दुनिया को भारत देगा पहले जल विश्वविद्यालय का उपहार

– मुकुंद

समूचा संसार लंबे समय आशंकित है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। यह आशंका निर्मूल भी नहीं है। कई देशों में पानी का संकट गहरा भी गया है। इसका सबसे हालिया उदाहरण दक्षिण अफ्रीका है। इस देश की राजधानी केप टाउन गंभीर जल संकट का सामना करने को अभिशप्त है। ऐसे मुश्किल समय में दुनिया को भारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के अमृतकाल में इस संकट से उबारने का मंत्र देने जा रहा है। भारत में दुनिया के पहले जल विश्वविद्यालय की परिकल्पना आकार ले रही है। इसकी उम्मीद जगाई है देश के पहले जलयोद्धा के रूप में सम्मानित उमाशंकर पाण्डेय और भारतीय मूल के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. रविकांत पाठक ने।

डॉ. पाठक कई दशक से विदेश में जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे हैं। फिलहाल वह स्वीडन के गोथेनवर्ग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। जलग्राम जखनी के पाण्डेय को उनके सेवाधर्म ‘खेत में मेड़ और मेड़ पर पेड़’ के अभियान के लिए मोदी सरकार पद्मश्री देकर जल बचाओ अभियान को फलक पर पहुंचा चुकी है। पाण्डेय और पाठक का दावा है कि यह दुनिया का पहला जल विश्वविद्यालय होगा। पाण्डेय के इस अभियान का नतीजा है कि बुंदेलखंड का सूखा काफी हद तक खत्म हो चुका है। चित्रकूटमंडल धान उत्पादन में मील का पत्थर कायम कर रहा है। उमाशंकर और डॉ.रविकांत की सोच से उपजे दुनिया के पहले जल विश्वविद्यालय के लिए पचास एकड़ जमीन दान पर मिल चुकी है। और भी लोग इसके लिए आगे आ रहे हैं।

प्रो. पाठक ने स्वीडन से वर्चुअली संवाद में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को बताया कि संकट यह है कि आज भारत के अलावा दुनिया में अन्य किसी के पास जल के रहस्य, उसके गुण, उसकी शक्ति और ज्ञान की जानकारी किसी के पास नहीं है। अभी तक पानी के बारे में पूर् तरीके से कोई नहीं पढ़ पाया। इसीलिए पूरी दुनिया में पानी का संकट मंडरा रहा है। पानी के बिना प्रकृति और मानव जीवन की कल्पना असंभव है। दुनिया में बिगड़ते पर्यावरण के कारण ही हम सब जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे हैं। प्रो. पाठक का दृढ़ मत है कि जल ही एकमात्र जीवन का सबसे बड़ा आधार है। इसलिए पानी पर भी उच्च शिक्षा की व्यवस्था हो, यह अब जरूरी हो गया है। वह कहते हैं सारे संसार में कृषि, कानून, संस्कृत, संगीत के अलावा अलग-अलग विषय केंद्रित विश्वविद्यालय तो हैं पर कहीं भी जल विश्वविद्यालय नहीं है। उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड अकाल की विभीषिका और पिछड़ेपन के लिए लंबे समय तक जाना गया है। केंद्र और राज्य सुशासन प्रदान करने वाली सरकार और स्वैच्छिक कार्यक्रमों की बदौलत बुंदेलखंड की तसवीर अब बदली है। इस बदली छवि को और संवारने के लिए चित्रकूटधाम मंडल के हमीरपुर जिले में दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव जिला अधिकारी हमीरपुर के माध्यम से उत्तर प्रदेश शासन को भेजा जा चुका है। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय पाण्डेय की देखरेख में संचालित होगा।

‘इस जल विश्वविद्यालय में नवीन और परंपरागत ज्ञान प्रदान करने के साथ सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री जैसे उच्च विषय रहेंगे। अगर किसी को पानी बचाने में रुचि है तो उसके लिए विश्वविद्यालय के दरवाजे सदैव खुले रहेंगे। ऐसे व्यक्ति को शिक्षक प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। सरकार और यूजीसी के नियमों के तहत इस वैश्विक जलज्ञान मंदिर में भारतीय पुरखों की जल बचाने और जल जोड़ने (संचयन) की बेजोड़ विधियों का व्यावहारिक अध्ययन दिया जाएगा। साथ ही ऋषि-मुनियों के जल ज्ञान का प्रसाद प्रमाणिकता के साथ कोर्स में शामिल किया जाएगा। विश्वविद्यालय की कोशिश होगी जगत के सभी जीव-जंतु-पशु-पक्षियों का जीवन आसान हो। किसी को भी बूंद-बूंद के लिए तरसना न पड़े’-यह कहना है उमाशंकर पाण्डेय का। उन्होंने कहा कि दिसंबर में शिलान्यास होने की उम्मीद है। ऋषि-मुनियों की परंपरा के वाहक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इसके लिए जल्द ही समय मांगा जाएगा। पाण्डेय आशान्वित हैं कि प्रधानमंत्री समूची मनुष्यता के हित में आसन्न जल विभीषिका को रोकने के इस पुनीत कार्य का श्रीगणेश कर विश्व को अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगे।

इस विश्वविद्यालय की परिकल्पना में गंगा सिर्फ नदी नहीं हैं। वो पापनाशिनी और मोक्षदायिनी हैं। वो मां हैं। समस्त जगत की जननी हैं। पेड़ सिर्फ छाया देने वाले या लकड़ी देने वाले वृक्ष नहीं हैं। वो पिता हैं। वो देव हैं। जल का हर स्रोत देवतुल्य है। भारत की हर नदी शैलपुत्री है। इसलिए इस जल ज्ञान के मंदिर में मां गंगा के साथ सभी शैलपुत्रियों के प्रताप की गाथा पढ़ाई जाएगी। इस विश्वविद्यालय के लिए भू-भाग की व्यवस्था राठ-हमीरपुर मार्ग पर राज्यमार्ग संख्या-42 में छानी मोड़ से लगभग सात किलोमीटर दूर रिरूईपारा गांव में की गई है। हमीरपुर के जिला अधिकारी ने शासन के उच्च शिक्षा अनुभाग-4 को भेजे पत्र में भूमि की जांच आख्या प्रेषित की है। इसमें कहा गया है कि इसका निर्माण भारत उदय कर्मयोगी आश्रम (ट्रस्ट) कराएगा। इस आश्रम का परिसर रमणीक है। परिसर सैकड़ों वृक्षों से आच्छादित है। बहरहाल मूर्तरूप ले रहे इस विश्वविद्यालय के एक नोट में इसके अकादमिक ढांचे पर चर्चा की गई है। इसमें साफ किया गया है कि यहां वाटर साइंस, वाटर इंजीनयरिंग ऐंड मैनजमेंट, वाटर ऐंड ह्यूमनटीज, वाटर ऐंड स्पेस, वाटर ऐंड सोसाइटी और वाटर ऐंड नेचर पर वृहद शिक्षा दी जाएगी। इसका कैंपस सत्तर एकड़ में होगा।

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