद्र कुशवाहा को लग सकता है. अब नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद छोटे दलों का बहुत सियासी स्पेस नहीं बचता है. ऐसे में उन्हें एनडीए में कितनी हिस्सेदारी मिलेगी, इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है.

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