मणिपुर हिंसा : कुकी समुदाय ने दो महीने बाद हटायी नेशनल हाइवे की नाकेबंदी, बिष्णुपुर में तीन की हत्या

इम्फाल (Imphal) । मणिपुर (Manipur) में 60 दिन से सिलसिलेवार हिंसा की घटनाएं (incidents of violence) देखने को मिलने रही हैं. इस बीच, सरकार (Government) की पहल का असर भी देखने को मिलने लगा है. ऑपरेशन सस्पेंशन (operation suspension) के तहत मणिपुर के दो संगठनों ने रविवार को दो महीने बाद नेशनल हाइवे-2 को खाली कर दिया है. यहां पर कुकी समुदाय के दो संगठनों का कब्जा था और आवागमन बंद चल रहा था. कुकी समुदाय ने कहा कि उन्होंने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर कांगपोकपी जिले में दो महीने से चली आ रही नाकेबंदी हटा ली है. इस बीच, बिष्णुपुर में झड़प होने से तीन की मौत हो गई है और पांच घायल हुए हैं.

यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) ने एक संयुक्त बयान जारी किया है. दोनों संगठनों ने कहा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा ‘शांति और सद्भाव बहाल करने को लेकर गहरी चिंता’ जताने के बाद तत्काल प्रभाव से नाकाबंदी हटा दी गई है. हालांकि, दो महीने पहले जिस कुकी नागरिक समाज समूह कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी (COTU) ने NH-2 पर सड़क जाम करने की घोषणा की थी, उसने अभी तक आधिकारिक तौर पर आंदोलन वापस नहीं लिया है.

3 मई के बाद बंद हो गया था हाइवे
बताते चलें कि मणिपुर में दो राष्ट्रीय राजमार्ग हैं. इनमें एक NH-2 (इम्फाल-दीमापुर) और दूसरा- NH-37 (इम्फाल-जिरीबाम) का नाम शामिल है. 3 मई को राज्य में हिंसा भड़कने के बाद से NH-2 को कुकी संगठनों ने ठप कर दिया था. जिसके बाद मई के अंत में जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे तो इसे अस्थायी रूप से खोल दिया गया था. घटनाक्रम से जुड़े करीबी सूत्रों ने बताया कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ हाल ही में गुवाहाटी में UPF, KNO और अन्य कुकी संगठनों की बैठक हुई है, जिसके बाद नाकाबंदी हटाने का निर्णय लिया गया है.

कुकी संगठनों ने संयुक्त बयान में कहा, यह निर्णय नागरिक समाज संगठनों, ग्राम प्रधानों और महिला लीडर्स के साथ कई मौकों पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया गया.

बिष्णुपुर में पहले दो शव मिले, फिर तीन और बरामद
वहीं, मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में उग्रवादियों के साथ गोलीबारी में कम से कम तीन लोग मारे गए हैं और पांच अन्य घायल हो गए हैं. यह घटना शनिवार देर रात खोइजुमंतबी गांव में हुई है. पुलिस ने रविवार को बताया कि गांव के वॉलिंटियर्स एक अस्थायी बंकर में इलाके की रखवाली कर रहे थे. शुरुआत में दो शव मिले थे, तीसरा बाद में बरामद किया गया. कई घंटे तक चली गोलीबारी में पांच लोग घायल हो गए हैं. उनमें से कुछ को इम्फाल के एक अस्पताल में लाया गया, जिनकी हालत गंभीर बताई जा रही है. घटना के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लिया और स्थानीय लोगों से बातचीत की.

सिर काटा और हाथ में लेकर घूमते रहे उग्रवादी!
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों की सीमा से सटे इलाके में उग्रवादियों के एक ग्रुप ने हमला किया. वहां कई घरों को आग लगा दी गई और कुछ लोगों के अपहरण की भी खबर है. सूत्रों ने यह भी दावा किया कि झड़प के दौरान एक व्यक्ति का सिर काट दिया और उग्रवादी उस कटे हुए सिर को विभिन्न स्थानों पर लेकर घूमते देखे गए. मणिपुर में हिंसा की यह ताजा घटना मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफा नहीं देने का ऐलान करने के ठीक एक दिन बाद आई है. फिलहाल, राज्य में स्थिति इस समय संवेदनशील है. शुक्रवार को एन बीरेन सिंह के आवास के बाहर हाई-वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला था. उनके आवास के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी और उनसे पद नहीं छोड़ने का आग्रह किया था.

50 हजार लोग राहत शिविर में रहने को मजबूर
पूर्वोत्तर राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष में अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. तीन हजार ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हुए हैं. करीब 50 हजार लोग अपना घर-बार छोड़कर रिलीफ कैम्प में रहने को मजबूर हैं. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी समुदाय के नागा और कुकी की 40 प्रतिशत आबादी हैं. ये समुदाय पहाड़ी जिलों में रहता है.

क्यों भड़की थी मणिपुर में हिंसा?
मणिपुर में तीन मई को कुकी समुदाय की ओर से निकाले गए ‘आदिवासी एकता मार्च’ के दौरान हिंसा भड़की थी. इस दौरान कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. तब से ही वहां हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. जानकारों का मानना है कि बातचीत से ही इस हिंसा को शांत किया जा सकता है, लेकिन समस्या ये है कि बातचीत को कोई तैयार हो नहीं रहा है.

कब से जल रहा है मणिपुर?
– तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.
– इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे.
– तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.
– ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा मांग रहा है.
– 20 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इसके लिए हाईकोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है.
– मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए. उन्होंने 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला.

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
– मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसपास है.
– राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
– मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
– पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.

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