नई दिल्ली। शिक्षक किसी भी व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा होता है। वो शिक्षक ही होते हैं जो जीवन को दशा और दिशा देते हैं। भारत के प्राचीन काल में ऐसे कई गुरु, शिक्षक रहे हैं जिनकी दी हुई शिक्षा आज भी उतनी ही अहम है। फिर वो गुरु द्रोणाचार्य हो या चाणक्य, उनकी बातों और आदर्शों का महत्व आज भी उतना ही है।
जानिए ऐसे ही दस गुरुओं के बारे में-
गुरु द्रोणाचार्य : द्रोणाचार्य (Guru Dronacharya) को कौन नहीं जानता भला। कौरवों और पांडवों को शस्त्रों की शिक्षा देने वाले द्रोणाचार्य का स्थान शिक्षकों में काफी ऊपर कहा जाता है। वो द्रोणाचार्य की शिक्षा ही थी जिसने अर्जुन को एक महान योद्धा बनाया। अर्जुन ने भी कठिन परिश्रम से अपने गुरु का मान रखा, जिससे प्रसन्न होकर द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ब्रह्मा के शक्तिशाली दिव्य हथियार ब्रह्मास्त्र का आह्वान करने के लिए मंत्र बताए थे।
आदि शंकराचार्य : आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने भारत के संतों को एकजुट कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया था। उन्होंने चार धामों को पुनर्जीविक किया और देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की, जिसने अद्वैत वेदांत के ऐतिहासिक विकास, पुनरुद्धार और प्रसार में मदद की। उन्होंने देशभर में अपने विचार और हिंदू धर्म का प्रचार किया।
महर्षि सांदीपनि : महर्षि सांदीपनि (Maharishi Sandipani) विष्णु के अवतार कृष्ण के गुरु थे। उनका आश्रम मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ करता था जहां श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और दोस्त सुदामा के साथ शिक्षा ग्रहण की थी। शिक्षा पूरी होने के बाद कृष्ण और बलराम ने सांदीपनि से गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा था, जिसपर सांदीपनि ने उनसे अपने खोया हुआ पुत्र ढूंढने के लिए कहा था। श्रीकृष्ण और बलराम ने मिलकर उनके बेटे को ढूंढा था।
चाणक्य : चंद्रगुप्त मौर्य को सत्ता के सिंहासन पर बिठाने के पीछे चाणक्य (Chanakya) का ही हाथ कहा जाता है। राजनीति और अर्थशास्त्र को लेकर ये उनकी बारीक समझ ही थी कि उन्हें भारतीय इतिहास का सबसे महान राजनीतिज्ञ कहा जाता है। उन्होंने अपनी कूटनीति और राजनीतिक समझ से चंद्रगुप्त जैसे एक साधारण इंसान को सिंहासन के तख्त पर बैठा दिया।
विश्वमित्र : विश्वमित्र (Vishwamitra) प्राचीन भारत के सबसे सम्मानित ऋषियों में से एक है। उन्हें गायत्री मंत्र सहित ऋग्वेद के मंडला 3 के अधिकांश लेखक के रूप में भी श्रेय दिया जाता है। वशिष्ट से युद्धा हार जाने का बाद विश्वामित्र ने अपना राजकाज छोड़, तपस्या में ध्यान लगाया था। घोर तपस्या के बाद उन्होंने वशिष्ट से ही ब्रह्मर्षि का पद लिया था।
स्वामी समर्थ रामदास : स्वामी समर्थ रामदास (Swami Samarth Ramdas) महाराष्ट्र के आध्यात्मिक कवि थे। उन्हें अपने अद्वैत वेदांतवादी पाठ, दासबोध के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। रामदास हनुमान और राम के भक्त थे। वो छत्रपति शिवाजी महाराज का आध्यात्मिक गुरु भी थे।
परशुराम : विष्णु के छठें अवतार परशुराम (Parshuram) अपने क्रोध के लिए भी जाने जाते थे। परशुराम ने अपने पिता के कहने पर माता का वध कर दिया था। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
रामकृष्ण परमहंस : रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramhansa) स्वामी विवेकानंद के गुरू थे। एक योगी और आध्यात्मिक गुरू रामकृष्ण परमहंस का झुकाव काली और वैष्णव के तरफ काफी माना जाता है। उनके मुख्य शिष्य स्वामी विवेकानंद ने ही उनके सम्मान में रामकृष्ण मिशन का गठन किया था, जिसका उद्देश्य धर्मों की सद्भावना और मानवता के लिए शांति और समानता को बढ़ावा देना है।
गुरु वशिष्ठ : सप्तऋषियों में से एक गुरु वशिष्ट (guru vashisht) ने राजा दशरथ के चारों पुत्रों को शिक्षा दी थी। ऋषि विश्वामित्र के साथ उनके महान संघर्षों के लिए वह हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध हैं। समुद्र मंथन से उत्पन्न गाय कामधेनु के कुल का विस्तार भी उन्होंने ही किया था। इसके लिए उनका कई राजाओं से युद्ध भी हुआ और उनके 100 पुत्र भी मारे गए, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को ले जाने नहीं दिया।
शौनक : भृगुवंशी ऋषि के पुत्र शौनक (shaunak) ने राजा जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ कराया था। उनके आदर्श और शिक्षा ऐसी थी कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव हासिल हुआ। शौनक सप्तऋषियों में से एक हैं। वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, वामदेव अत्रि, कण्व और शौनक ही वे सात सप्तऋषि हैं।
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