डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों पर जीएसटी से बढ़ेगी महंगाई, कैट ने कहा- बढ़ेगा बोझ, छोटी कंपनियों को नुकसान


नई दिल्ली। डिब्बा बंद और लेबल वाले खाद्य पदार्थों पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने से रोजमर्रा इस्तेमाल वाली जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ जाएंगे। जीएसटी परिषद के इस फैसले से अनुपालन का बोझ बढ़ेगा, जिसे खाद्यान्न कारोबारियों को नुकसान होगा। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सोमवार को कहा कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और राज्यों के वित्तमंत्रियों को इस फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए।

जीएसटी परिषद की 47वीं बैठक में डिब्बा बंद या लेबल युक्त मांस, मछली, दही, पनीर, लस्सी, शहद और मुरमुरे पर 18 जुलाई से 5% जीएसटी लगाने का फैसला किया गया है। कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, देश के खाद्यान्न कारोबारी आक्रोशित हैं। इस फैसले से बड़ी कंपनियों को लाभ होगा, जबकि छोटी कंपनियों और कारोबारियों को नुकसान होगा। ऐसे में संगठन सभी राज्यों के वित्तमंत्रियों से फैसला वापस लेने की मांग करेगा।

अपीलीयी न्यायाधिकरण पर एक माह में सिफारिशें
राजस्व सचिव तरुण बजाज ने एसोचैम के कार्यक्रम में सोमवार को कहा, जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन के बारे में राज्यों के वित्तमंत्रियों की समिति एक महीने के भीतर अपनी सिफारिश देगी। जीएसटी परिषद ने माल एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (जीएसटीएटी) के गठन के बारे में विभिन्न राज्यों की चिंताओं के समाधान के लिए मंत्री समूह बनाने का निर्णय पिछले हफ्ते लिया था। जीएसटी परिषद सचिवालय जल्द ही नियम, शर्तों और मंत्री समूह के सदस्यों के नाम की जानकारी देगा।

विलासिता वस्तुओं पर 28% ही टैक्स : सचिव
राजस्व सचिव ने कहा कि विलासिता वाले उत्पादों पर 28% की अधिकतम दर से ही जीएसटी का भुगतान करना पड़ेगा। हालांकि, अन्य तीन कर दरों को हम दो में समायोजित कर सकते हैं। हम यह देख सकते हैं कि देश किस तरह आगे बढ़ता है और क्या इन दरों को कम कर सिर्फ एक दर पर ला सकते हैं या नहीं।

  • उन्होंने कहा, जीएसटी के लागू होने के 5 साल बाद अब आत्मावलोकन का समय है ताकि देखा जा सके कि यह ढांचा किस तरह विकसित हुआ है।
  • पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग पर कहा कि ईंधन पर लगने वाला कर केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा होता है। इसके लिए कुछ समय तक इंतजार करना होगा।

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