मप्र में एक विधायक और एक मीसाबंदी सरकार से चवन्नी भी नहीं लेेते

  • मीसाबंदी के नाम पर फर्जी पेंशन लेने के लगते रहते हंै कई नेताओं पर आरोप
  • समाज कल्याण पर खर्च करते हैं राशि… विधानसभा में विधायक करते हैं वेतन-भत्ते बढ़ाने की मांग

भोपाल। देश में आपातकाल में मीसा कानून के तहत जेल जाने वालों को सरकारें मीसाबंदी पेंशन देती हैं। जिनमें से ज्यादातर राजनीतिक पृष्ठभूमि से हैं और आर्थिक रूप से संपन्न हैं। जबकि एक मीसाबंदी रघु ठाकुर ऐसे हंै, जो स्वभाव से फक्कड़ हैं और कर्म से कट्टर समाजवादी हैं। मीसाबंदी पेंशन के नाम पर इन्होंने सरकार से कभी चवन्नी भी नहीं ली है। इसी तरह मप्र विधानसभा में एक मात्र सदस्य चेतन कश्यप हैं, जिन्होंने कभी वेतन-भत्ता नहीं लिया है। जबकि अन्य विधायकों ने कभी वेतन-भत्ते की चवन्नी भी नहीं छोड़ी है।

चेतन कश्यप रतलाम शहर से दूसरी बार भाजपा के विधायक हैं। खुद उद्योगपति हैं, लेकिन क्षेत्र के सबसे बड़े समाजसेवियों में गिनती होती है। 2013 में मप्र विधानसभा का सदस्य बनने के बाद से आज तक उन्होंने वेनत-भत्ते का एक पैसा नहीं लिया। पूरा राशि समाज कल्याण पर खर्च की जाती है। वे स्वयं भी क्षेत्र में सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। समाज सेवा की दृष्टि से मप्र में दूसरा कोई विधायक नहीं है।

समाजवादी नेता समाज के भेरासे, सरकार के नहीं
देश के प्रखर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के साथी रघु ठाकुर अकेले नेता है, जो आज भी समाजवादी विचारधारा को जी रहे हैं। जबकि अन्य नेता विचारधारा से भटक गए। देश भर में हजारों की संख्या में लोग मीसाबंदी पेंशन का लाभ ले रहे हैं। लाभार्थी विवादों में भी रहे हैं। जबकि रघु ठाकुर एक पैसा सरकार से नहीं लेते है। रघु ठाकुर के अनुसार मीसा कानून के तहत उन्हें 1973 में सागर से गिरफ्तार कर भोपाल भेजा गया था। इस कानून में कोर्ट में पेश किए बिना 2 साल तक जेल में रखने का प्रावधान था। जबकि मीसा कानून के तहत ज्यादातर नेता 1975 के आपातकाल का विरोध करने पर गिरफ्तार किए गए थे। जिसमें छात्रनेता, मजदूर नेता, शिक्षक, राजनेता, आरएसएस एवं अन्य सरकार की आलोचना करने वाले थे। आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत पहली गिरफ्तारी जेपी नारायण की थी। इसके बाद देश भर में गिरफ्तारी हुईं।

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