अमेरिकी सदन में तिब्बत को लेकर अहम बिल पास, इस कदम से चीन हो सकता है नाराज

वाशिंगटन (Washington)। अमेरिकी कांग्रेस (American Congress) के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (House of Representatives) यानी कि निचले सदन ने एक विधेयक पास किया है। यह विधेयक चीन को नाराज (China angry) कर सकता है। दरअसल अमेरिका (America) के निचले सदन ने चीन-तिब्बत विवाद (China-Tibet dispute) संबंधी विधेयक पारित किया है, जिसमें बातचीत के जरिए चीन-तिब्बत विवाद को सुलझाने की अपील की गई है। अमेरिका के दोनों दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया है। इस विधेयक का मकसद चीन की सरकार पर दबाव बनाना है कि वे दलाई लामा और तिब्बत के लोकतांत्रिक नेताओं से बातचीत करें। यह विधेयक चीन की वन चाइना पॉलिसी (China’s One China Policy.) को सीधी चुनौती है।

बातचीत से विवाद हल करने की अपील
चीन-तिब्बत विवाद विधेयक को कांग्रेसमैन जिम मैक्गवर्न और माइकल मैक्कॉल ने पेश किया। इस बिल में चीन के उस दावे को खारिज किया गया है, जिसमें चीन, तिब्बत को अपना हिस्सा बताता है। सीनेटर जैफ मर्कले और टॉड यंग ने भी ऐसा ही एक अन्य विधेयक अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया। जिम मैक्गवर्न ने कहा कि ‘इस विधेयक के समर्थन में वोट तिब्बत के लोगों के अधिकारों को पहचान देने जैसा होगा। साथ ही ये वोट चीन और तिब्बत के बीच जारी विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के पक्ष में होगी। अभी भी बातचीत से विवाद का हल हो सकता है, लेकिन समय तेजी से बीत रहा है।’ कांग्रेसमैन यंग किम ने कहा कि ‘यह विधेयक तिब्बत के लोगों को अपनी बात कहने का हक देगा। साथ ही यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और तिब्बत के बीच सीधी बातचीत पर भी जोर देता है।’

क्या है चीन-तिब्बत विवाद
चीन का मानना है कि तिब्बत, चीन का हिस्सा है। वहीं तिब्बत के लोग मानते हैं कि तिब्बत कई शताब्दियों से स्वतंत्र राष्ट्र रहा है। चीन का दावा है कि 18वीं शताब्दी में तिब्बत चीन के आधिपत्य में आया और 19वीं शताब्दी तक चीन के अधीन रहा। इसके बाद ब्रिटेन ने तिब्बत पर हमला कर उसे चीन से अलग कर दिया। ब्रिटिश शासन की भारत से विदाई के बाद दो साल तक यानी कि साल 1949 तक चीन ने तिब्बत पर दावा नहीं किया था। साल 1950 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर तिब्बत पर कब्जे की कोशिश शुरू कर दी।

साल 1951 में तिब्बत सरकार को तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देने के लिए मजबूर करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर कराए गए और फिर चीन ने तिब्बत में अपनी सत्ता स्थापित कर ली। साल 1959 में तिब्बत के लोगों ने चीन के खिलाफ विद्रोह किया, लेकिन चीन ने उस विद्रोह को ताकत के दम पर कुचल दिया। इस दौरान बड़ी संख्या में तिब्बती लोग मारे गए और तिब्बत के सर्वोच्च धार्मिक नेता दलाई लामा समेत करीब 80 हजार से ज्यादा लोगों को भारत और अन्य देशों में निर्वासित होना पड़ा।

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