एमएस स्वामीनाथनः जिन्होंने भूख और अन्न का व्याकरण बदल दिया

– संजीव

सुप्रसिद्ध कृषि विज्ञानी प्रोफेसर मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई है। पिछले साल ही 28 सितंबर को इस महान वैज्ञानिक का 98 साल की आयु में निधन हो गया था। उनके वैज्ञानिक अवदान की वजह से लाखों भारतीय गरीब दशकों तक भूख के खिलाफ जीवन-मरण की लड़ाई जीत सके या अकाल मौत का निवाला बनने से कम-से-कम बचे रह सके। मानव सेवा के क्षेत्र में इस सर्वोच्च योगदान की इसी वजह से टाइम मैगजीन ने 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली एशियाई के रूप में जिन तीन भारतीयों का चयन किया, उनमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी के साथ एमएस स्वामीनाथन का नाम था।

स्वामीनाथन को हरित क्रांति का मुख्य वास्तुकार कहा जाता है। उन्होंने धान की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई। जिसने यह सुनिश्चित किया कि भारत के कम आय वाले किसान ज्यादा पैदावार ले सकें। 1960 के दशक में स्वामीनाथन ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और दूसरे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च पैदावार वाली किस्म (एचवाईवी) के बीज विकसित किए, जिसने आगे चलकर हरित क्रांति की लहर के रूप में भारतीय कृषि जगत की सूरत बदल दी। देश में हरित क्रांति की शुरुआत दिल्ली-हरियाणा सीमा के एक गांव से हुई। जौंती के नाम से मशहूर यह गांव, देश के कृषि क्रांति का नर्सरी रहा है। स्वामीनाथन ने इस गांव का चयन गेहूं और बाजरा के उन्नतशील बीजों पर अनुसंधान के लिए किया था।

दरअसल, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा, जिसमें भूख से छटपटाते करीब 20 लाख से ज्यादा भारतीयों की जान चली गई। बंगाल का अकाल भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की सबसे बड़ी त्रासदियों में एक था। इसमें हुई मौतों के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम विस्टन चर्चिल को भी जिम्मेदार माना जाता है। 4 अगस्त 1943 को चर्चिल की अगुवाई में वॉर कैबिनेट की बैठक हुई जिसमें अधिकारियों ने बंगाल में भूख से मर रहे लोगों की मदद के लिए तत्काल पांच लाख टन गेहूं भारत भेजने की सिफारिश की। लेकिन चर्चिल ने न केवल भारत में अनाज भेजने से मना किया बल्कि यह ताना भी मारा कि खरगोश की तरह बच्चा पैदा करने वाले भारतीय इस अकाल के लिए खुद जिम्मेदार हैं। इसी बैठक में चर्चिल ने यूरोप के बाकी हिस्सों में अनाज भेजने के आदेश दिए ताकि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज सैनिकों के लिए खाने की कमी न हो।

बहरहाल, तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त, 1925 को पैदा हुए 18 वर्षीय युवक स्वामीनाथन को इस परिदृश्य ने झकझोर कर रख दिया। अनाज के बिना मौत के भयावह आंकड़ों ने युवक स्वामीनाथन के भीतर देश के हर व्यक्ति के लिए खाद्यान्न सुनिश्चित कराने के संकल्पों को भी कहीं मजबूत किया। 1944 में स्वामीनाथन ने मद्रास एग्रीकल्चर कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। 1960 के दशक के आखिरी वर्षों में स्वामीनाथन का संकल्प आखिरकार सिद्ध हुआ। हर भारतीय के लिए खाद्यान्न सुनिश्चित कराने के अपने संकल्प को स्वामीनाथन ने हरित क्रांति के जरिये पूरा कर दिखाया। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि भारत सरकार ने 1971 में देश को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर घोषित कर दिया।

भारतीय कृषि जगत में स्वामीनाथन का योगदान और उसके व्यापक प्रभाव का ही नतीजा है कि भारत पहले खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ। दशकों तक प्रकारांतर से भारत खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में विश्व का प्रमुख देश बन गया। केवल गेहूं उत्पादन की ही बात करें तो भारत सरकार की तरफ से जारी की गई जानकारी के मुताबिक पिछले छह दशकों में गेहूं उत्पादन में लगभग 1000 फीसदी की वृद्धि हुई है। हरित क्रांति के बाद यह रिकॉर्ड उत्पादन है। गेहूं उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है।

देश का कुल गेहूं उत्पादन 1960 के दशक की शुरुआत में 98.5 लाख टन था जो बढ़कर 2021-2022 में 1068.4 लाख टन हो गया। 2021-2022 में भारत ने रिकॉर्ड 70 लाख टन खाद्यान्न का निर्यात किया है। 1960 के दशक से भारत की प्रति हेक्टेयर उपज में तीन गुना वृद्धि हुई है। खाद्यान्न का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1960 के मध्य में 757 किलोग्राम से बढ़ कर 2021 में 2.39 टन हो गया।

यूनाइटेड नेशन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के करीब 80 देशों में गेहूं की खेती होती है। जिसमें 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक गेहूं उत्पादन में चीन सबसे आगे है। लगभग 2.4 बिलियन टन उत्पादन के साथ वैश्विक गेहूं उत्पादन में चीन का 17 प्रतिशत योगदान है। इस आंकड़े में भारत दूसरे स्थान पर है। करीब 1.8 बिलियन टन उत्पादन के साथ वैश्विक गेहूं उत्पादन में भारत की भागीदारी 12.5 प्रतिशत है। जबकि 1.2 बिलियन टन के साथ रूस तीसरे स्थान पर है, जिसकी वैश्विक भागीदारी 8.4 प्रतिशत है। इस आंकड़े में यूएस 1.2 बिलियन टन के साथ चौथे स्थान पर है जिसकी वैश्विक भागीदारी में 8.4 प्रतिशत की भागीदारी है।

खास बात यह है कि अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान देश से कुल 148 करोड़ डॉलर का गेहूं निर्यात किया गया, जो पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही के मुकाबले दोगुना से भी ज्यादा है। अप्रैल से सितंबर 2021 के दौरान देश से कुल 63 करोड़ रुपये के गेहूं का निर्यात किया गया था। वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की मांग हर वर्ष बढ़ रही है। यह उस दौर में भारत के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है जब जलवायु संकट से पूरी दुनिया के लिए खाद्यान्न अहम मुद्दा बन कर उभरा है। खाद्यान्न को तेल की तरह रणनीतिक टूल्स की तरह आजमाए जाने का दौर है। लिहाजा, भारत को किसी भी वैज्ञानिक सफलता के समय स्वामीनाथन का स्मरण जरूर करना चाहिए क्योंकि हर मुंह के लिए निवाला जुटाने से बड़ा वैज्ञानिक संधान हो भी नहीं सकता। स्वामीनाथन को तब जरूर याद किया जाना चाहिए जब कभी हम राष्ट्र के रूप में खुद को संकट में पाएं क्योंकि शून्य से शिखर तक पहुंचने का मंत्र स्वामीनाथन देश को दे ही गए हैं।

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