नई दिल्ली (New Delhi)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) का 17 सितंबर को जन्मदिन है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 17 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था। प्रधानमंत्री मोदी का एक आरएसएस प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है।
17 सितंबर 1950 को गुजरात के महेसाणा स्थित वडनगर में जन्में नरेन्द्र मोदी पर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। छह भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) बचपन में बाकी बच्चों से अलग स्वभाव के थे। मां हीराबेन उन्हें प्यार से नरिया बुलाती थीं तो दूसरी ओर दोस्तों के बीच वह एनडी के नाम से प्रिय थे। बेहद उतार चढ़ाव भरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सफर हर किसी को प्रेरित करता है।
17 साल की उम्र में छोड़ा घर
किशोरावस्था तक आते आते उनके भीतर का द्वंद्व आकार लेने लगा था। यह द्वंद्व था देश के लिए कुछ कर गुजरने का… यही कोई 17 साल की उम्र रही होगी जब नरेन्द्र मोदी ने एक असाधारण निर्णय लिया। उन्होंने घर छोड़कर देश भ्रमण करने का फैसला किया। परिवार का हर सदस्य उनके इस फैसले से चकित था, लेकिन मोदी की जिद के आगे किसी की नहीं चली और इसे स्वीकार किया। घर त्यागने के दिन मां ने नरेन्द्र मोदी के लिए विशेष अवसरों पर बनाया जाने वाला मिष्ठान बनाया और मस्तक पर परम्परागत तिलक लगाकर विदा किया।
ऐसा रहा आध्यात्मिक सफर
घर छोड़ने के बाद पीएम मोदी देश के हर हिस्से में गए। हिमालय में वह गुरूदाचट्टी में ठहरे जबकि पश्चिम बंगाल में रामकृष्ण आश्रम को ठिकाना बनाया। देश के पूर्वोत्तर हिस्सों में भी गए। भारत भ्रमण के दौरान उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों का अनुभव किया। इन यात्राओं ने उनके व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया। यह पीएम मोदी की आध्यात्मिक जागृति का वह समय था जब वह स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुए। पीएम मोदी स्वामी विवेकानंद के बड़े प्रशंसकों में शामिल हैं।
ऐसे हुई सियासी सफर की शुरुआत
नरेन्द्र मोदी दो साल के भारत भ्रमण के बाद वापस तो लौटे लेकिन घर पर वह ज्यादा दिनों तक खुद को रोककर रख नहीं पाए। महज दो हफ्ते बाद ही उन्होंने अगले सफर की शुरुआत कर दी। इस बार उनका लक्ष्य बेहद स्पष्ट और निर्धारित था। यह सफर उनका सियासी सफर बनने वाला था। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ने का निश्चय करके अहमदाबाद के लिए रवाना हुए। उन्होंने देशसेवा का प्रण लिया और आरएसएस का नियमित सदस्य बन गए। वर्ष 1972 में उनको प्रचारक की जिम्मेदारी मिली। इसके साथ उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की।
संघ के शीर्ष नेताओं से मुलाकात
संघ के प्रचारक के रूप में वह गुजरात के हर हिस्से में गए। यह 1973 का दौर था जब मोदी को सिद्धपुर में एक विशाल सम्मलेन आयोजित करने जिम्मेदारी मिली जहां संघ के शीर्ष नेताओं से उनका मिलना हुआ। यह ऐसा समय था जब गुजरात समेत पूरा हिन्दुस्तान बेहद अस्थिर माहौल से गुजर रहा था। उस समय अहमदाबाद साम्प्रदायिक दंगों से जूझ रहा था। देशभर में लोग कांग्रेस से नाराज थे नतीजतन कांग्रेस को 1967 के लोकसभा चुनावों में करारी हार मिली। तब कांग्रेस इंदिरा एवं अन्य असंतुष्ट गुट में बंट गई।
गुजरात से भड़की चिंगारी देशभर में फैल गई
वर्ष 1970 के शुरुआत में इंदिरा की अगुवाई वाली कांग्रेस से लोगों का मोहभंग होने लगा। इसी दौरान अकाल और महंगाई ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया। यह वह दौर था जब आम आदमी के लिए सरकार से कोई राहत नहीं मिल रही थी। दिसम्बर 1973 में मोरबी (गुजरात) इंजीनियरिंग कॉलेज से विरोध की चिंगारी भड़की जिसने अन्य राज्यों को भी अपनी चपेट में ले लिया। बड़ी संख्या में महंगाई और बेरोजगारी से परेशान लोग इन प्रदर्शनों जमा होने लगे और सरकार के खिलाफ एक बड़ा आन्दोलन खड़ा हो गया।
जब लगा आपातकाल
जयप्रकाश नारायण भी इस आन्दोलन के साथ उतरे और अहमदाबाद आगमन पर उनकी मुलाकात नरेन्द्र मोदी से हुई। आखिरकार जनआक्रोश के चलते गुजरात में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। जनाक्रोश की आंच केंद्र की सत्ता तक महसूस की गई नतीजतन 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल में विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, मोरारजी देसाई समेत कई नेता जेल में डाल दिए गए। आपातकाल के दौरान पीएम मोदी ने पर्दे के पीछे रहकर महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई।
