मानवीय क्रियाकलाप और प्रदूषित होते महासागर

– योगेश कुमार गोयल

जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा, पारिस्थितिकी संतुलन, जलवायु परिवर्तन, सामुद्रिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग इत्यादि विषयों पर प्रकाश डालने तथा महासागरों की वजह से आने वाली चुनौतियों के बारे में दुनिया में जागरुकता पैदा करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 08 जून को ‘विश्व महासागर दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस महासागरों को सम्मान देने, उनका महत्व जानने तथा उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने का अवसर प्रदान करता है। मानव जीवन में महासागरों की महत्वपूर्ण भूमिका और इनके संरक्षण के लिए अनिवार्य प्रयासों के संबंध में वैश्विक जागरुकता बढ़ाने के लिए ही इस दिवस का आयोजन किया जाता है।

दरअसल समुद्रों का हमारे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन बढ़ते मानवीय क्रियाकलापों के कारण दुनियाभर के महासागर बुरी तरह प्रदूषित हो रहे हैं। इसीलिए विश्व महासागर दिवस के आयोजन के जरिये समुद्रों की साफ-सफाई के प्रति जन-जागरूकता फैलाने के साथ लोगों को उनके रोजमर्रा के जीवन में महासागरों की प्रमुख भूमिका का स्मरण कराया जाता है। दरअसल भोजन और दवाओं के प्रमुख स्रोत तथा जीवमंडल का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा हैं महासागर, इसीलिए इनका संरक्षण बेहद जरूरी है। हिन्दी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित बहुचर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के मुताबिक महासागरों का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बड़ा महत्व है और पृथ्वी पर जीवन का आरंभ इन्हीं महासागरों से ही माना जाता है। ऐसा माना गया है कि पहली बार महासागरीय जल में ही जीवन का अंकुर फूटा था लेकिन आज यही महासागर प्रदूषण के बोझ से कराह रहे हैं। दरअसल दुनिया में विकास की रफ्तार तेज होने के साथ महासागरों के दूषित होने की गति भी उसी तेजी से बढ़ती गई है।

रियो डी जेनेरियो में वर्ष 1992 में हुए ‘पृथ्वी ग्रह’ नामक फोरम में प्रतिवर्ष ‘विश्व महासागर दिवस’ मनाने का निर्णय लिया गया था। तब कनाडा के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ओशन डवलपमेंट तथा ओशन इंस्टीट्यूट ऑफ कनाडा द्वारा ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’ में इसकी अवधारणा का प्रस्ताव रखा गया था। इस अवधारणा का मूल उद्देश्य लोगों को महासागरों पर मानवीय क्रियाकलापों के प्रभावों को सूचित करना, महासागर के लिए नागरिकों का एक विश्वव्यापी आन्दोलन विकसित करना तथा विश्वभर के महासागरों के स्थायी प्रबंधन के लिए एक परियोजना पर वैश्विक आबादी को जुटाना व एकजुट करना है। वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस अवलोकन को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई, जिसके बाद यह दिवस ‘द ओशन प्रोजेक्ट’ तथा ‘वर्ल्ड ओशन नेटवर्क’ के सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष 8 जून को मनाया जाने लगा।

वायु और जल ही पृथ्वी पर जीवन के आधार हैं और हमारी पृथ्वी का करीब दो तिहाई हिस्सा महासागरों से घिरा है, जिनमें पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का करीब 97 प्रतिशत जल समाया हुआ है। हालांकि पृथ्वी का इतना बड़ा हिस्सा जल से घिरा होने के बावजूद दुनियाभर में शुद्ध पानी की मात्रा बेहद कम है। समुद्रों से घिरे होने के कारण ही पृथ्वी को ‘वाटर प्लैनेट’ भी कहा जाता है लेकिन अब इसी वाटर प्लैनेट का अस्तित्व खतरे में है। महासागर पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं और पृथ्वी पर जीवन का प्रतीक हैं। अनादिकाल से महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं, जिनमें अति सूक्ष्म जीवों से लेकर विशालकाय व्हेल तक अनेक प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पतियां पनपती हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्रों में जीवों की करीब दस लाख प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका प्राकृतिक आवास हैं महासागर। असीम जैव विविधता के प्रतीक महासागर पृथ्वी के फेफड़ों की भांति हैं, इन्हीं से पूरी दुनिया को अधिकांश ऑक्सीजन मिलती है, जिससे हम सांस लेते हैं। इसके अलावा मानव द्वारा उत्पादित तीस फीसदी से भी ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड को पृथ्वी के यही फेफड़े ग्रहण करते हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में बताया गया है कि महासागर ऑक्सीजन प्रदान करने तथा कार्बन डाइऑक्साइड को अपने अंदर ग्रहण के अलावा हमारी जलवायु को भी स्थिर रखने में भी मदद करते हैं, बड़ी मात्रा में हवा तथा भोजन प्रदान करते हैं और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने में मददगार होते हैं। मौसम में आने वाले बदलाव तथा जलवायु परिवर्तन की जानकारी प्रदान करने में भी महासागरों की अहम भूमिका होती है। तटीय इलाकों में रहने वाली दुनिया की करीब तीस फीसदी आबादी का तो जनजीवन पूरी तरह से महासागरों पर ही निर्भर है। विशाल महासागरों से पैट्रोलियम के साथ-साथ अनेक अन्य संसाधन भी प्राप्त होते हैं।

दुनियाभर में कई देशों की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में भी महासागरों का बहुत बड़ा योगदान है। महासागर खाद्य पदार्थों का प्रमुख स्रोत होने के कारण हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक समुद्री और तटीय संसाधनों का वैश्विक स्तर पर बाजार मूल्य प्रतिवर्ष तीन ट्रिलियन डॉलर है। तटीय इलाकों में निवास करने वाले मछुआरों के अलावा समुद्री टूर ऑपरेटरों, लाइफगार्ड, सर्फ प्रशिक्षक, डाइविंग स्कूल, जल क्रीडा तथा बंदरगाह व्यवसाय से जुड़े लोगों और नाविकों को रोजगार भी महासागरों से ही मिलता है। कुछ अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि समुद्रों में बढ़ते प्रदूषण और समुद्री जीवों पर इसके दुष्प्रभावों की वजह से समुद्री तटों के आसपास रहने वाले समुदायों को 1.38 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का नुकसान पहुंच रहा है।

‘ओशियन क्लीनअप’ नामक संगठन द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक प्लास्टिक समुद्रों में रहने वाली सात सौ से भी ज्यादा जीवों की प्रजातियों को नुकसान पहुंचा रहा है, जिनमें से सौ के करीब पहले से ही खतरे में हैं। इसके अलावा समुद्रों में समाते सीवेज तथा अनेक प्रकार के हानिकारक रसायन भी स्थिति को विकराल बना रहे हैं। समुद्रों तथा उनके आसपास रहने वाले लोगों के जीवन तथा आजीविका का मुख्य स्रोत ये समुद्र ही हैं, ऐसे में समुद्रों में बढ़ता प्लास्टिक कचरा तथा रासायनिक प्रदूषण सभी के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। ऐसे में अत्यंत जरूरी है कि समुद्रों का संरक्षण करने और इन्हें प्रदूषण रहित बनाने के लिए पूरी दुनिया में गंभीरता से कदम उठाए जाएं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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