सवाल पूछने में मप्र के माननीय फिसड्डी

  • सत्रहवीं लोकसभा में मप्र के सांसदों की परफॉर्मेंस संतोषजनक नहीं

भोपाल। संसद को मानसून सत्र के 18 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस सत्र में जहां सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की जमीन तैयार हो गई है। वहीं सांसदों में सवाल लगाने की होड़ मची हुई है। ऐसे में सबकी नजर मप्र के सांसदों पर है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि संसद में मप्र के आधे से अधिक सांसदों की परफॉर्मेंस संतोषजनक नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिदायत के बाद भी संसद में मप्र के सांसदों की परफॉर्मेंस देश के अन्य राज्यों के सांसदों से कमतर है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब तक लोकसभा के 8 सत्र हुए हैं। इन सत्रों में मुद्दे उठाने, सवाल पूछने और प्राइवेट बिल लाने में मप्र के आधे से अधिक सांसद फिसड्डी साबित हुए हैं।
सत्रहवीं लोकसभा में हमारे प्रदेश के 29 सांसद सवाल पूछने में देश के औसत से पीछे रहे। देश का प्रति लोकसभा सदस्य का सवाल पूछने का औसत 116 प्रश्न का है, लेकिन हमारे सांसदों ने औसत 82 सवाल ही पूछे हैं। राज्य के औसत में अंडमान निकोबार सबसे आगे है। वहां के कांग्रेस सांसद कुलदीप राय शर्मा ने 414 सवाल पूछे हैं। सदन में ओवर ऑल परफॉर्मेंस देखी जाए तो मंदसौर से भाजपा सांसद सुधीर गुप्ता की परफॉर्मेंस सबसे बेहतर है वहीं, शहडोल सांसद हिमाद्री सिंह की सबसे खराब। वर्तमान संसदीय कार्यकाल का आंकलन किया जाए तो अब तक आयोजित लोकसभा के सात सत्र के दौरान मुद्दे उठाने और बहस करने में सतना से भाजपा सांसद गणेश सिंह ने प्रदेश के अन्य सांसदों को पछाड़ दिया है। अगर ओवरऑल परफॉर्मेंस की बात की जाए तो सुधीर गुप्ता प्रदेश में अव्वल हैं। वहीं खंडवा से सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल हाल ही में उपचुनाव जीतकर सदन पहुंचे हैं। उनका पहला सत्र था, जिसमें वह सिर्फ एक सवाल पूछ सके हैं, जबकि किसी भी बहस में बोलने का उन्हें मौका नहीं मिला।

सुधीर गुप्ता ने सर्वाधिक 432 सवाल पूछे
वैसे मध्यप्रदेश के मंदसौर से दूसरी बार के सांसद सुधीर गुप्ता सर्वाधिक सवाल पूछने वाले सांसदों में से एक हैं। उन्होंने संसद की 52 डिबेट में हिस्सा लिया और 432 सवाल पूछे। वे चार प्राइवेंट मेंबर बिल भी ला चुके हैं। तीन सांसद ऐसे रहे. जिन्होंने अब तक संसद में 5 सवाल भी नहीं पूछे। संसद में यूपी के डुमरियागंज सांसद जगदम्बिका पाल, केरल के मल्लापुरम से सांसद अब्दुस्समद समदानी, राजस्थान के अजमेर के भागीरथ चौधरी और छत्तीसगढ़ के कांकेर के मोहन मंडावी की 100 फीसदी उपस्थिति है। वहीं मप्र में बालाघाट सांसद डॉ. ढाल, सिंह बिसेन की 99 फीसदी उपस्थिति है। सीधी की रीति पाठक संसद में 98 फीसदी मौजूद रहीं। बैतूल के डीडी उइके, देवास के महेंद्र सिंह सोलंकी व इंदौर शंकर लालवानी कार्यवाही के दौरान 97 फीसदी तक सदन में रहे।

मप्र के किसी सांसद की 100 फीसदी उपस्थिति नहीं
संसद में औसत उपस्थिति में देश के औसत 79 है। वहीं मध्यप्रदेश का औसत 85.8 पर हमारा कोई भी सांसद 100 फीसदी उपस्थिति वाला नहीं है। सबसे ज्यादा उपस्थिति वाला राज्य हिमाचल है यहां के सांसदों की औसत उपस्थिति 94.5 फीसदी है। राजनीतिक विश्लेषक भानु चौबे का कहना है कि अगर सांसद न सदन की कार्यवाही में भाग ले रहे हैं, न जनता से जुड़े हुए सवाल पूछ रहे हैं तो उन्हें जनता के धन पर सुख-सुविधा भोगने का कतई अधिकार नहीं है। अगर ये ऐसे सांसद अपने इलाके में भी सक्रिय नहीं हैं तो आम मतदाता सब समझता है।

मप्र का औसत 82 सवाल
संसद सत्र में सवाल पूछने में मप्र के सांसदों की परफॉर्मेंस साल दर साल चिंताजनक है। सवाल पूछने का अंडमान निकोबार का औसत 414 है। वहीं महाराष्ट्र का 223, त्रिपुरा का 200, लक्षदीप को 177, केरल का 166, आंध्रप्रदेश का 164,तमिलनाडू का 159, राजस्थान का 145, तेलांगना का 130, गुजरात का 119, दिल्ली का 112, छत्तीसगढ़ का 90, हरियाणा का 85, मध्यप्रदेश का 82 सवाल का है।

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