झारखंड का एक ऐसा त्‍योहार जिसमें अपने पापों के लिए मांगी जाती है माफी

सिमडेगा. हमारा देश भारत पर्वों और त्‍योहारों का देश है. यहां कई ऐसे पर्व मनाए जाते हैं, जो अपने आप में अनूठे हैं. झारखंड में कदलेटा पूजा नाम से एक त्‍योहार मनाया जाता है. यह पूजा क्षमा-याचना के लिए की जाती है. यह पर्व सदियों से परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है. इस पूजा में आदिवासी समुदाय फसलों की सुरक्षा के लिए भी याचना करते हैं.

कदलेटा पूजा में लोग जाने-अनजाने में की गई जीव-जन्तुओं की हत्या के लिए आदिशक्ति से क्षमा मांगी जाती है. कदलेटा पूजा सरना सनातन की पुरानी परंपरागत पूजा है. भादो महीने में करम के पूर्व कदलेटा पूजा किया जाता है. यह महीना साधारण तौर पर भारी बर्षा वाला होता है. इस समय खेतों में फसलें लगी होती हैं. धान, गोड़ा फसल आदि फूट कर तैयार रहते हैं. ऐसे में फसलों की सुरक्षा के लिए दुआ मांगी जाती है. भादो महीने में खेतों में खासकर धान की फसल होने से उरांव किसान को चिंता होने लगती है कि कहीं फसलों में कोई बीमारी न हो जाए.

फसलों को तरह-तरह के कीटाणुओं, कीड़े-मकोड़े के साथ ही जंगली जानवर और पशु-पक्षियों से रक्षा करना आवश्यक हो जाता है. सभी किसान भरोसा करता है कि फसल की पैदावार ज्यादा से ज्यादा हो और फसल पकने से पूर्व किसी प्रकार का अहित न हो. इसलिए पूरे गांव की ओर से एक दिन सामूहिक पूजा डंडा कट्टना किया जाता है. कदलेटा पूजा गांव के एक विशेष जगह (जहां पूर्वज वर्षों से करते आ रहे हैं) पर प्रत्येक वर्ष किया जाता है. जिस स्थान पर पूजा होती है, उस स्थान को कदलेटा टांड़ (छोटा सरना स्थल) कहा जाता है.

अनूठी है पूजा विधि
पूजा में हानिकारक कीड़े-मकोड़े, जंगली पशु-पक्षी से फसल की रक्षा, बुरी नजरों के दुष्प्रभाव से बचाव, फसलों के लिए अच्छी बारिश, धन-दौलत में वृद्धि के साथ ही पूरे गांव के कुशलता की कामना की जाती है. सामूहिक तौर पर पहान द्वारा डंडा कट्टना पूजा विधि-विधान के साथ किया जाता है. कदलेटा पूजा के दिन पहान, पुजार, महतो, गांव के पंच सदस्य पूजा टांड़ पर जाते हैं.

पूजा से पूर्व पूजा स्थल को साफ कर गोबर से लीपकर उसे पवित्र करते हैं . कदलेटा पूजा में भेलवा डाली पत्ती और तेंदु पत्‍ता का बहुत महत्व है. भेलवा रस शरीर के जिस अंग में लग जाता है, वहां घाव होकर शरीर में फैलने लगता है. यानी भेलवा डाली से कुकर्म करने वालों का नाश होता है और दुष्प्रभाव नष्ट होता है. यही कारण है कि डंडा कट्टना धर्म क्रिया में भेलवा और केउंद डाली का प्रयोग किया जाता है.

खिचड़ी या खीर का महत्‍व
डंडा कट्टना धर्म के तीसरे दिन सभी किसान अपने-अपने खेतों में भेलवा, साल, केउंद या सिंदवार की डाली को गाड़ते हैं, ताकी किसी तरह का दुष्प्रभाव फसल को न हो. डाली को गाड़ते ही उस पर पक्षी बैठता है और फसल में लगने वाले कीडे़ मकोड़े को चुन कर खा जाता है. इस तरह पक्षी फसल में लगने वाले कीड़े-मकोड़े से होने वाले रोग से बचाते हैं. पूजा के अंत में अरवा चावल के साथ खिचड़ी या खीर बना कर सभी को बांटकर खाया जाता है.

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