विपक्षी एकता में पड़ी फूट, नीतीश के बाद अब शरद पवार को लगा बड़ा झटका

नई दिल्‍ली (New Delhi) । भाजपा (BJP) को 2024 में हराने के लिए एकजुट होने की कोशिश कर रहे विपक्ष (Opposition) को अपने अंतर्विरोधों से ही जूझना पड़ रहा है। एनसीपी (NCP) के भीतर हुई फूट ने विपक्षी एकता (opposition unity) की कोशिशों पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम में प्रमुखता से शामिल हैं, वहीं दूसरी तरफ वह अपनी पार्टी को संभालने में विफल साबित हुए हैं। विपक्षी एकता के लिए पिछले एक महीने में यह तीसरा बड़ा झटका है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश शुरू की है, जिसमें पवार के साथ तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी भी खूब साथ निभा रही हैं। पटना में विपक्षी दलों की पहली बैठक विगत 23 जून को हुई, लेकिन उससे पहले ही विपक्षी खेमे से जीतनराम मांझी अलग हो गए और एनडीए का हाथ थाम रहे हैं।

जो बैठक हुई, उसमें भी आप और कांग्रेस में टकराव दिखा। बाद में आप ने समान नागरिक संहिता पर सरकार का सर्शत समर्थन कर विपक्षी एकता को एक और बड़ा झटका दिया। यह सिलसिला थम नहीं रहा है। रविवार को तीसरा बड़ा झटका तब लगा, जब शरद पवार के भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी का एक धड़ा टूटकर भाजपा-शिवसेना शिंदे गुट की सरकार में शामिल हो गया।

बिहार और महाराष्ट्र के बारे में कहा जा रहा था कि विपक्षी दलों का गठबंधन भले ही और राज्यों में सफल हो या न हो, इन राज्यों में अच्छा चलेगा। लेकिन, इन दोनों राज्यों से अच्छी खबर नहीं मिली। मांझी की पार्टी ‘हम’ भले ही छोटी हो, लेकिन उसका बिहार में तीन फीसदी वोट बैंक है। यह वोट भी महत्वपूर्ण है, इसलिए एनडीए उन्हें साथ ले रहा है।

इसी प्रकार महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन के लिए एनसीपी महत्वपूर्ण है। अजित पवार के अलावा छगन भुजबल जैसे प्रभावशाली और पवार के खासमखास नेताओं का सत्ता पक्ष के साथ मिलना एनसीपी के लिए बड़ी राजनीतिक चोट है। इसके आगामी चुनावों में नतीजे जो भी रहें, लेकिन दो बातें स्पष्ट नजर आती हैं। एक, विपक्षी एकजुटता के मामले में संदेश गलत गया है तथा दूसरे एनसीपी कमजोर हुई है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन राज्यों में विपक्षी दल पहले ही एक थे, वहां उनमें टूट हो रही है तो दूसरे राज्यों में नया गठबंधन कैसे बनेगा? पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने पंचायत चुनाव में वाम दलों से हाथ मिलाया तो ममता बनर्जी आगबबूला हो गईं और कांग्रेस पर आरोप लगा दिया कि वह भाजपा की मदद कर रही हैं। अन्तर्विरोध और भी हैं।

उत्तर प्रदेश में बसपा विपक्षी एकता से पहले ही दूरी बनाए हुए है। जबकि बीआरएस प्रमुख केसीआर अब विपक्षी एकजुटता की बात भी नहीं कर रहे हैं। एमआईएम के ओवैसी हर समय सरकार पर हमलावर रहते हैं। यदि वह विपक्ष में हैं तो फिर विपक्षी दलों के साथ खड़े क्यों नहीं हैं?

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिस प्रकार से राज्यों में क्षेत्रीय दलों के बीच परस्पर तथा राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों के बीच भी राजनीतिक अन्तर्विरोध हैं, उसके चलते चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए भारी कवायद करनी होगी। सीटों के बंटवारे के लिए भी सभी दलों को माथापच्ची और समझौते करने होंगे।

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