आपातकाल विरोधी आंदोलन में रहे सक्रिय
भीतर ही भीतर आपातकाल के विरोध की आग भड़कती रही। नरेन्द्र मोदी ने आपातकाल विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। वह इस तानाशाही के खिलाफ गठित क गई गुजरात लोक संघर्ष समिति (जीएलएसएस) के सदस्य थे। बाद में उन्हें महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। मोदी इस आंदोलन में भेष बदल कर सक्रिय रहे। आखिरकार आपातकाल खत्म हुआ। साल 1977 के संसदीय चुनावों में इंदिरा गांधी की करारी शिकस्त हुई।
मोदी के संगठनात्मक काम की सराहना और दिल्ली पहुंचे
नई जनता पार्टी की सरकार में जनसंघ नेताओं में अटल और आडवाणी जी को मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलीं। नरेन्द्र मोदी के संगठनात्मक काम की सराहना हुई और उन्हें दिल्ली बुलाया गया। नरेन्द्र मोदी संघ के काम में जुटे हुए थे। 1987 में वह भाजपा में शामिल हुए। बाद में वरिष्ठ नेताओं की ओर से मोदी को पार्टी में बड़ी जिम्मेदारियां मिलती गईं।
रथ यात्रा के दौरान अहम भूमिका निभाई
बाद में 1988-89 के दौरान नरेन्द्र मोदी को गुजरात भाजपा में महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके बाद से मोदी का सियासी सफर तेजी से आगे बढ़ा। साल 1990 में उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान अहम भूमिका निभाई। 1995 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया।
गुजरात की धरती से दिल्ली तक का सफर
बाद में पांच राज्यों के प्रभारी बनाए गए। साल 2001 में गुजरात में एक विनाशकारी भूकंप आया जिसमें 20 हजार लोगों की मौत हो गई। प्रशासनिक लापरवाही के चलते तत्कालीन सीएम केशुभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा। पीएम मोदी को दिल्ली से गुजरात भेजा गया। वह मुख्यमंत्री बनाए गए। साल 2012 से उन्हें पीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रचारित किया जाने लगा। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी ने पीएम उम्मीदवार के तौर पर भाजपा को बड़ी सफलता दिलाई। इसके बाद वे लगातार देश की कमान संभाल रहे हैं।
नरेंद्र मोदी की जीवनी
नरेंद्र दामोदरदास मोदी (Narendra Damodardas Modi) का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के वडनगर में हुआ। मोदी जब सिर्फ आठ साल के थे, तभी वह राष्ट्रीय स्वयेसंवक संघ (RSS) के संपर्क में आए। वह महज 20 साल की उम्र में पूरी तरह से आरएसएस के प्रचारक बन गए। वह पहली बार 1971 में औपचारिक रूप से आरएसएस में शामिल हुए थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुरकर नहीं देखा। मोदी ने बचपन में वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता की भी मदद की।
1985 में आरएसएस ने नरेंद्र मोदी को भाजपा को सौंपा था। पार्टी ने उन्हें 1987 में अहमदाबाद नगरपालिका में बीजेपी के चुनावी अभियान को संचालित करने की जिम्मेदारी सौंपी। इस चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली। 1987 में नरेंद्र मोदी को गुजरात ईकाई का ऑर्गेनाइजिंग सचिव बनाया गया। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा और 1991 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा को आयोजित करने में मदद की।
1995 में नरेंद्र मोदी को भाजपा का राष्ट्रीय सचिव (national secretary) नियुक्त किया गया और वह गुजरात से दिल्ली पहुंचे। उन्होंने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी के चुनाव अभियान का नेतृत्व भी किया। इसके एक साल बाद ही उनका प्रमोशन हो गया। पार्टी ने उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया।
6 वर्षों तक केंद्रीय टीम (central team) में काम करने के बाद बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को फिर गुजरात वापस भेजा। 7 अक्टूबर 2001 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राजकोट में उन्होंने कांग्रेस के अश्विनी मेहता को 14 हजार से अधिक मतों से चुनाव हरा दिया। आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी का यह पहला चुनाव था। नरेंद्र मोदी 12 वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहे।
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