हिन्दुओं को सिर्फ मंदिर में प्रवेश और पूजा करने का ही मौलिक हक प्राप्‍त, नहीं बन सकते पुजारी; हाईकोर्ट का फैसला

नई दिल्‍ली (New Dehli)। केरल हाई कोर्ट(Kerala High Court) ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 (Article 25 of the Constitution)के तहत हिन्दुओं को सिर्फ मंदिर में प्रवेश (entry into the temple)करने और वहां पूजा करने का ही मौलिक अधिकार प्राप्त (get fundamental rights)है। इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान हिंदू समुदाय के किसी भी सदस्य को मंदिरों में पुजारी (अर्चक) की भूमिका निभाने का कोई अधिकार नहीं देता है।

जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25(2)(बी) के तहत पूजा करने का अधिकार पूर्ण नहीं है और कोई भी भक्त यह दावा नहीं कर सकता कि मंदिर को 24 घंटे खुला रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी पुजारी की तरह पूजा कराने या बाकी धार्मिक अनुष्ठान करने की इजाजत भी नहीं है।

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने यह भी कहा कि कोई भी भक्त यह दावा नहीं कर सकता कि उसे अनुष्ठान करने की अनुमति दी जानी चाहिए जो केवल पुजारी ही कर सकते हैं। हाई कोर्ट ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड द्वारा जारी एक अधिसूचना को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है। देवासम बोर्ड ने अपनी अधिसूचना में कहा था कि सबरीमाला अयप्पा मंदिर के मेलशांति (उच्च पुजारी) के पद के लिए आवेदन करने वाला उम्मीदवार मलयाली ब्राह्मण समुदाय से होना चाहिए।

हाई कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड की अधिसूचना को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 21 की पूरी तरह से अवहेलना है। याचिका में तर्क दिया गया था कि पुजारी के पद पर सिर्फ मलयाली ब्राह्मणों की नियुक्ति की अनिवार्य शर्त संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया था कि जाति का भेदभाव किए बिना पुजारी के पद पर ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए जो अपने कर्तव्यों के निर्वहन में में पूरी तरह से योग्य और प्रशिक्षित हों।

हालांकि, हाई कोर्ट ने यह कहते हुए देवासम बोर्ड के खिलाफ याचिकाएँ खारिज कर दीं कि इनमें उचित दलीलों का अभाव है। बावजूद इसके कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के आधार पर उठाए गए विवादों पर आगे भी बहस की जा सकती है। अयप्पा मंदिर के अंदर महिलाओं के प्रवेश से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के 9-जजों वाली पीठ के फैसले में सबरीमाला मामले में यही बदलाव आया है।

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