हिंदू राष्ट्र के मायने

– वीरेंद्र सिंह परिहार

इन दिनों देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी बागेश्वरधाम सरकार यानी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री चर्चा में हैं। उनका दावा है कि वह ब्रिटिश पार्लियामेंट को भी सम्बोधित कर चुके हैं। यही नहीं वहां उपस्थित समुदाय से ‘जय श्री राम’ का नारा भी लगवा चुके हैं। इस समय सबसे खास बात यह कि वह अपने कार्यक्रमों में जोर देकर यह कह रहे हैं भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है। स्वाभाविक है इस देश में बहुत से लोगों को हिंदू शब्द से ही करंट लगता है। कुछ लोग उनके इस अभियान को साम्प्रदायिक दृष्टि से देखते हैं।

शास्त्री जब यह कहते हैं कि दुनिया में सिर्फ सनातनी धर्म ही है। सभी पंथ या मजहब हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यह जानना जरूरी है कि भारत की शीर्ष अदालत भी यह कह चुकी है के हिंदू शब्द भौगोलिक एवं संस्कृति-बोधक है। इसका मतलब यह हुआ कि हिंदू शब्द राष्ट्र का पर्याय तो है ही साथ ही वह कोई पंथ एवं मजहब न होकर राष्ट्र की संस्कृति का प्रतीक है। शास्त्री भी कहते हैं कि हिंदू राष्ट्र का मतलब यह नहीं कि देश में वर्णाश्रम व्यवस्था फिर से आ जाएगी, बल्कि हिंदू राष्ट्र का मतलब है कि सभी किस्म के भेदभाव, ऊंच-नीच, बड़े छोटे की भावना समाप्त कर एक समरस एवं समतायुक्त समाज का निर्माण।

यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्र भारत में हिंदू शब्द को बहुत से लोग अपने निहित स्वार्थों के चलते कुछ ऐसा परिभाषित करते हैं जैसे वह मुस्लिम और दूसरे पंथों का विरोधी हो। इस कुचक्र के बीच शास्त्री की कई बातें सनातनी व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं। यह कौन नहीं जानता कि देश में आए दिन हिंदुओं के त्योहारों पर पत्थरबाजी और हमले होते हैं। इन सब बातों से सनानती आहत होते हैं। उन्हें लगता है कि भारत को क्यों नहीं हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए। संविधान निर्माताओं ने अपेक्षा की थी कि भविष्य में देश में कॉमन सिविल कोड लागू होगा। देश का सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार जोर देकर यह कह चुका है कि देश में कॉमन सिविल कोड लागू होना चाहिए, लेकिन जब-जब देश में कॉमन सिविल कोड लागू करने की बात होती है तो कुछ लोगों द्वारा ऐसा प्रलाप किया जाता है, जैसे कि यह देश के मुसलमानों के ऊपर कोई हमला हो रहा हो। यहां तक कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता को देश का प्रत्येक देशभक्त नागरिक महसूस करता है, लेकिन मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग विरोध करता है। भारत की कुछ पार्टियां भी और वोट बैंक खिसकने के भय से खामोश रहती हैं।

मुस्लिम तुष्टीकरण या अलगाववाद की हद यह है कि असम सरकार ने नाबालिग लड़कियों के विवाह को लेकर कानूनी शिकंजा कसा तो उसे इस्लाम विरोधी बताकर हंगामा किया गया। कहा गया कि कुरान में 15 वर्ष ही लड़कियों की विवाह की सीमा निर्धारित है। कट्टरपंथी सोच की हद यह है कि बहुत से लोगों को वंदे मातरम गाने में भी आपत्ति होती है। इसलिए इसमें कोई दोराय नहीं कि ऐसी प्रवृत्तियों का उन्मूलन हिंदू राष्ट्र से ही हो सकता है। देश में हिंदुओं की जनसंख्या का घटता अनुपात जिस ढंग से देश की डेमोग्राफी में परिवर्तन ला रहा है, उससे देश में एक बार पुनः बंटवारे और गुलामी का खतरा सन्निकट दिख रहा है। इन सभी समस्याओं का समाधान एकमेव भी हिंदू राष्ट्र की आवधारणा में ही है।

ऐसे सभी अलगाववादी, प्रतिगामी और देश को कमजोर करने वाले और अलगाववादी प्रवृत्तियों से लड़ने के लिए हिंदू राष्ट्र की आवश्यकता समय की पुकार है। अभी एक अमेरिकन लेखक की किताब आई है, जिसमें यह बताया गया है कि 26/11 की घटना को लेकर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा था, कि वह आतंकी ठिकानों पर हमले करें, लेकिन मनमोहन सिंह ने यह कहते हुए इससे इंकार कर दिया था कि इससे देश का मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से नाराज हो जायेगा। वस्तुतः ऐसी ही मनोवृत्तियों को कुचलने के लिए देश को हिन्दु राष्ट की आवश्यकता है।

आए दिन यह सुनने को मिलता है कि जैसे इस देश में बहुत सारे रीति-रिवाज है, प्रथाएं और भाषाएं हैं, वैसे ही यह कई संस्कृतियों वाला देश है। इसी के चलते बहुत से लोग भारत को गंगा-जमुनी संस्कृति वाला देश कहते हैं। जबकि यमुना भी गंगा में मिलकर गंगा ही हो जाती है। सच्चाई यही है कि किसी भी राष्ट्र की संस्कृति एक होती है, यानी संस्कार एक जैसे होते हैं, तभी तो वह राष्ट्र कहलाता है। अमेरिका एवं कनाडा की भाषा एक है किन्तु वह अलग-अलग राष्ट्र हैं, कारण उनकी इतिहास की अलग-अलग अनुभूतियां हैं। स्विटजरलैंड में तीन भाषाएं प्रचलित हैं, फिर भी वह एक राष्ट्र है, ऐसी स्थिति में हमारे देश में भी अनेक भाषाएं, जातियां, प्रांतों के भेद होते हुए भी सबके अंतःकरण में सांस्कृतिक एकात्मता का भाव है।

इस एकात्मता का नाम ही हिन्दू है। महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी खान अबुल गफ्फार खां का कहना था- ‘‘हम पठान पहले आर्य थे फिर बौद्ध हुए, अब मुसलमान हो गए, किन्तु हमारी राष्ट्रीयता तो भारतीय अर्थात हिन्दू ही रहेगी।’’ भारत के विदेश मंत्री रह चुके मोहम्मद करीम छागला का कहना था- ‘‘मैं उपासना पद्धति से मुसलमान और वंश से हिन्दू हूं।’’ इस तरह से समझा जा सकता है कि उपासना की दृष्टि से इस राष्ट्र के मुस्लिम संस्कृति की दृष्टि से हिन्दू कैसे हैं ? आखिर में वह भी उन्हीं महान पूर्वजों की संतान हैं, जिनकी संतान हिन्दू हैं, फिर हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से भड़कने या डरने जैसा कोई मामला नहीं होना चाहिए। पुराणों में स्पष्ट रूप से कहा गया है- ‘‘आ सिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका, पितृभूः पुण्यभूमश्चैव हिन्दूरित स्मृतः।’’ कहने का आशय यह कि सिन्धु नदी से लेकर समुद्र पर्यन्त की भारत भूमि जिसकी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि है, वह हिन्दू है। वस्तुतः हिन्दू राष्ट ही वह कसौटी है जो सभी भारतीयों को भावात्मक रूप से जोड़ सकती है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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