केरल में 20 सीट पर कांग्रेस या लेफ्ट में कौन पड़ेगा भारी? भाजपा पहली एंट्री की कोशिश में

नई दिल्‍ली (New Dehli)। केरल में लोकसभा (Lok Sabha in Kerala)की 20 सीट पर कांग्रेस या लेफ्ट (Congress or Left)में कौन भारी पड़ेगा? दक्षिण(South) के इस गढ़ को क्या भाजपा पहली (BJP first)बार भेदकर अपनी एंट्री कर (penetrate and enter)पाएगी। गुणा -भाग और सियासी अंकगणित के बीच केरल की एक-एक सीट को लेकर जबरदस्त व्यूह रचना की जा रही है। कांग्रेस और लेफ्ट में केरल भले ही अलग-अलग दिशा में नजर आ रहे हों, लेकिन भाजपा की एंट्री रोकने के लिए दोनों खुद को मुख्य धुरी बनाकर रखना चाहते हैं।

केरल में भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में कई प्रमुख नौकरशाहों, अभिनेताओं और खिलाड़ियों को अपने साथ जोड़ा है। जिन्होंने वोट शेयर बढ़ाने में मदद की है लेकिन चुनाव में जीत पार्टी को नहीं मिली है। इसके अलावा पार्टी राज्य में अपने प्रतिद्वंद्वियों खासकर सीपीआई (एम) की तरह मजबूत जमीनी स्तर का दावा नहीं कर सकती है। भाजपा की हिंदुत्व की धार को यहां लेफ्ट की रणनीति कुंद करती है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी का प्रमुख चेहरा कांग्रेस की अगुवाई वाला गठबंधन बना था। इसके चलते ही 2019 लोकसभा में 20 में से 19 सीट कांग्रेस खेमे को मिली थी।

इस बार लेफ्ट बाजी अपने पक्ष में करना चाहता है। राहुल गांधी की वायनाड सीट पर भी लेफ्ट ने उम्मीदवार उतारकर स्पष्ट लड़ाई का संकेत दिया है। जबकि कांग्रेस एक बार फिर स्वीप करने की रणनीति से उम्मीदवारी तय कर रही है।

भाजपा का चार सीट हासिल करने पर जोर

उधर भाजपा की निगाह कम से कम चार सीट पर पूरा जोर लगाकर जीत हासिल करने पर है। हालांकि यहां भाजपा की सहयोगी धर्म जन सेना का नेतृत्व एझावा समुदाय द्वारा किया जाता है जो परंपरागत रूप से सीपीआई (एम) के साथ रहा है। हालांकि दक्षिण का यह किला हमेशा से भगवा पार्टी के लिए एक चुनौती रही है। लेकिन इस बार पार्टी की ओर से खास रणनीति बनाकर 20 लोकसभा सीट वाले केरल में पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की योजना तैयार की गई है। भाजपा यहां कभी एक भी लोकसभा सीट नहीं जीती। केरल में भाजपा के पास अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में संगठनात्मक ताकत नहीं है। ऐसे में भाजपा उन सीटों पर ध्याना दे रही है जिन पर पिछले चुनावों में पार्टी को अच्छा रिस्पॉन्स मिला।

भाजपा ने अपना वोट शेयर बढ़ाया

दरअसल, केरल की चार सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी ने अतीत में चमक दिखाई है। उनमें शशि थरूर का निर्वाचन क्षेत्र तिरुवनंतपुरम भी शामिल है। इसके अलावा त्रिशूर एक ऐसा निर्वाचन क्षेत्र है जहां भाजपा, वामपंथियों और कांग्रेस के खिलाफ अपनी संभावनाएं तलाश रही है। पार्टी ने यहां अपना वोट शेयर बढ़ाया है। तिरुवनंतपुरम भी भाजपा के लिए उम्मीद की किरण रही है क्योंकि यह राज्य की 20 लोकसभा सीटों में से एकमात्र सीट है जहां पार्टी पिछले दो चुनावों में उपविजेता रही है। जिससे सीपीआई (एम) तीसरे स्थान पर पहुंच गई है। इसका सबसे अच्छा प्रदर्शन 2014 में था, जब पार्टी के दिग्गज नेता ओ राजगोपाल, जिन्हें 32.32% वोट मिले थे, थरूर से मामूली अंतर से हार गए।

पथानामथिट्टा पर 58% मतदाता हिंदू

इसके अलावा अन्य केन्द्र बिन्दुओं पर बात करें तो सबरीमाला विरोध प्रदर्शन के कारण 2019 में भाजपा ने जिस अन्य निर्वाचन क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया वह मध्य केरल में पथानामथिट्टा है। इस निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 35% ईसाई मतदाता हैं, जिनमें से बड़ी संख्या गैर-कैथोलिक हैं, जबकि 58% मतदाता हिंदू हैं। हिंदुओं में से 20% उच्चवर्गीय नायर समुदाय से हैं। भाजपा संभवतः वहां ईसाइयों तक पहुंचने की रणनीति बनाएगी। भाजपा के लिए चौथा केंद्र बिंदु तिरुवनंतपुरम जिले की आटिंगल लोकसभा सीट होगी, जिस पर वामपंथियों का दबदबा था, जब तक कि 2019 में कांग्रेस के अदूर प्रकाश ने उनसे यह सीट नहीं छीन ली।

लेफ्ट का एलडीएफ गठबंधन मजबूत होता रहा

राजनीतिक घटनाक्रमों पर अगर नजर डालें तो 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जहां लेफ्ट का एलडीएफ गठबंधन मजबूत होता रहा, वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ गठबंधन लगातार कमजोर होता गया। जानकार कहते है. कि लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद कांग्रेस के नेता यह सोचने लगे कि राज्य की जनता पिनाराई विजयन की एलडीएफ सरकार से नाराज है और इसलिए उसने कांग्रेस के यूडीएफ गठबंधन को वोट दिया है।

भाजपा के मुकाबले में कांग्रेस ही नजर आ रही थी

जानकारों की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल के लोगों ने कांग्रेस को इसलिए वोट दिया था क्योंकि वे भाजपा को रोकना चाहते थे और उस समय केंद्रीय स्तर पर भाजपा के मुकाबले में उन्हें कांग्रेस ही नजर आ रही थी। इसके बाद कांग्रेस के नेताओं से एक बड़ी गलती यूडीएफ गठबंधन के घटक दल केरल कांग्रेस (मणि) को लेकर हुई।

लेफ्ट को खुद के मजबूत होने की उम्मीद

कांग्रेस के नेता यह आकलन ही नहीं कर पाए कि केरल कांग्रेस (मणि) में टूट के बाद कौन-सा पक्ष ज्यादा मजबूत है। उन्होंने केरल कांग्रेस (मणि) के उस पक्ष को एलडीएफ के साथ जाने दिया जिसका मध्य केरल के जिलों में ईसाई आबादी और चर्चों पर ज्यादा बड़ा असर था। लेफ्ट को बदले घटनाक्रम में खुद के मजबूत होने की उम्मीद है। जबकि कांग्रेस एक बार फिर भाजपा के खिलाफ लड़ाई में बड़ा चेहरा होने का दावा करते हुए पुराने प्रदर्शन को दोहराने का प्रयास करेगी।

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