प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ और नव जागरण

– मृत्युंजय दीक्षित

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ ने अपनी 100 कड़ियां सफलतापूर्वक पूर्ण कर इतिहास रच दिया। यह आकाशवाणी के इतिहास का ऐसा कार्यक्रम बना जिसमें प्रधानमंत्री ने आम जनता से सीधा संवाद किया और इसे राजनीति से पृथक रखा। यह एक सुखद अनुभव है कि ‘मन की बात’ भारत में बदलाव का बड़ा संवाहक बना। भारतीय समाज को निराशा और अंधकार से निकालने में मदद दी। विकास और प्रगति को नए पंख दिए। ‘मन की बात’ से भारत की सांस्कृतिक विरासत पुनर्जीवित हुई।भूली परम्पराएं फिर याद आईं। हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण हुआ।

जैसे दूरदर्शन के इतिहास में रामायण धारावाहिक संपूर्ण भारत में लोगों को घरों में टीवी सेट के सामने बैठा देता था, वैसे ही आज हर माह के अंतिम रविवार को लोग ‘मन की बात’ को सुनने के लिए बैठ जाते हैं। ऐसा नहीं है कि ‘मन की बात’ को केवल मोदी समर्थक ही सुनते हैं। इसे परम्परागत राजनीतिक विरोधी सुनते हैं। विश्व के 53 देशों में ‘मन की बात’ का सीधा प्रसारण होना बड़ी बात है और उससे भी बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ‘मन की बात’ में जो विचार व्यक्त करते हैं या संदेश देते हैं उसे देश का हर आयु वर्ग का नागरिक व्यवहार में लाने का प्रयास भी करता है। इसलिए वह जन आंदोलन बन जाता है।

यह कार्यक्रम ‘सेल्फी विद डॉटर’ जैसे अभियानों के माध्यम से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को सफलता का भी गवाह है। स्वच्छता आंदोलन तो व्यापक रूप ले चुका है। प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में ही समुद्र किनारे फैले कचरे व उसकी सफाई पर नागरिकों का ध्यान केंद्रित किया था। ‘मन की बात’ में कई बार यह अपील की गई कि देश के युवाओं व अन्य सभी नागरिकों को वर्ष में एक बार कही न कहीं तीर्थाटन पर अवश्य जाना चाहिए। मोदी कहते हैं कि विदेश यात्रा पर जाने से अच्छा है कि अपने ही देश के अपने राज्य या फिर अन्य दूसरे राज्यों के 15 ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों का भ्रमण करना चाहिए। उनको जानना और समझना चाहिए। पर्यटन की गतिविधियों को बढ़ावा देने में भी ‘मन की बात’ अहम माध्यम सिद्ध हुआ। आज देश के सभी धार्मिक व पर्यटन स्थलों में बहार आई हुई है। धार्मिक पर्यटन को भी खूब बढ़ावा मिला है। नये पर्यटक स्थलों की भी खूब चर्चा हो रही है। महाराष्ट्र की पंढरपुर और सुदूर मणिपुर और सौराष्ट्र के स्थलों को बहुत सारे लोगों ने ‘मन की बात’ से ही जाना।

पर्यटन के साथ प्रधानमंत्री लोकल फॉर वोकल को भी बढ़ावा देते हैं। इसी का प्रभाव है कि स्थानीय उत्पादों को लोग पसंद कर रहे हैं। इनकी मार्केटिंग के सफलता का आसमान चूम रही है। अब दीपावली पर चाइना मेड गणेश- लक्ष्मी की मूर्तियां नहीं, देश में निर्मित मूर्तियां पसंद की जा रही हैं। दिवाली पर ही बिकने वाली चीनी झालरों का मार्केट गिर चुका है। कुम्हार का चाक एक बार फिर घूमने लगा है।

प्रधानमंत्री की अपील पर अब बच्चों के खिलौनों की भी दुनिया में भी नई क्रांति आ रही है। इनमें भी चीन का वर्चस्व खत्म हुआ है। प्रधानमंत्री की बात का बच्चों पर असर पड़ा है। वह अब दादा-दादी और नाना- नानी की कहानी सुनने लगे हैं। शिक्षण संस्थाओं में ऐसी कहानियों पर कार्यक्रमों का आयोजन होने लगा है। ‘मन की बात’ की एक और सफलता भारत में डिजिटलीकरण की धूम होना है। मन की बात ने जल संरक्षण अभियान को सफल बनाया है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया है।योग, आयुर्वेद और अध्यात्म का संगम लोगों के दिलों में हिलोर मारने लगा है। एक भारत श्रेष्ठ भारत जैसे संकल्पों को पूर्ण होने का अवसर प्राप्त हो रहा है। वह दिन दूर नहीं जब खेलों की कमेंट्री भी संस्कृत व क्षेत्रीय भाषा में होगी। प्रधानमंत्री अपने कार्यक्रम में इसे प्रस्तुत करने पर अपने विचार साझा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने 100वीं कड़ी में कहा-‘मेरे लिए मन की बात का कार्यक्रम आस्था और पूजा है। यह स्वयं से वयं की यात्रा है। स्व से समष्टि की यात्रा है।’ सुखद यह है कि आज ‘मन की बात’ पर कई संस्थानों में शोध हो रहे हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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