भारत दुनिया में फुटवियर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, फिर भी बहुत कम होता है जूतों-चप्पल पर खर्च

नई दिल्‍ली (New Delhi) । देश के जूता-चप्पल उद्योग (footwear industry) के बाजार की वृद्धि आने वाले दिनों में 90 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। आर्थिक शोध संस्थान वैश्विक व्यापार अनुसंधान पहल यानी जीटीआरआई (GTRI) की रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ती वैश्विक मांग और भारत (India) का वैश्विक व्यापार (Global business) में अच्छा खासा दखल होने की वजह से, अगले छह से सात साल में ये लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। साथ ही इस लक्ष्य को हासिल करने के दौरान बड़े पैमाने पर रोजगार भी पैदा होने के आसार हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहां दुनियाभर के कुल उत्पादन का 13 फीसदी उत्पादन होता है। साथ ही वैश्विक निर्यात का करीब 2.2 फीसदी हिस्सा भारत से किया जाता है। जीटीआरआई के मुताबिक भारत में न केवल उत्पादन बढ़ाने और निर्यात में भी इजाफा करने की भी पर्याप्त क्षमता मौजूदा है।

जूतों-चप्पल पर खर्च अभी बेहद कम
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि देश में जूतों-चप्पल पर खर्च अभी बेहद कम होता है। यहां प्रति व्यक्ति खर्च 1500 रुपए के आस पास रहता है जो दुनिया के बाकी बाजारों के मुकाबले काफी कम है। साथ ही भारतीय बाजारों में करीब 70 फीसदी हिस्से पर चमड़े के जूते चप्पलों का ही कब्जा है। इस उद्योग से 45 लाख लोग जुड़े हुए हैं। उनमें 40 फीसदी से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं।

सस्ते आयात पर लगाम जरूरी
इस क्षेत्र में चीन और दूसरे देशों से बड़े पैमाने पर आयात होता है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि तीन डॉलर आयात मूल्य से कम के जूतों-चप्पलों पर कस्टम ड्यूटी 35 फीसदी कर दी जानी चाहिए और घरेलू उद्योग को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा दिया जाना चाहिए। इससे देश के उत्पादकों को लाभ होगा।

रिपोर्ट के मुताबिक यदि इस उद्योग को सस्ते आयात पर प्रतिबंध, राजकोषीय प्रोत्साहन, अधिक डिजाइन केंद्र और ताइवान के अनुबंधित विनिर्माताओं को यहां दुकानें स्थापित कराने जैसे उपाय किए जाएं, तो यह उद्योग तेजी से आगे बढ़ेगा।

इन प्रयासों से मौजूदा 26 अरब डॉलर का भारतीय फुटवियर बाजार 2030 तक 90 अरब डॉलर तक हो सकता है। यह वृद्धि मुख्य रूप से भारत में गैर-चमड़े के जूते जैसे खेल के जूते, दौड़ने के जूते, कैज़ुअल वियर और स्नीकर्स की मांग में हो रही वृद्धि का फायदा उठाकर हो सकती है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लाने की मांग
इस उद्योग के लिए उत्पादन आधारित इंसेंटिव योजना की भी मांग की जा रही है। दरअसल भारत, जूता बनाने में इस्तेमाल होने वाले सामान का उत्पादन नहीं करता है। इनमें आउटसोल मोल्ड, ग्लू, एथिलीन विनाइल एसिटेट यानि ईवीए ग्रैन्यूल शामिल हैं। मौजूदा समय में, निर्माता ऐसी चीजों का आयात करते हैं, जिससे उत्पादन लागत 30-40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसी वजह से चीन और वियतनाम से प्रीमियम जूते आयात होते हैं।

Leave a Comment