जनगण के कवि हैं रबींद्र नाथ टैगोर

– रमेश सर्राफ धमोरा

महाकवि रबींद्र नाथ टैगोर की जयंती 07 मई को मनाई जाएगी। उन्हें जनगण का कवि कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुरुदेव टैगोर दुनिया के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनके लिखे दो गीत दो देशों के राष्ट्रगान हैं। उनका लिखा गीत जन गण मन भारत का राष्ट्रीय गान है। उनका लिखा दूसरा गीत आमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान है। दुनिया में गुरुदेव जैसे विरले ही लोग होते हैं जिन्हें इतना बड़ा सम्मान मिला है। जिनके लिखे गीत दो देशों के राष्ट्रगान बनकर अमर हो गए। भारत और बांग्लादेश में जब भी कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम होता है तो गुरुदेव टैगोर के लिखित गीत राष्ट्रीय धुन के रूप में गाए जाते हैं। गुरुदेव के लिखे इन गीतों के माध्यम से उन्हें हर समारोह में याद किया जाता है।

रबींद्रनाथ टैगोर ने अपनी रचनाओं से न केवल हिंदी साहित्य के विकास में योगदान दिया। बल्कि अनेकों कवियों और साहित्यकार को भी प्रोत्साहित किया है। वह एक ऐसे प्रकाश स्तंभ थे जिन्होंने पूरे संसार को अपनी रचनाओं के माध्यम से आलोकित किया। गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा हैं। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। टैगोर की रचनाओं में मानवीय दुख की सघन अनुभूति होती है।

वे अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। उनका जन्म 07 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। रबींद्रनाथ टैगोर ने अपनी शुरुआत की पढ़ाई कोलकाता में प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल की। वह बैरिस्टर बनना चाहते थे। इसके लिए 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया। फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया। किन्तु 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश पुनः लौट आए। सन 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे। अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया। टैगोर के भाई सतेंद्र टैगोर सिविल परीक्षा पास करके एक अच्छी नौकरी करते थे और दूसरे भाई ज्योतिरेंद्रनाथ संगीतकार और नाटक के कवि थे।

हिंदी साहित्य में टैगोर का योगदान अविस्मरणीय है। मात्र 13 साल की उम्र में उनकी पहली कविता अभिलाषा एक तत्व भूमि नाम की पत्रिका में छपी थी। इंग्लैंड से वापस आने के बाद उन्होंने बंगाली भाषा में लिखना शुरू कर दिया था। 1877 तक उन्होंने अनेकों रचनाएं की और कई रचनाएं अनेकों पत्रिकाओं में छपी। 1842 में रविंद्र नाथ टैगोर ने हिंदू मुस्लिम – एकता और घरेलू उद्योगों के विषय पर एक गंभीर लेख लिखा। 1860 में पहला उपन्यास गोरा लिखा। वह अच्छे लेखक के साथ-साथ एक अच्छे दर्शन शास्त्री भी थे। उन्होंने कई रचनाओं का निर्माण किया और स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय लोगों को प्रभावित किया।

बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ भी लिखा है। अपने असरदार लेखन से पूरब और पश्चिम के बीच की भी दूरी को कम कर दिया। कई रचनाओं में समाज की तत्कालीन कुरीतियों, गरीबी और विभिन्न अवस्थाओं का भी चित्रण किया है। इनकी किताब गलपगुच्छा भारत के गरीबी, निरक्षरता और पिछड़ापन पर आधारित अनेकों कहानियों का संग्रह है।

उनकी एक रचना पूरवी में संस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक, नैतिक और सामाजिक गीत हैं। उन्होंने न केवल अपनी लेखन के जरिए समाज की कुरीतियों को मिटाने की कोशिश की बल्कि स्वयं भी योगदान दिया। अपनी प्रथम पत्नी के देहांत के बाद इन्होंने मृणालिनी देवी नाम की एक विधवा औरत से विवाह किया और समाज में विधवा औरतों की खराब स्थिति को दूर करके विधवा विवाह को प्रोत्साहित करने की कोशिश की।

उन्होंने कल्पना, सोनार तारी, गीतांजलि, आमार सोनार बांग्ला, घेर-बेर, रबीन्द्र संगीत, चित्रांगदा, मालिनी, गोरा, राजा और रानी जैसे ना जाने कितने ही उपन्यास, कविता और लघु कथाओं की रचना की। 1913 में उन्हें गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। टैगोर बड़े साहित्यकार होने के साथ ही एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। वह कहते थे सर्वोत्तम शिक्षा वही है, जो संपूर्ण दुनिया के साथ-साथ हमारे जीवन का भी सामंजस्य स्थापित करती है।

टैगोर मानते थे कि बच्चों को बंद कमरे में शिक्षा देने से ज्यादा अच्छा है। उन्हें खुले वातावरण में प्रकृति के बीच में बिठाकर शिक्षा दें। मिट्टी पर खड़े पेड़ पौधे, बदलते मौसम, पंछियों का चहचहाना, विभिन्न जीव जंतुओं से भरे प्राकृतिक परिवेश बच्चों को कला की प्रेरणा देती है। इसीलिए इन्होंने कोलकाता शहर से 180 किलोमीटर दूर 1901 को शांतिनिकेतन की स्थापना की। उन्होंने सिर्फ पांच बच्चों को लेकर ये स्कूल खोला था जो 1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बन गया। आज शांति निकेतन का नाम बदलकर विश्वभारती हो गया है। जहां लगभग 6000 छात्र पढ़ते हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए “सर” की उपाधि लौटा दी थी। उन्हें अंग्रेज 1915 में “नाइट हुड” नाम से ये उपाधि देना चाहते थे। उनके नाम के साथ सर लगाया गया था। टैगोर ने जलियांवाला हत्याकांड की वजह से इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था। इससे पहले 16 अक्टूबर 1905 को टैगोर के नेतृत्व में कोलकाता में मनाए गए रक्षाबंधन उत्सव से “बंग भंग” आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उनका देश की आजादी के सघंर्ष में भी बहुत योगदान रहा।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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