मृगेंद्र सिंह: सूबे की पत्रकारिता में अपने दम पे बनाया आला मुक़ाम

खुदी को कर बलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
खुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।

अल्लामा इक़बाल का ये शेर भोपाल ही नहीं पूरे सूबे के नामवर सहाफी (पत्रकार) मृगेंद्र सिंह पे सटीक बैठता है। अपने सहाफी साथियों और पूरे मोडिया जगत में दाऊ के नाम से मशहूर मृगेंद्र सिंह दैनिक जागरण के प्रभारी संपादक हैं। 31 बरस पहले रीवा जिले की नईगढ़ी तहसील के भिटवा क़स्बे से एक दुबला पतला लड़का भोपाल आया। दिल मे कई सारे ख्वाब थे। कुछ कर गुजऱने की तमन्ना थी। शहर अनजाना था, लोग बेगाने थे। छोटे से गांव और राजधानी की भागती दौड़ती जि़ंदगी से कदमताल करते मृगेंद्र सिंह को दैनिक जागरण में ट्रेनी रिपोर्टर के तौर पे मुलाज़मत मिली। 31 बरस पेले मिले उस मौके को मृगेंद्र सिंह ने ऐसा केश किया कि आज ये इस अखबार के प्रभारी संपादक हैं। आलम ये है के इनके बिना दैनिक जागरण का तसुव्वुर (कल्पना) नहीं किया जा सकता। दाऊ इस अखबार के लिए आल इन आल हैं। इस तवील वक्फे में दाऊ के खिलाफ भोत सी साजिशें हुईं। कई सारे तुफानो को झेलते हुए आज ये जिस मुक़ाम पे हैं वहां तक पहुंचने का ख्वाब हर सहाफी का होता है। अगर मैं ये कहूं कि आज की तारीख में सूबे के सियासी और नोकरशाही हलके में मृगेंद्र सिंह से बड़ा कोई पत्रकार नहीं है तो कुछ गलत न होगा। संतरी से लेके मंत्री तलक और सीएम से लेके हर केबिनेट मिनिस्टर तलक दाऊ की अज़मत और सहाफ़त के इनके जलवे से बखूबी वाकिफ है। यही हाल वल्लभ भवन की पावर गैलरीज़ में बैठते हर आईएएस अफसर से इनके जो राब्ते हैं वैसे राब्ते भी शायद ही किसी पत्रकार के हों। सियासी बंदों और नोकरशाहों से ताल्लुक़ात भी सिर्फ खबर तक ही महदूद रखते हैं दाऊ।

खबर का मामला हो तो ये कोई रियायत नहीं देते। इनकी साफगोई और सहाफ़त के जलवे से मुतास्सिर होकर कई नए विधायक और मंत्री इनसे मुलाकात को आते ही हैं। इनकीं लिखी सियासी खबरों को अलट पलट के दूसरे पत्रकार खबरें बना लिया करते हैं। सूबे की हर बड़ी सियासी और प्रशानिक खबर सबसे पेले मृगेंद्र सिंह के पास होती है। इन 31 बरसों में दाऊ ने सैकड़ों सहाफियों (पत्रकारों) की जमात तैयार की। उनके ये शागिर्द आज तमाम अखबारों में नाम कमा रहे हैं। माशा अल्लाह दाऊ भोपाल में जब किसी सार्वजनिक पिरोगराम में शिरकत करते हैं तो पांच सात शागिर्द इनके चरण छू ही लेते हैं। इतनी इज़्ज़त और ऐहतराम की खास वजह है दाऊ का डाउन टू अर्थ रहना। इंन्ने आज भी अपनी सादगी और खुश अख़लाक़ी नही छोड़ी। संपादक वाली ठसक और सूमड़े पन से ये हमेशा दूर रहे। अपने संगी साथियों और किसी भी ज़रूरतमंद इंसान की मदद के लिए ये खुद आगे आकर मदद करते हैं। पत्रकार जागरण का हो या किसी दूसरे अख़बार का उसकी व्यक्तिगत दुखी बीमारी में दाऊ जितनी मदद कर सकते हैं उसकी दूसरी मिसाल कम ही मिलती है। दाऊ के खास दोस्त और दैनिक जागरण के पॉलिटकल स्टेट ब्यूरो चीफ जगदीश द्विवेदी कहते हैं कि दाऊ का जो मुक़ाम सहाफत में है उससे कहीं ऊंचा मुक़ाम सबकी मदद करने वाले इंसान का है। आज दाऊ की यवमे पैदाइश (जन्मदिन) है। दाऊ आप जिये हज़ारों साल…सूरमा येई दुआ करता है।

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