प्रणब दा के PM न बनने के पीछे गांधी परिवार का हाथ, शर्मिष्ठा ने अपनी किताब में बताई वजह

नई दिल्ली । पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Former President Pranab Mukherjee)की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी (Sharmistha Mukherjee)की हाल में किताब आई है, PRANAB MY FATHER, A DAUGHTER REMEMBERS। इसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Prime Minister Indira Gandhi)और राजीव गांधी (Rajiv Gandhi)से लेकर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के साथ प्रणब दा के संबंधों पर रोशनी डाली है। उनसे बात की अखिलेश प्रताप सिंह ने। पेश हैं बातचीत के अहम अंश:

सवाल- आपने अपनी किताब में लिखा है कि प्रणब मुखर्जी से आपकी लंबी बातचीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और NDA की विचारधारा के बारे में होती रही। NDA सरकार के बारे में क्या सोच थी उनकी?
जवाब- कुछ बातें छोड़कर मुझे जो भी मिला है, उनकी डायरी से ही मिला है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनका अच्छा रिश्ता रहा। इसका कारण यह है कि उन दोनों के व्यक्तिगत संबंध बहुत अच्छे थे। दूसरा कारण, मेरे पिता राष्ट्रपति के तौर पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों और संवैधानिक सीमाओं से अच्छी तरह परिचित थे। उनको पता था कि राष्ट्रपति को किसी भी गवर्नेंस इशू में दखल नहीं देना चाहिए। हालांकि ऐसा भी नहीं कि वह सरकार के हर फैसले को आंख मूंदकर मानते थे। वह सरकार से सवाल करते थे। उन्होंने ये बातें अपने इंटरव्यू में भी कही हैं। किताब में भी लिखा है और अपनी डायरी में भी लिखा कि कैसे अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में उनके समय में प्रेसिडेंट रूल लागू किया गया।

सवाल-आपने लिखा है कि राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी से प्रणब मुखर्जी का वैसा रैपो नहीं बन पाया, जैसा इंदिरा गांधी के साथ था। किस वजह से ऐसा हुआ होगा?

जवाब- विश्वास की कमी तो थी। बाबा की एक स्वाधीन चिंतन धारा थी। उनके सीनियर कॉलीग थे- पी. शिवशंकर, जो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के जमाने में भी सीनियर कैबिनेट मिनिस्टर रहे। उन्होंने कहा था कि राजीव गांधी की सेकंड कैबिनेट में जब उन्हें ड्रॉप किया गया तो राजीव गांधी के आसपास के लोगों ने समझा कि शायद इसके पीछे यही बात है कि प्रणब मुखर्जी बाद में उनकी अथॉरिटी को चैलेंज कर सकते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं कि विश्वास बिल्कुल नहीं था। सोनिया गांधी के समय उन्हें जिम्मेदारियां दी गईं और उन्होंने सारी जिम्मेदारियां निभाईं। अगर बिल्कुल विश्वास न होता तो इतनी बड़ी जिम्मेदारियां उनको क्यों दी जातीं? लेकिन फिर भी उनको प्रधानमंत्री नहीं बनाया, क्योंकि सोनिया गांधी को कहीं ना कहीं आशंका थी कि वह गांधी परिवार या सोनिया जी की अथॉरिटी को चैलेंज करेंगे।

सवाल-जब आप राजनीति में आईं तो सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी के साथ जो आपके संबंध थे, क्या उसमें भी यह मतभेद आपको महसूस हुआ?
जवाब- सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ मेरा संपर्क बहुत कम रहा। मैं एक बहुत ही जूनियर पार्टी वर्कर थी। सोनिया गांधी तब कांग्रेस प्रेसिडेंट थीं और बाद में राहुल गांधी कांग्रेस प्रेसिडेंट बने। फिर भी, दो-तीन बार जब भी मुलाकात हुई, वे दोनों बहुत अच्छे से मिले, बहुत अच्छे तरीके से बातचीत की। लेकिन जो एक पॉलिटिकल इंटरैक्शन कहते हैं, वह मेरे साथ कभी नहीं हुआ।

सवाल- लेकिन गांधी परिवार और प्रणब दा के बीच बहुत करीबी संबंध था। इसके बावजूद क्या दूरी थी?
जवाब-दूरी आप कैसे बोल सकते हैं क्योंकि हमारा कोई सामाजिक लेन-देन नहीं था। सोशल इंटरैक्शन नहीं था। साथ में लंच-डिनर नहीं था। राजनीति में मैं बहुत ही जूनियर थी। मान लीजिए, कोई कंपनी का सीईओ हो और एक जूनियर एम्प्लॉयी हो, तो उनमें रेगुलर इंटरैक्शन क्या होगा। आप जिसे दूरी कह रहे हैं, वह तो नैचरल है। लेकिन बाबा के साथ सोनिया गांधी का बहुत अच्छा वर्किंग रिलेशनशिप रहा।

सवाल- किताब में आपने लिखा कि राहुल गांधी प्रणब मुखर्जी को राजनीतिक रूप से अपरिपक्व लगे। क्या लगता है आपको यह बात आप इस किताब से हटा सकती थीं? इस वक्त कांग्रेस कमजोर पोजिशन में है। इसकी वजह से उसके नेता पर सवाल उठ रहा है…
जवाब-मेरे पिता एक राजनेता थे और साथ में एक एडमिनिस्ट्रेटर भी। इतने सालों तक अलग-अलग एडमिनिस्ट्रेशन में उनकी क्या पॉलिसी रही, किस तरह का उन्होंने फ्रेमवर्क किया, संसद में किस तरह से उन्होंने अलग-अलग अधिनियम पेश किया और उन्हें पास कराया… सब महत्वपूर्ण है। लेकिन किताब की एक सीमा होती है। आप पूरी इनसाइक्लोपीडिया उसमें नहीं लिख सकते। इसलिए मैंने उन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। प्रणब मुखर्जी एक राजनेता के तौर पर कैसे थे और उनके दूसरे राजनेताओं के साथ कैसे संबंध थे, उस बारे में मैंने इस किताब में चर्चा की।

सवाल- आपने लिखा है कि अयोध्या में जो बाबरी मस्जिद गिराई गई, उसके बारे में प्रणब मुखर्जी ने अपनी डायरी में लिखा है कि आरएसएस और बीजेपी की नीतियों के चलते यह सब हुआ। बाद में वह आरएसएस के मुख्यालय भी गए। इस पर सवाल उठाए गए। इस बारे में आपकी कोई बातचीत पिताजी के साथ हुई?

जवाब-ये दो अलग-अलग सवाल हैं। जब बाबरी मस्जिद गिराई गई तो उन्होंने कहा कि आडवाणी के कारण ही ढांचा गिराया गया। लेकिन बाबरी मस्जिद लॉक खोलने के लिए उन्होंने राजीव गांधी और उनके आसपास के लोगों को दोषी ठहराया। जब बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया था, तब केंद्र और यूपी, दोनों में कांग्रेस की सरकार थी। मेरे पिता के हिसाब से यह लॉक खोलना ही नहीं चाहिए था। दूसरा सवाल है उनके आरएसएस मुख्यालय जाने का, तो उन्होंने मुझे यही बताया था कि तब एक बड़ी बहस चल रही थी कि प्रणब मुखर्जी आरएसएस में जाकर उसे बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि मैं आरएसएस को बढ़ावा देने वाला कौन होता हूं, देश की जनता ने आरएसएस को स्वीकार किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने आरएसएस प्लैटफॉर्म को यूज करके कांग्रेस की आइडियॉलजी को विस्तारित किया।

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